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११२ वर्ष २५, कि०३
अनेकान्त
पीछा करेगी और आगे बढ़ने नही देगी। उसका भी विनय-सुन्दरी कुम्भकार के घर रह रही थी। एक प्रतिकार है। जब वह राक्षसी हमारे निकट पाए, रक्त दिन एक कामुक राजकुमार ने उसे बहुत क्षुभित किया। कनेर की छडी से पाप उसे पीट । उस पर स्नेह न दिखाएं, वह स्थिर रही। राजकुमार की एक न चली। जब वह निष्प्रभ होकर लौट जायगी।"
उसने उसका पीछा नहीं छोड़ा, तो वह भी अपने कमरे इच्छित मार्ग के मिल जाने से मन्त्री ने कन्या के के दरवाजे बन्द कर धर्म जागरण मे लीन हो गई। साथ वहाँ से प्रस्थान किया। कुछ ही क्षणों में राक्षसी नगर मे सर्वत्र यह चर्चा होने लगी, तीन कन्याएं महलों में लौटी। कन्या और मन्त्री दोनो ही वहां नहीं द्वार बंद कर अनशन मे बैठी है। कोई भी शक्ति उसके थे। वह समझ गई, धोखा देकर दोनों ही यहां से चले द्वार को नहीं खोल सकता । गजा के कानो तक भी यह गये है । उसने उनका पीछा किया । मन्त्री सावधान था। बात पहुँची। उसने उद्घोषणा करवायी-- “जो व्यक्ति ज्यों ही राक्षसी निकट आई, रक्त कनेर की छडी से मंत्री इनके द्वार खुलवा देगा और तीनों कन्यानों का मौन ने उसको पीटा। कुछ समय तक तो वह मार खाती हुई समाप्त करवा देगा, उसे प्राधा राज्य तथा राजकुमारी दी उनके साथ चलती रही, पर अन्यतः हतप्रभ होकर लौट जायेगी। प्राई।
मन्त्री निवास के लिए मकान खोज कर तथा भोजन खट्वा गम्भीरपुर के उद्यान में जाकर रुकी । मन्त्री सामग्री लेकर उद्यान में पहुँचा। वहाँ उसे पत्नी नही ने कन्या को वहां छोडा और प्रावास के लिए मकान का मिली। दिग्भ्रमित-सा नगर में घूमने लगा। उसने भी शोध करने हेतु स्वय शहर की पोर चल पडा । उद्यान राजा की उदघोषणा को सुना। सोचा, यह तो मेरे ही घर मे उस समय एक वेश्या पाई। कन्या के सौन्दर्य पर वह बीती है। उसने तत्काल उदघोषणा का स्पर्श किया और मुग्ध हो गई। उसने उसे अपने जाल में फंसाने का प्रयत्न सैकडों व्यक्तियों से घिरा हा पहले पहल वह कुम्भकार प्रारम्भ किया। पास मे जाकर प्रात्मीयता से कहने के घर पहुँचा। नगर-प्रस्थान से विनय सुन्दरी को लगी-"बेटी! तुम कौन हो? कहाँ से पायी हो? वाटिका मे छोड़े जाने तक की मारी घटना उसने सुनाई। तुम्हाग पनि कहाँ है ? यहाँ अकेले कैसे हो?"
विनय सुन्दरी ने तत्काल कपाट खोले और बोल उठी___कन्या ने सहजता मे अपना पूरा परिचय दिया। 'मागे क्या हमा?, वेच्या ने अपनी बात को मोड देते हुए कहा-"बहुत जन-समुदाय के साथ मन्त्री श्री ऋषभदेव के मंदिर प्रसन्नता की बात है । तुम तो मेरी भाभी हो । मन्त्री तो मे प्राया। वहां उसने सेठ सागरदत्त के साथ व्यवसाय मेरा भाई है। और वह तो मेरे घर पहुँच गया है। उसने प्रादि से लेकर स्वय के समुद्र में गिरने तक की घटना पर तुम्हें मेरे घर बुलाने के लिए भेजा है। चलो अपने घर।' प्रकाश डाला। सौभाग्य-सुन्दरी ने स्वर से मन्त्री को पहवेश्या के कपट को कन्या नहीं समझ पाई। वह
___चान लिया और दरवाजे खोल दिये । जन-समुदाय चकित उसके घर पहुँच गई । किन्तु वहाँ के वातावरण को देख
था। कर उसको सन्देह हुआ। उसने पूछा-'मेरे पतिदेव कहाँ
तीसरी कन्या किस घटना पर बोलेगी, यह भी प्रश्न "यहा प्रतिदिन बहुत पति पायेंगे। तुम निश्चित रह-रहकर सभी के मस्तिष्क मे उभर रहा था। सहस्रों रहो और जीवन का प्रानन्द लुटो।" वेश्या ने व्यग्य व्यक्तियों के साथ मन्त्री वेश्या के घर पहुँचा। वहाँ भी कसते हुए कहा।
उसने अपने इतिवत का पूरा ब्योरा कुशलता से सुनाया। कन्या के पैरो के नीचे स धरती खिसक गई। उसने । तीसरी कन्या ने भी मन्त्री को पहचान लिया और कपाट अपनी सुरक्षा के लिए एक कमरे मे प्रविष्ट होकर कपाट खोल दिये । तीनो पत्नियों को पाकर मन्त्री अतिशय प्रमु बन्द कर लिया। वेश्या ने उन्हें खोलने का अथक प्रयत्न दित हो रहा था। राजा ने प्राधा राज्य मन्त्री को दिया किया, किन्तु वे खुल न पाये ।
तथा राजकुमारी का विवाह भी उसके साथ कर दिया।