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अनेकान्त
- प्रथम दो ताम्रपत्र अचलपुर से पौर तीसरा पानगर कोकला के दामाद द्वितीय कृष्ण अकालवर्ष को पूर्वी से जारी किया गया था। ये प्रचलपुर निश्चित रूप से चालुक्य राजा तृतीय विजयादित्य के विरुद्ध युद्ध में अमरावती जिले में स्थित अचलपुर ही है । इस शहर को त्रिपुरी नरेश ने सहायता की थी।" विजयादित्य के सेना. रावधानी बना राज्य करने वाले ये राष्ट्रकूट सम्भवतः पति पाण्डुरंग ने चक्रकूट (बस्तर जिला मध्य प्रदेश) पौर मुख्य शाखा के अधीनस्थ और सम्बन्धी ही थे। कुछ किरणपर (बाला घाट जिला, मध्य प्रदेश) को लूटा और पिवान म्ह पूवाल्लिाखत नगरधन ताम्रपत्र वाल राजा जलाया तथा प्रचलपर तक पहेच उसे नष्ट भ्रष्ट कर दिया से सम्बधित मानते हैं। इनके अनुसार ये बरार के राष्ट्र- था।" कूट प्रारम्भ में नगरधन प्रदेश पर राज्य करते थे। मोर . इसी काल में प्रचलपुर जन धर्म वा एक प्रमुख केन्द्र पाच कलचुरियों के माण्डलिक थे। बाद में बादामी बन गया, दृष्टिगत होता है। इसका परिसरवर्ती प्रदेश भी के चालुक्यों के सामन्त बने प्रोर मचलपुर से राज्य करने जैनधर्म की दृष्टि से काफी समद्ध था। इसके परिसरलगे। किन्तु यह उपयुक्त नहीं है। नगरधन ताम्रपत्र वर्ती प्रदेश से जैनधर्म सम्बन्धी पुरातत्त्व की उपलब्धि कलचुरि वंश के शासक का है । इनके पश्चात् इन राष्ट्र- एक स्वतन्त्र लेख का विषय है। इस काल मैं रचित कूटों ने विदर्भ पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। प्रथम तीर्थमालानों तथा अन्य ग्रन्थों में जैन मुनियों एवं प्राचार्यों शासक यही नन्नराज युखासुर था, क्योंकि इसके पूर्वजों के ने प्रचलपूर का कई स्थानों पर उल्लेख किया है । नामोल्लेख होने पर भी स्वतन्त्र लेखादि प्राप्त नहीं विक्रम सं० ११५ (ई० ८५८) में जन प्राचार्य होते।" इसके बाद राष्ट्रकूटों की मुख्य शाखा के ईसवी जयसिंह ने अपना धर्मोपवेशमाला नामक ग्रंथ लिखा जो ७७२ से ईसवी ९४० तक के पभिलेख प्राप्त होते हैं।" वृत्ति-परक है। इसमें प्रचलपुर का प्रयलपुर कहकर कलचुरियों की त्रिपुरी शाखा से इस वंश के वैवाहिक उत्लेख किया गया है।" इस ग्रंथ में एक परिकेसरी सम्बन्ध थे प्रतः कलचुरि एवं शिलाहार राजापों के लेखों राजा का उल्लेख पाया है जिसने एक महाप्रासाद बनवा. में प्रसंग वश इस प्रदेश का उल्लेख प्राप्त होता है। कर तीर्थ कर प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी।
शिलाहार राजा अपराजित के मुरूड ताम्रपत्र से प्रयलपुरे दिगम्बर भत्तो परिकेसरी राया। जात होता है कि तुतीय अमोघवर्ष ने कर्कर नामक राष्ट्र- तेणय काराविमो महापासाम्रो, फूट की राजधानी पर माक्रमण कर उसे जीत लिया।
पराठ्ठावियाणि तित्थयर-बिम्बाणि॥ यह कर्कर प्रचलपुर पर राज्य करने वाले राष्ट्रकूट सामंत
(अचलपुर में एक प्ररिकेसरी नामक दिगम्बर राजा कर्कर से भिन्न प्रतीत होता है। इसकी पुष्टि कुछ अन्य प्रमा। उसने महाप्रसाद बनवाकर तीर्थ कर निम्ब की पभिलेखों से प्राप्त होती है।" , कलचुरि नरेश प्रथम प्रतिष्ठा की।) १३. वा. वि. मिराशी, विदर्भाचे राष्ट्रकूट, संशोधन १६. कलचुरि नपति प्राणि त्यांचा काळ, पृ. १४-१५ । मुक्तावलि, सर २, पृ. १११, युगवाणीनगपुर,
१७. डा. प्रजयमित्र शास्त्री, त्रिपुर, भोपाल २६७१, १९५०, (दिवाली अंक), पृ. ४१६-४२० । का.ई.ई. प्र.४६, साउथ इण्डियन इन्स्क्रिपशन्स, ल. १, पृ. ख.४, पृ. १३३ (भूमिका)।
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३६.४०; मिराशी का. इ.इं.ख. ४, भूमिका पृ. १४. द्रष्टव्य-हीरालाल , पूर्वोद्भुत, क्र. ६, १५; एपि.
इण्डि., ख. ५, पृ. १८८; ख. १४, पृ. १२१, ख. १८. चन्द्रशेखर गुप्त, विदर्भ का जैन पुरातत्त्व, जैन २३. पृ. ८, २०४, २१४ ई.।।
मिलन, नागपुर, (डा. हीरालाल जैन विशेषांक) १५. बद्दिग प्रमोघवर्ष के दामाद द्वितीय बतुग सूदी ताम्र- वर्ष २, सं. २, पृ. ४६.६८ ।
पत्र, एपि. इण्डि.स. ३, पृ. १७६; इडियन हिस्टा. १६. मुनि कान्तिसागर, खण्डहरो का वैभव, वाराणसी, क्वा., ख. २५, पृ. ६१२, कुवलूर ताम्रपत्र, पूर्वोक्त। १९५६, पृ. १५६-१५७ ।