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प्राकृत भाषा और नीति
दृष्टि से इस ग्रंथ की जितनी भी प्रशंसा की जाय थोडी अच्छा है, कुरूप होना अच्छा है, निर्गुण रहना श्रेयस्कर है । जैन मुनियों को दूर तक यह श्रेय प्राप्त है। गुणपाल है, लूला-लगडा हो जाये तो भी कोई बात नहीं, मिक्षा मुनि के प्रसिद्ध 'जबु चरियं (जंबू चरित)' से एक उदा- मांग कर खाना उत्तम है, लेकिन कभी अपने पति को हरण प्रस्तुत है :
मपत्नियो के साथ-साथ देखना अच्छा नहीं।" इस दुःख जंकल्ले काव्यं यज्ज चियत करेह तुरमाण । से नारी का उद्धार करने वाला अर्थात् गृहस्थियों को पर बहुविग्यो या महत्तो मा प्रवरण्हं पडिक्खेह ।
नारी ससर्ग के पाप को समझाने वाला व्यक्ति निश्चित अर्थात जो कल करना है उसे प्राज ही जल्दी से कर ही लोकोपकारी है । गुप्त चन्द्रमणि की रचना 'महावीर डालो। प्रत्येक महत्तं बहुविघ्नकारी हैं, अतएव अपहरान्ह चारत।
न चरित' में ऐसे लोकोपकारियों को मित्र की सज्ञा दी की प्रतीक्षा मत करो। साधनेश्वर की 'सुरसुन्दरी चरिय' गई है :में अनेक नीति परक गाथाएं है। राजरोष से कौन बच भवगिह मज्झम्मिचमाय, जलणजलियम्मि मोह निछाए। सकता है। एक सुन्दर उदाहरण देकर यह तथ्य इस जो जग्गवह स मित्तं, वारंतो सो पृण प्रमित्त ।। प्रकार कहा गया है :
अर्थात् ससार रूपी घर के प्रमाद रूपी अग्नि से जलने
पर मोह रूपी निद्रा मे सोते हुए पुरुष को जो जगाता है, काराय विरुवं नासतो कत्थ छुट्टसे पाव ।
वह मित्र है और जो उसे जगाने से रोकता है वह पमित्र सूयार साल वडियो ससउव्व विणस्ससे इण्डिं ॥
है। इस प्रकार के असंख्य मार्मिक कथन भारतीय नीति अर्थात हे पापी! राजा के विरुद्ध कार्य करने से काव्य को, प्राकृत कवियों ने प्रदान किये हैं। इसमे भी भाग कर तू कहाँ जायेगा? रसोइये की पाकशाला मे
प्राकृत के जैन कवियों का योगदान तो अत्यधिक सराहप्राया हुमा खरगोश भला कहीं वचकर घर जा सकता नीय है। कुछ कवि ऐसे भी हैं जिन्होने अपने नीति पूर्ण है ? नारी हृदय की एक टोस, एक खीज की सजीव ग्रंथों में प्राकृत के साथ अन्य भाषाम्रो का भी प्रयोग प्रतिध्वनि, प्राचार्य प्रवर नेमिनाथ के 'रयणचूडरायचरिय' किया है । जगच्चन्द्र सूरि के शिष्य देवेन्द्र सूरि (मृत्यु सं० (रत्नचुडराज चरित) में से दो सखियों के वार्तालाप मे १८७० ई०) के 'सुदसणाचरिउ' (सुदर्शन चरित) प्राकृत सुनिए :
पद्य, जिसमे यत्र-तत्र सस्कृत तथा अपभ्रश का भी प्रयोग "मर जाना अच्छा है, गर्भ में नष्ट हो जाना श्रेय- हुआ है, नीति वचनों से पूर्ण ऐसा ही ग्रन्थ है : इस स्कर है, बछियों द्वारा घायल हो जाना उत्तम है, प्रज्व- प्रकार के मिश्रित एवं विशुद्ध प्राकृत प्रथों का न जाने लित दावानल मे फेक दिया जाना ठीक है, हाथी से कितना भण्डार काल के कराल गाल मे चला गया। जो भक्षण किया जाना श्रेयस्कर है, दोनों आँखों का फूट शेष है उनका भी न जाने कितना भाग जैन मन्दिरों तथा जाना उत्तम है, निर्धनता श्रेयस्कर है, प्रनाथ रहना अन्य स्थानों पर प्रकाशित पड़ा है।
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