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बैन वृष्टि में प्रचलपुर
प्ररिकेसरी राजा कौन था? कहा नहीं जा सकता। का विपर्यय बताते हुए वे प्रचलपूर का उदाहरण देते चालय वंश में हुए प्रथम और द्वितीय प्ररिकसरा म स है।"अचलपुर से प्रचलपूर हपा, फिर एलपूर, एलिच. यह एक होगा। मुनि श्री कांतिसागर जी के अनुसार पुर, एलिजपुर प्रादि विभिन्न रूपों में प्रचलित रहा। यह नाम न होकर विशेषण मात्र है। और यह राजा
महानुभाव साहित्य मे प्रलजपुर रूप मिलता है। पौराणिक नही हो सकता, क्योंकि यदि ऐसा होता है तो
भोसलों के काल में प्रचलपुर एक सूबा बनाया गया था। सम्प्रदाय सूचक विशेषण मिलता।
तत्कालीन कागज पत्रों में इसके प्रालजपुर पोर मलजधनपाल ने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ धम्मपरिक्खा यहीं पर पुर रूप मिलते है।" वि० सं० १.४४ में पूर्ण की थी।" प्रचलपुर ईल या अचलपुर के पाठ मोल उत्तर-पश्चिम में स्थित एल नामक राजा द्वारा बसाया गया ऐसा उल्लेख किब- मुक्तागिरि तीर्थ की महत्ता से समीपवर्ती प्रचलपुर भी दन्तियो में प्राप्त होता है । यह राजा जैन धर्मावलम्बी प्रभावित हुपा । एक गाथा मे कहा गया है।" था । इसने पूजार्थ श्री पुर-सिरपुर गांव चढ़ाया था। अचलपुर बरणिय । इसने मुक्तागिरि तीर्थ पर भी प्रभयदेव सूरि द्वारा पावं.
साने मेघ गिरि सिहरे॥ नाथ स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवायी थी। शील- भट्ठय कोडियो निवाण । विजय जी ने इस तीर्थ की यात्रा की थी। ये प्रभयदेव
गया नमों तेसि ॥ सूरि रवांगी वृत्तिकार अभयदेव से भिन्न थे, तथा मल- मयलपुरे दिगम्बर भत्तो प्ररिकेसरी राया। धारी थे। इन्होंने सिरपुर के अंतरिक्ष पाश्र्वनाथ की
तेणय काराविमो महापासामो, प्रतिष्ठा वि० सं० ११४२ माघ सुदी ५, रविवार को की
परट्ठावियाणि तित्थयर-बिम्बाणि ।। थी।२२ . __श्वेताम्बर तीर्थमालामों में प्रचलपुर का एलजपुरि ।
२४. पचपुरे चलोः प्रचलपुरे चकारलकारयोग्यं स्ययो रूप प्राप्त होता है । यथा-"
भवति प्रचलपुरम् ॥२।११८ शब्दानुशासन ।
--मुनि कान्तिसागर, पूर्वोद त पृ.१५६ पर उल्लिखित। एलजपुरि कारंजा नयर.........
........२१ ॥
२५. श्री गोविंदप्रभु चरित्र (वि. भि. कोलते द्वारा सम्पा.) प्राचार्य हेमचन्द्र सूरि ने अपने प्रसिद्ध व्याकरण में
प्रस्तावना पृ. १२; पू. ४४, ४५, ६६, ७३, १३, अचलपुर की प्रासंगिक चर्चा की है। च और ल वर्णों
२२०, ३१८ ई.; लीलाचरित्र-एकांक (गो. नेने २०. पूर्वोक्त, पृ. १५७।
द्वारा सम्पा.) पृ. १२, २७।। २१. पूर्वोक्त, पृ. १५६ ।
२६. नागपुरफर भोंसल्याची बखर, काशीराव राजेश्वर २२. पूर्वोक्त, पृ. १५६ ।
लिखित, (या. मा. काळे सम्पा.), नागपुर १९३६, २३. प्राचीन तीर्थ माला संग्रह, भा. १, पृ. ११४ । मुनि पृ. ३६, ११५, १३६, १४० । कान्तिसागर, पूर्वोद्धृत, पृ. १६०-१६१ ।
२७. इण्डि. ऐण्टि., ख. ४२, पृ. २२० ।