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काम घट
स्थिति क्यों है ? यह कौन-सा नगर है ? जन-शन्य क्यों वर की खोज मे हूँ। मिलते ही तेरा विवाह उसके साथ
कर द्गो । सम्भव है, पापको देखते ही वह मुझे प्रापको कन्या के नेत्रों से अश्रु टपकने लगे। उसने केवल समर्पित कर दे । यदि ऐसा हो गया, तो मै तो निहाल हो इतना ही कहा-"महाभाग ! पाप शीघ्रता से यहाँ से जाऊँगी।" कन्या की प्राखें झुक गई। अगले ही मण चले जाएं। आपका यहाँ रहना विपदा पो से भरा है। उसने कहा- “यदि मेरा भाग्य चमक जाए, तो प्राप मैं नही चाहती, पाप किसी अनालोचित पकट से घिर राक्षसी से प्राकाशगामिनी विद्या, महाप्रभावक खड्ग जाएँ।"
बह मूल्य रत्न-मजषा, प्रति प्रभावक रक्त व श्वेत कनेर की ___ मंत्री अविचलित रहा। उसने निर्भयतापूर्वक कहा- दो छडिया तथा दिव्य रत्नो की दो मालाएं अवश्य मांग "यहाँ भय ? स्पष्ट करें, किसका भय है ? पराक्रमी के ले।" लिए कोई भय नहीं है।"
मन्त्री वही छुप गया। कुछ ही समय मे राक्षसी वहाँ कन्या ने विनम्रता से कहा-"यहां एक राक्षसी भाई। कन्या के साथ प्रामोद की बातें करने लगी। रहती है। वह बहुत क्रूर है। उसके पाने का समय हो उचित अवसर देखकर कन्या ने वर की याचना की। रहा है, इसलिए निवेदन है, पाप प्रस्थान की शीघ्रता राक्षसी ने कहा--"मैं तो चाहती हैं, पर कोई योग्य वर करे।"
अब तक भी मेरी नजर में नही पाया।" मंत्री ने कहा-"मैं तो उससे साक्षात्कार के लिए कन्या ने कहा-"एक वर तो मैं बता सकती हूँ उत्सुक हूँ। यदि उसके इतिहास की तुझे कोई जानकारी यदि आपको पसन्द हो तो।" । हो, तो मुझे बतला।"
"क्यों नहीं ? बतानो तो सही।" राक्षसी ने वत्सकन्या ने कहना प्रारम्भ किया--"इस नगर के राजा लता से कहा। भीम मेरे पिता थे। वे तापस-भक्त थे । एक दिन एक मन्त्री तत्काल गक्षसी के समक्ष उपस्थित हुा । मास की तपस्या कर पारणा करने के लिए एक तापस राक्षसी उसके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुई। उसने यहां पाए । राजा ने उन्हें राजमहलों मे निमंत्रित किया। दोनों को उसी समय प्रणय सूत्र में प्राबद्ध कर दिया। भोजन परोसने का दायित्व मुझे सौपा गया। तापस मेरे कर-मोचन के अवसर पर मत्री द्वारा अभियाचित सारा सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया। रात्रि में वह मेरे महलो की
ह मेरे महलो की वस्तुएँ राक्षसी ने उन्हे प्रदान कर दी। राक्षसी क्रीड़ा के पोर पा रहा था । द्वारपालो ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
लिए अन्यत्र चली गई। प्रातः राजा ने उसे शूली पर चढ़ा दिया। मार्तध्यान मे
मन्त्री और कन्या हाम्य-विनोद कर रहे थे। सहसा मर कर वह राक्षसा हुा । उसन प्रातशाष का भावना स कन्या ने कहा--"यहाँ रहते हुए मेरा मन ऊब चुका है। राजा को मार डाला। भयभीत नागरिक सम्पत्ति को
यहां से मुझे अपने घर ले चलो।" ज्यों-त्यो छोड़कर चले गये। नगर शून्य हो गया। मेरे
मन्त्री ने उत्तर दिया-"किन्तु मार्ग को अनभिज्ञता प्रति उसको पासक्ति थी, अत: उसने मुझे नहीं मारा।
से हम अपनी मंजिल तक कैसे पहुँच पायेगे, यह एक ऊँटनी के रूप मे वह मुझे यहां रखती है तथा प्रतिदिन
जटिल पहेली है।" यहां प्राकर मेरी सार-सभाल भी करती है। अब वह
कन्या ने कहा-"इसका समाधान तो मेरे पास है। माने ही वाली है, अतः महाभाग ! पाप छुप जाएँ।"
हम दोनों प्रभावक खटवा पर बैठ जाएँ। दिव्य रत्नो की ___ कन्या ने स्मित हास्य के साथ भागे कहा-"एक दोनों मालानों को साथ ले ले । श्वेत कनेर की छड़ी से दिन मैंने उस राक्षसी से कहा-मैं अकेली यहाँ क्या प्राप खटवा को पीटे । यह हमको तत्काल ले उड़ेगी और कर्स ? तुम मुझे भी मार हालो । मेरा सारा जीवन नष्ट इच्छित नगर में उतार देगी। किन्तु इसमें एक कटिनता हो रहा है । राक्षसी ने तब मुझे कहा था, किसी योग्य है और वह है राक्षसी की। उसे ज्ञात होते ही वह हमारा