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________________ काम घट को वह बहत भीड थी। मन्त्री सबसे पीछे था। दान देते. पर छोड दिया। स्वय मानन्द-मग्न शहर में घमता रहता। देते ही जहाज चल पडा। मन्त्री खाली हाथ था। वह देव-योग से वहां की वेश्या के साथ उसकी प्रीति हो गई। किसी प्रकार जहाज पर चढ़ गया । कुछ दूर जाने उसने अपने स्थान पर रहना छोड़कर वेश्या के घर पर ही पर उसने सेठ से याचना की। सेठ ने उसे दान रहना प्रारम्भ कर दिया। कुछ दिन बीत गये, सेठ दिया । मन्त्री वापस पाने के लिए ज्यो ही मुड़ा, उसने पास वही घन पहुँच जाता । वेश्या ने एक दिन सोचा, जो देखा जहाज तो प्रथाह जल में प्रवेश कर चुका है। हाथा व्यक्ति सेठ का व्यागाराधिकारी है. वह अवश्य ही बरत से तैर कर तट तक नहीं पहुँचा जा सकता। वह जहाज कुशल होना चाहिए । यदि उसके साथ प्रीति हो जाए तो मे ही रहा। सयोगवश सेठ मोर मन्त्री का वातीलाप धन का स्रोत फूट पड़ेगा। उसने प्रयत्न प्रारम्भ किया प्रा । मन्त्री बहत चतुर था, उसने वातो प्रसग में सठस पर कोई सफलता नहीं मिली। वह स्वय' मन्त्री के पास प्रत्यधिक निकटता बढ़ा ली। पारस्परिक मित्रता ने एक प्राई और उसे विचलित करने के लिए प्रयत्नशील हुई। दसरे में प्रात्मीयता को भी बढ़ाया। सेठ ने मन्त्री का मन्त्री स्वदार-सन्तोष व्रती था। उस पर उसका कोई योग्य समझ कर बही-खातों का काम सौंप दिया। प्रभाव नहीं पड़ा। वह अपने प्रयत्न मे निष्फल होकर मन्त्री की पत्नी विनयसुन्दरी वाटिका में अकेलो लौट आई। बैठी प्रतीक्षा करती रही। बहुत समय तक भी जब वह मन्त्री व्यवसाय-कुलता तथा सदाचारता से सारे लौट कर नहीं पाया तो वह उसकी खोज में निकली, शहर में प्रख्यात हो गया। किन्त सब प्रयत्न बेकार रहे। वहाँ उसका कोई परिचित एक बार राजा ने एक तालाब खुदवाया। वहाँ नहीं था। सौभाग्यवश वह एक कुम्भकार के घर पहुँच कुछेक ताम्रपत्र निकले । मजदूरो ने उन्हे राजा तक पहैं गई। माखे मिलते ही प्रात्मीयता बढ़ी । वह कुम्भकार ही चाया। राजा के मन मे उनमे लिखित विवरण को जानने उसका प्राश्रय-स्थल बन गया। वह वहाँ निःस कोच रहने की उत्कण्ठा हुई, पर वहां उस लिपि का विशेषज्ञ उसे कोई सही जब तक मन्त्री से पूनः मिलन न हो, तब तक के नही मिला । राजा ने उद्घोषणा करवाई, जो व्यक्ति इसे पर लिए उसने प्रतिज्ञाये की-"भूमि-शयन करूंगी। स्नान सकेगा, उसे प्राधा राज्य तथा राजकन्या दी जायगी। सहस्रों नही करूंगी। लाल कपड़े नही पहनूंगी । पुष्प धारण नही व्यक्तियों ने उसे पढ़ने का उपक्रम किया, किन्त मम करूंगी। विलेपन का प्रयोग नहीं करूंगी। पान नहीं नहीं मिली। मन्त्री को जब यह सूचना मिली, वह राज. खाऊंगी। लवग,इलायची आदि का व्यवहार नही करूंगी। सभा में उपस्थित हुअा। उसने उसे पढ़ा। उसमे लिखा दही, दूध, खीर, पकवान, मिठाई मादि सरस माहार का था-"जहाँ यह ताम्र-पत्र प्राप्त हो, वहाँ से पूर्व दिशा में वर्जन करूंगी । सदैव एकासन करूंगी। किसी विशेष प्रयो. सात हाथ की दूरी पर कटि-प्रमाण भूमि खोदने पर एक बिना घर से बाहर नही जाऊंगी। छज्जों में नहीं बड़ी शिला निकलेगी। उसके नीचे दस लाख स्वर्ण-REIn बैतुंगो तथा विवाह प्रादि उत्सवो मे भी सम्मिलित नहीं मिलेगी।" होऊंगी। मालाप-संलाप मे भी विवेक को प्रधानता त म्र-पत्र मे उल्लिखित रहस्य को जानने की उत्तम दंगी।" अध्यात्म-परायण होकर वह अपने समय का कता सभी के मन मे थी राजा को सबसे अधिक थी। उसी निर्गमन करने लगी। समय पूरे परिवार के साथ राजा वहाँ प्राया। उल्लेख के सेठ सागरदत्त के साथ मन्त्री रत्नदीप पहुंचा। वहाँ अनुसार उत्खनन किए जाने पर सब कुछ वैसे ही मिला। सरपुर नगर में शकपुरन्दर राजा का राज्य था। सेठ ने अप्रत्याशित दस लाख मुद्राएँ पाकर राजा हर्ष-विभोर सारा सामान जहाज से उतारा मोर गोदामों में भर हो गया। मत्री के बौद्धिक सामर्थ्य से राजा तथा जनता दिया। मन्त्री की विश्वसनीयता तथा चतुरता से सेठ दोनोंही बहुत चमत्कृत हुए। राजा ने सौभान्यसुन्दरी कन्या इतना प्रभावितहमा कि व्यवस्था का सारा दायित्व उस का मन्त्री के साथ विवाह किया तथा मापा राज्य देख
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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