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ष्टि मेंप्रचलपुर
उपयुक्त नहीं है क्योंकि इस अचलपुर की स्थिति उपरोक्त जैन साहित्य में जैसा कि ऊपर कहा जा पुका है वणित कण्हा और वेण्णा नदियो के समीप नहीं है। कहा इसकी स्थिति पाभीर देश में बताई गई है। यह कुछ नदी वर्तमान कन्हान नदी है जो नागपुर जिले के रामटेक विचित्र सी बात है; क्योंकि यह प्रदेश प्राचीनकाल से ही तहसील से बहती हुई भण्डारा जिले में वैनगंगा को मिलाती विदर्भ कहलाता रहा है। हो सकता है ग्रामीरों के इस है। वेण्णा वर्तमान वैनगंगा ही है। पुराणों में इसे इसी स्थान पर कुछ काल प्रभुत्व के कारण इस प्रदेश को नाम से उल्लिखित किया गया है।
प्राभीर देश कहा गया हो। इस उल्लेख की पुष्टि रामटेक तहसील में ही नगर. धन (प्रचीन मन्दिवर्धन) ग्राम से प्राप्त एक ताम्रपत्र से ।
___उल्लेख एक राष्ट्रकूटवशी राना नन्तराज के तिबरखेड होती है जिसे स्वामिराज नामक राजा के अनुज नन्नराज
तथा मुलताई ताम्रपत्रो मे पाया गया है"। इमी राना ने कलचुरि संवत् ३२२ में दिया था। इसमें एक प्रचल.
का एक ताम्रपत्र विदर्भ के प्रकोला जिले के सागलद ग्राम पुर अग्रहार का उल्लेख सीमा बताने के प्रसंग में पाया
से भी पाया गया था। इन ताम्रपत्रो के अध्ययन से है । प्रतीत होता है यह अचलपुर अग्रहार वाकाटक प्रवर..
ज्ञात होता है कि ये राष्ट्रकूट मान्यखेट के राष्टकूटो मे सेन द्वितीय द्वारा पवनी ताम्रपत्र में दिये गये दान के
भिन्न थे। तिवरखेड ताम्रपत्र जाली है। क्योंकि उसमे शक प्रचलपुर ग्राम से भिन्न है। यह वाकाटक ताम्रपत्र
संवत् ५५३ (ई० ६३१) दिया गया है जबकि शेष दो में नगरपन ताम्रपत्र के थोडे समय पूर्व ही दिया गया था
क्रमश: शक ६३१ (ई०७०६.१०)मौर ६१५ (ई. ६६३) और दोनों के प्राप्ति स्थान की स्थिति अधिक दरी पर पाया जाता है। इन प्रभिलेखों मे नन्न राज की वंशावली
निम्न दी गई हैनहीं है। यद्यपि इस अचनपुर की पहचान सम्पादकों ने
दुर्गराज नही की है तथापि उमकी ताम्रपत्र मे वर्णित स्थिति को देखते हए मुझे प्रतीत होता है कि यह अचलपुर रामटेक
गोविंदराज तहसील (जिला नागपुर) में स्थित प्रडेगाव से सम्भवतः
स्वामिकराज अभिन्न होगा जो रामटेक से करीव १० मील पश्चिम मे स्थित है।
नम्नराज पुडासुर ७. मार्कण्डेय तथा वायु पुराणों मे से इसे वेण्या तथा ---
१०. विदर्भ के विषय में लोगों में परम्परा है यहाँ प्रारम्भ मत्स्य और ब्रह्माण्ड पुराणों मे वेणा कहा गया है -
में गवली (पहीर) राज्य करते थे। एक सिमान्ता. एस. एम. अली, ज्योग्राफी प्रॉफ दि पुराणास,
नुसार प्राभीर जाति उत्तर-पश्चिम भारत से क्रमशः प.१२०। ८. वा. वि. मिराशी, कलचुरि नपति प्राणि त्यांचा स्थानान्तरित हो दक्षिण में बस गई। मान्ध्र प्रदेशकाल, पृ० १२८.६; कार्पस इस्क्रि . इण्डि०, ख. । महाराष्ट्र के भाभीर नरेश सम्भवतः इसी जाति के ४, पृ०६१२ इ०।
थे। अत: यह सम्भव है कि ये जाति विदर्भ में बसी ६. नगरधन ताम्रपत्र में प्रकोल्लिका नामक गांव दान
हो जिसकी स्मृति जैन प्रागमों में सुरक्षित रही। में दिया गया। इसके क्रमशः पूर्व, पश्चिम तथा
११. एपि ग्राफिया इण्डिका, ख० ११, पृ० २७६६; दक्षिण में अचलपुर अग्रहार, श्रीपणिका ग्राम तथा
इण्डियन ऐण्टिक्वेरी, स० १८, पृ०२३०; बगाल शूल नदी थी। मिराशी जी ने केवल शूल नदी पौर
एशियाटिक सोसायटी की पत्रिका, ख.६, पृ. अंकोल्लिका की पहचान सूर नदी और मरोली गांव
८६६। रायबहादुर हीरालाल, इन्स्क्रिपशन्स इन
सी० पी० एण्ड वरार, क्र. १६१.२, पृ००८-१० । मे की है। हमारे अनुसार श्री पष्णिका सिरपुर,
१२.५० खु. देसपाण्डे, परास, वर्ष २, मं. प्रकोल्लिका मसोली तथा मचलपुर मडेगांव से
मो० मं० दीक्षित. मध्य प्रदेश के पुरातरष की रूपअभिन्न हैं और इनकी स्थिति वर्णनानुसार है। रेखा, पृ.१९६१