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कंभारिया के संभवनाथ मंदिर की अनदेवियां
है) सर्वव केवल ऊपरी दोनो भुजामों में ही चक्र धारण दक्षिणी अधिष्ठान पर चतुर्भुज सर्वास्त्र-महाज्वाला किये प्रदर्शित किया गया है । विमलवसही मोर लूणवसही (ग्यारहवी विद्या देवी)की ललितासन मुद्रामे उत्कीर्ण मूर्ति मन्दिरों (दिलवाड़ा : राजस्थान) पौर शांतिनाथ मंदिर में देवी को दो ऊध्वं भुजाम्रो मे दो ज्वाला पात्र स्थित (कंभारिया: उत्तरी गुजरात) के छतों पर उस्कोणं १६ है, और निचली दाहिनी मे वरद मुद्रा प्रदर्शित है। देवी देवियों के साम हिक अंकन में भी अप्रति चक्रा को केवल की निचली वाम भुजा की वस्तु भग्न है । देवी के चरणों ऊवं दो भजामों में चक्र धारण किये प्रदर्शित किया गया के समीप वाहन मेष को उत्तीर्ण किया गया है, जब कि ह। फलतः सम्भवनाथ मादर का उपयुक्त समा आ ग्रन्थों में देवी का वाहन शकर बताया गया है। तियों को नि:सन्देह विद्या देवी प्रप्रतिचक्रा का चित्रण
पश्चिमी अधिष्ठान पर उत्कीर्ण चतुर्भुज देवी को स्वीकार किया जा सकता है। वैसे प्रथम तीर्थंकर ऋषभ- ललितासन मुद्रा मे भद्रासन पर प्रासीन मूति मे देवी की नाथ की यक्षी चक्रेश्वरी भी शिल्प मे प्रचलित विद्या देवी । ऊपरी दाहिनी बायी भुजानों मे क्रमशः धन का थैला व अप्रतिचका के स्वरूप की तरह ऊपरी दोनो हाथो मे चक्र अकुश अकिन है; जबकि निचली दाहिनी भुजा से वरदधारण करतो है पर चूकि कुभारिया मदिरों की भित्तियों मुद्रा प्रदर्शित है और समक्ष की वाम भुजा भग्न है । पर यक्ष-यक्षियों का चित्रण लगभग प्रप्राप्य है, मत: दोनो। ऊपरी भुजामों में स्थित धन के थैले और अंकुश के आधार भुजामों मे चक्र से युक्त देवी की विद्यादेवी प्रप्रतिचका पर इस देवी की निश्चित पहचान सर्वानभति (कबेर के से पहचान ही उचित व तर्क संगत है।
समान) यक्ष की शक्ति से की जा सकती है, जिसका ____ मूल प्रसाद के दक्षिणी भित्ति पर उत्कीर्ण एक चतु. उल्लेख प्रतिमाशास्त्रीय ग्रथों मे सर्वथा अप्राप्य है। भुज देवी प्रतिभग मुद्रा में खडी है। देवी के ऊपरी मन्दिर के पूर्वी व पश्चिमी प्रवेश द्वारो के उघोढी दाहिनी व वाम भजाम्रो मे क्रमशः गदा (सुक ?) व वज (door sill) पर द्विभुज प्रबिक) का चित्रण देखा जा स्थित है, जब कि निचली दाहिनी व वाम भुजायों मे सकता है, जिसमे दाहिनी भुजा मे पाम्रनुबि से युक्त देवी वरद मुद्रा और फल चित्रित है। देवी के दाहिने पार्श्व मे वाम भुजा से गोद में बैठे बालक को सहारा दे रही है। उसका वाहन भैस (?) उत्कीर्ण है। वाहन के कारण गूढमण्डप के द्वार की प्राकृतियां काफी भग्न हैं पर द्वार देवी की निश्चित पहचान सन्देहास्पद हो गई है। क्योंकि शाखा के नीचे (dor frame) चतुर्भुज चक्रेश्वरी की जहाँ प्रायुधो के प्राचार पर देवी की निश्चित पहचान प्राकृति उत्कीर्ण है, जिसकी प्रवशिष्ट दो ऊपरी भुजामों सातवीं विद्या देवी काली से की जानी चाहिए, वहीं वाहन में चक्र प्रदर्शित है । सोहवती (door lintel) पर उत्कीर्ण उसे छठी विद्या देवी पुरुषदत्ता का चित्रण प्रतिपादित लक्ष्मी की ६ प्राकृतियों में समान रूप से देवी की ऊपरी करता है। जो भी हो पायुधों के माघार पर देवी की दोनों भुजाओं मे पचित्रित है। और निचली दाहिनी व पहचान काली से करके गलत वाहन का चित्रण कलाकार बायीं भुजामों में क्रमशः वरदमुद्रा प्रौर फल प्रदर्शित है। की भूल मानी जा सकती है।
सप्त सर्पफणों के घटाटोपो से शीर्ष भाग में प्राच्छामूल प्रसाद को पश्चिमी भित्ति की जंघा पर चतुर्भुज दित पार्श्वनाथ की १५वी शती को दो सपरिकर प्रति. सरस्वती की त्रिभंग मुद्रा में खड़ी) मूर्ति उत्कीर्ण है। दो माएं गूढमण्डप में स्थापित है। दोनों ही मूर्तियो मे मूलपाववर्ती चामरधारी सेविकामों से वेष्टित सरस्वती की नायक की प्राकृति गायब है। गर्भगृह मे स्थापित संभवऊपरी दाहिनी व बायीं भुजामों में क्रमशः सनाल कमल नाथ की प्रतिमा भी १५वीं शती से पूर्व को नही प्रतीत (long salk spiral lotus) व पुस्तक चित्रित है; जब होती है। कि निचली दाहिनी व बायी भुजामों में क्रमश: वरदाक्ष संभवनाथ मन्दिर की मूर्तियों के अध्ययन के प्राधार मौर कमंडलु प्रदर्शित है। देवी के बायी मोर वाहन हस पर यह स्पष्ट है कि अप्रतिचक्रा व वाकुशा को इस उत्कीर्ण है।
मन्दिर में सर्वाधिक महत्व दिया गया है। *