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काम घट
मुनि श्री महेन्द्रकुमार प्रथम
प्रकल्पित प्रसंग को देखकर प्रत्येक व्यक्ति के मानस करते हुए कहा-"काम घट मेरे पास नहीं ठहर सका, में जिज्ञासा उभरती है। राजा के मन में भी प्रश्न था । प्रत्युत् मेरा अनर्थ हो गया। सैनिकों की दुरवस्था को उसने मत्री से पूछा-"तूने हमारा इतना सत्कार किस देखकर मेरा कलेजा मुंह की भोर पाता है। तू उन सब बल पर किया ? क्या तेरे पास कोई प्रमोघ शक्ति है ?" को स्वस्थ कर।"
__ मंत्री ने श्रद्धावनत होकर निवेदन किया-राजन् ! मन्त्री ने अपनी भद्रता का परिचय दिया। उसने यह सब तो धर्म का प्रभाव है। जब मापने साधन विहीन चमर को सैनिकों पर बीज कर उन्हे स्वस्थ किया और करके देशान्तर भेजा था, उस समय मुझे काम घट की राजा से कहा-"धर्म के प्रत्यक्ष प्रभाव के प्रति प्रब तो प्राप्ति हुई थी। वह महाप्रभावक। यह जो कुछ भी पाप नतमस्तक हैं।" राजा मन्त्री के कथन का प्रतिवाद प्राप देख रहे हैं, वह सब मेरा नही; उसी का है।" न कर सका । न केवल राजा ने ही, अपितु समस्त नाग
राजा ने कहा--"ऐसी दिव्य वस्तु तो राजभण्डार में रिकों ने भी धर्म के माहात्म्य को स्वीकार किया।
। शत्रुमों का पराभव करने में यह विशेष उपयोगी दबी हुई भावनाए समय पाकर उभर भी जाती हैं । होगी ।"
राजा कुछ दिनों तक धर्म-परायण रहा। फिर क्रमशः मंत्री ने कहा-"प्रधार्मिक व्यक्ति के पास ऐसी वस्तु
घामिकता का प्रभाव क्षीण होता गया और नास्तिकता का नही ठहर सकती। भाप इसकी इच्छा न करें।"
नशा उस पर छाने लगा। एक दिन उसने मन्त्री से कहा सबा ने मंत्री के कथन का प्रतिवाद करते हुए कहा
-"विगत में जो कुछ भी तूने बतलाया था, वह तो -"यह मेरे पास ठहर जायेगी। एक बार तू मुझे इसे दे
धुणाक्षर न्याय से फलित हो गया होगा। उसमें धर्म का दे। यदि नहीं देगा तो मैं बलात् इसे ले लूंगा और तुझे
क्या लेना-देना है ? पापी व्यक्ति भी ऐसा करके दिखला कषित भी करूंगा।"
सकता है । मैं तब इसे स्वीकार कर सकता हूँ, जब कि तू ___मंत्री अपने में सावधान था। उसने काम घट राजा
काम घट, दन्ड, चमर, युगल मादि मुझे सोंपकर पत्नी के को समर्पित कर दिया। राजा ने उसे राजभण्डार में
साथ खाली हाथ पुनः देशान्तर जाए और समद्धि-सम्पन्न स्थापित कर उसकी सुरक्षा मे एक हजार सैनिकों को
कर दिया। उन्हे तीन दिन तक पूर्ण सजग रहने धार्मिक व्यक्ति सरलाशय होते है। वे छल प्रपंचों से के लिए निर्देश प्रदान किये।
दूर रहते है, अतः बहुधा उन्हें समझ भी नहीं पाते । मन्त्री हसरा दिन हमा। मंत्री ने दण्ड को निर्देश दिया, ने राजा के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। घर की सारकाम घट लामो। दण्ड पूर्णतः माज्ञाकारा था। वह सम्भाल राजा को सौंपकर उसने पत्नी के साथ प्रस्थान तत्काल राज-भण्डार में पहुँचा। सैनिकों को मार-पीट कर दिया । अनवरत चलता हुया वह समुद्र के तटवर्ती कर उसने भाहत किया । उसमें से बहुत सारे मूच्छित नगपुर में पहुँचा । नगर की निकटवर्ती वाटिका मे विश्राम होकर गिर पड़े तथा बहुत सारे मुंह से खून उगलने लगे। किया। जनता से इसने मुना, सागरदत्त व्यापार के लिए दण्ड ने काम घट को लिया और मत्री के पास पहुंच जा रहा है । वह जनता को मुक्तहस्त से दान दे रहा है। गया। राजा को जब यह ज्ञात हमा, वह खिन्नमना मत्री मन्त्री के पास कुछ भी धन नही था। वह पत्नी को
चा। उसने अपनी भषार्मिकता को स्वीकार वाटिका में छोड़कर सागरदत्त के पास पहुँचा। याचकों