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११४, वर्ष २५, कि.३
अनेकान्त
मा
सहज ही प्राप्त हो जाता है । 'नर्मदेश्वर चतुर्वेदी का हैं, सरलता की दृष्टि से गाथा सप्तशती की अपेक्षा कथन है-"विषय वस्तु की दृष्टि से 'गाथा सप्तशती' वज्जालग्ग की उपयोगिता अधिक जान पडती है । प्रत्यन्त महत्वपूर्ण कृति है । इस ग्रन्थ में कृषिजीवी भार- श्वेताम्बर जैन मुनि जयवल्लभ द्वाग सकलित तीय जीवन का चित्र अंकित है। इस मे मानवीय प्रवृत्तियों 'वज्जालग्ग' संग्रह प्राकृत नीति-काव्य की दृष्टि से सर्वाएवं चरित्रो का निदर्शन है। यह एक प्रकार से तत्कालीन धिक उपयोगी है। इस सग्रह मे धर्म, अर्थ तथा काम रीति-नीति तथा प्राचार-विचार का कोश ग्रन्थ है, जहाँ सम्बन्धी तीन प्रसंगों पर काव्य संकलन हुमा है। विभिन्न अधिकतर जन-साधारण का ही जीवन मुखर है' । विषय प्रतियो मे पार्यायो की संख्या भिन्न होते हुए भी यह को अधिक न बढ़ाते हुए हम नीतिसम्बन्धी कुछ गाथाए प्रधानतः एक सप्तशती हो है । मानव जीवन की सफलता प्रस्तुत करने हैं :
का क्रियात्मक रहस्य खोलने वाला यह नीति-निदर्शन उत्तर धारिणी पिनसणा प्रसरणी पउत्थ पइन । देखिए :प्रसई सज्जिमा दुग्गा प्रण खण्डि सीलम् ॥१॥३६ प्रप्पहियं कायध्वं जइ सक्क परिहिय च कायग्वं ।
अर्थात् चौराहे पर जिसका घर हो, रि भी स्त्री अप्पहिय परहियाणं अपहिय चेव कायव्वं ।। प्रिय दर्शना हो, जो स्त्री स्वय तरुणी हो, फिर भी जिसका अर्थात् पहले अपना हित करना चाहिए, सम्भव हो पति प्रवासी हो; एवं सती कामिनी स्वयं कामिनी पड़ो. तो दूसरे का। अपने और दूसरे के हित में अपना हित सिन होकर भी जो दरिद्रा हो, इस प्रकार की नारियों ही मुख्य है। समथं पुरुष यदि अवसर निकल जाने पर का चरित्र खंडित होता ही है।
दान दें तो क्या लाभ-वारिद के सम्बन्ध में एक अन्योक्ति प्रहसणेण महिला अणस्स प्रहवसंण णीअस्स । उपस्थित है-यह गाथा दिगम्बराचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ मुक्खस्स पिसुणपण जम्पिएण एमेन वि खलस्स ।।१।८२ की है जिनका समय प्रथम शताब्दी माना जाता है गाथा
अर्थात् महिलाओं का प्रेम बिना देखे, नीचों का प्रेम का भाव महत्त्वपूर्ण हैअधिक देखे जाने पर, मुखों का प्रेम दुष्टों के वाक्य से वरिसिहिसि तुम जलहर ! भरिहिसि भुवणन्तराद नीसेसं । एवं खल का प्रेम प्रकारण ही दूर हो जाता है । तहासुसियसरीरे मयभिम वप्पी हयकुडुबे । पउरजवाणी गामो महमासो जो अणं पइठेरो।
अर्थात् हे जलघर ! तुम बरसोगे और समस्त भुवअण्णसुरा साहीणा प्रसई मा होउ कि मरउ ।।२।६७
नांतकों को जल से भर दोगे, लेकिन कब ? जबकि चातक अर्थात् गाव मे अनेक युवक रहते है, मास भी मधु. का कूटब तृष्णा से शोषित होकर परलोक पहुँच जायेगा। मास है, नायिका पूर्ण युवती है, किन्तु उसका पति स्थविर व्यग्यार्थ है कि दानियों को दोनों की सहायता समय रहते है, सुरा भी पुरानी है, जिसको इतनी स्वाधीनता है, वह
ही करनी चाहिए। गृहणी-परिवार मे किस प्रकार प्राच. युवती असती नही होगी तो क्या मरेगी।
रण करे कि वह लक्ष्मी कहला सके :हसिनं अदिठिवन्तं भमि प्रमणि कन्त देहली वेसम् ।
भुजह भुंजियसेसं सुप्पइ सुप्पम्मि परियणं सयले । विट्ठमणक्खित्त मुंह एसो मग्गो कुलवहूणं । ६।२५ पढमं चेय विबुज्झइ घरस्स लच्छी न मा धरिणी।।
अर्थात् कुल वधुप्रो की यह रीति है कि उन्हे बिना अर्थात् जो परिवार के जनों से बाकी बचा भोजन दांत दिखाये हंसना चाहिए, देहली के आगे बढ़े विना करती है, सब परिजनो के सो जाने पर स्वय सोतो है, घूमना चाहिए एव मुंह ऊपर उठाये बिना देखना चाहिए। सबसे पहले उठती है, वह गृहणी नही लक्ष्मी है। मांगना इसी प्रकार के अनेक कथन सरलता पूर्वक देखे जा सकते मरण के समान है, इसलिए सज्जन कष्ट भोगना उचित १. हिन्दी गाथा सप्तशती' नर्मदेश्वर चतुर्वेदी, चौखम्भा १: तुलनीय-तषित वारि विनु जो तन त्यागा। विद्या-भवन, वाराणसी, प्रथम संस्करण, वि० सं०
मुमा करिय का सुधा तड़ागा ॥ २०१७, पृ० २२।
--रा० च० मानस (भयो. काण्ड)