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________________ जैन दृष्टि में अचलपुर चन्द्रशेखर गुप्त (शोध छात्र) विदर्भ के प्रमरावती जिले में स्थित प्रचलपुर का ब्राह्मण को प्रचलपुर में ५० निवर्तन भूमि दान में देने मध्य काल में धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान का उल्लेख पाया जाता है। इस ताम्रपत्र में यद्यपि था। वैसे तो इसकी तिथि प्राचीन भोजकट राज्य मे है उत्कीर्णक की असावधानी के कारण प्रचलपुर के स्थान तथापि यह उनना प्रचीन है यह कहना कठिन है। भोज. पर प्रचलपक उत्तीर्ण हो गया है नयपि उसे यहां प्रभिकट का उल्लेव महाभारतादि' ग्रन्थो में ही नहीं वरन् लिषित शब्द अचलपूर ही है इसमे सन्देह नही। इसके ईस्वी पहली और दूसरी शती पूर्व तथा वाकाटक अभि- सम्पादक ने इस अचलपुर की पहचान अमरावती जिले के लेखों में भी प्राप्त होता है । प्रचलपुर जैन धर्म का केन्द्र प्रचलपुर से की है। किन्तु यह ठीक नही है क्योंकि इसी ग्यारहवीं शती में ही बन चुका था, किन्तु यह कब बसा ताम्रपत्र के अनुसार प्रचलपुर कृष्णालेशालि नामक कटक इस पर कुछ प्रकाश डालना उचित होगा। में समाविष्ट था जबकि अमरावती वाले प्रचलपुर का इस प्रदेश में (विदर्भ) दो अचलपुर नामक नगरो समावेश इसी वाकाटक राजा के चम्पक ताम्रपत्र में का उल्लेख प्राप्त होता है । दोनों नगरों का जैन साहित्य (चम्मक से प्रचलपूर ४ मील पर स्थित है) वणित भोजमे उल्लेख पाया है। कुछ विद्वानों के अनुसार ये दोनों कट (वर्तमान भातकुली, जिला प्रमरावती) में होता अभिन्न थे किन्तु जैसा कि हम देखेंगे यह तथ्य नही है। था। दोनों अभिलेख एक ही काल के होने के कारण यह दोनों अलग-अलग स्थानों पर बसे थे और दोनो की नीव अभिन्नता उपयूक्त सिद्ध नहीं होती। विभिन्न कालों में पड़ी। इस प्रचलपुर का उल्लेख जैन प्रागम साहित्य में वाकाटक महाराज द्वितीय प्रवरसेन के ३८वें वर्ष में होता है। होता है। पिण्डनिज्जुत्ति (५०३), पावश्यक टीका (पृ. प्रवरपुर से दिये गये ताम्रपत्र मे, जो पवनी (जिला । ५१४) तथा देववाचक क्षमाश्रमण (पृ. ५० प्र.) आदि भण्डारा, विदर्भ) से प्राप्त हुप्रा है, दुग्यं नामक एक ही एक जैन ग्रन्थों में कहा गया है कि प्रचलपुर भाभीर देश में १. भोजकट विदर्भ की प्राचीन राजधानी थी जिसे कृष्ण स्थित था । इस अहिट्ठाण के समीप कण्हा और वेण्णा से हारने पर रुक्मी ने बसाया था। इसके पूर्व नदियां बहती थी। इन नदियों के दोनाब को बम्भदीव कुण्डिनपुर राजषानी थी। जैन साहित्य में भी यह कहते थे तथा यहाँ ५०० तावस रहते थे। कहत थ तथा यहा ५०० उल्लेख प्राप्त होता है। महाभारत (गीता प्रेस डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने इसे एलिचपुर (अचलपुर सस्क०), सभापर्व, ३१।११-१२; उद्योगपर्व १५८१. अमरावती जिला) से पभिन्न माना है। किन्तु यह भी १४-१५ । डा. जगदीशचद्र जैन प्रागम साहित्य मे ३. डा. वि. भि. कोलते, द्वितीय प्रवरसेन का पवनी वणित भारतीय समाज, पृ. २७४ । ताम्रपट, विदर्भ सशोधन मण्डल वार्षिक १०६७, २, भरहुत अभिलेख क्र. ए. २३, २४ कार्पस इन्स्क्रिप. पृ. २०-३०। शनम् इण्डि के रम् खं. २, भाग २, पृ. २२, पूर्वोक्त ४. पूर्वोक्त, पृ. २६ । ख. ३, पृ. २३५ ई. वा. वि. मिराशी, वाकाटक ५. वाकाटक राजवश का इतिहास, पृ. १५५ ई० । राजवंश का इतिहास पौर प्रभिलेख (डा. अनयमित्र ६. लाइफ इन एंशिएण्ट इण्डिया एज डिपेक्टेड इन जैन शास्त्रीद्वारा अनूदित), पृ.१५५.१६१ । कैनन्स, पृ. २६३।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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