SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पनागर के भग्नावशेष कस्तूरचन्द जैन एम.ए. मध्यप्रदेश में जबलपुर शहर से ११ मील दूर एक एक प्रतिमा का प्रासन मात्र शेष है । इस अवशेष से नगर अाज भी प्राचीन वैभव के प्रतीक कतिपय अवशेषों प्रतिमा ध्यानस्थ मुद्रा मे अकित रही ज्ञात होती है । को लिए हुए स्थित है । यहाँ मधू काछी के मकान के ठीक प्रासन पर त्रि-पुष्पाकृतिया है। उनके नीचे दोनों ओर पीछे एक धेरे में कतिपय शिल्पावशेष विद्यमान है, जिनकी मिद्धाकृतियाँ तथा उनके मध्य में एक पूरपाकृति के रूप मे जैनेतर समाज द्वारा प्रतिदिन पूजा-अर्चा सम्पादित होती अलंकरण है। इसके एक ध्यानस्थ मुद्रा मे छोटी प्रतिमा है । इस संग्रहालय में जैन अवशेषो की बहुलता है, जिनका का अंकन है जिसके नीचे एक वृषभाकृति का प्रकन भी प्रकन निम्न रूपेण प्राप्त होता है : है। इससे प्रतिमा प्रादिनाथ की अकित रही ज्ञात देशी पत्थर पर अकित शिरविहीन पद्मासन मुद्रा मे होती है । एक प्रतिमा के गले की तीन रेखाए स्पष्ट दिखाई देती एक अवशेष इस संग्रहालय मे ऐसा भी है जिसको हैं । कन्धों पर केशराशि का अंकन है। प्रतिमा का प्रासन एक ओर एक अलकृन देवी का प्रकन है। यह देवी अपने जबलपुर हनुमान ताल बड़े मन्दिर में विराजमान प्राचीन बाये हाथ से एक बालक को सम्भाले हुए है। इसी प्रतिमा के समान त्रिपुष्पाकृतियो से अल कृत है। पुप्पा- प्रतिमा के समीप कायोत्सर्ग मुद्रा मे दो तीर्थकरों का कृतियों के नीचे दो सिद्धाकृतिया दोनो ओर अकित है, अकन भी दृष्टव्य है। जिनके मध्य एक वृषभाकृति भी दिखाई देती है । प्राचीन कालीन एक मानस्तम्भ का शीर्ष भाग भी प्रतिमा के दायें-बाये शासन देवतामो का अकन अवशेषों में विद्यमान है। अवशेषो के चारो ओर छोटी दिखाई देता है। एक ओर अलंकृत वेशभूषा में एक नारी प्राकृति में प्रतिमाओं का प्रकन आज भी स्पष्ट है । प्रवका अंकन है । दूसरी ओर भग्नावस्था में एक मानवाकृति शेष का कुछ प्रश भूमि मे दबा हुपा है। प्रकित है। केश राशि एव अंकित वृषभाकात स यह एक शासन देवी का अंकन भी सग्रहीत है। देवी का प्रतिमा प्रादिनाथ की रही ज्ञात होती है। ऐसा प्रतिमाएँ वाहन सिंह रहा दिखाई देता है। वाहन मुख विहीन बहुत कम देखने मे माई है जिनमे ऐसी दोन विशषताएं अवस्था मे है । देवी के शीर्ष भाग पर तीर्थकर प्रतिमा का उपलब्ध होती हैं। अंकन है। देवी की प्राकृति सुन्दर है । उसके एक हाथ द्वितीय प्रतिमा का केवल शिर ही शेष है । ।क अव. में बालक है । गले में हार और पीछे भामण्डल भी है। शेष भामण्डल, शिरोपरि त्रि-छत्र, एव उद्घोषक से युक्त प्रकन से प्रतिमा अम्बिका देवी की रही ज्ञात होती है। है। एक मोर सवार से युक्त गजाकृति का प्रकन भी है। परिकर के ऊपरी अश में उड्डायमान सपत्नीक देवों प्रथम मूर्ति के समान ही प्रलकृत शिरविहीन एक को दोनों ओर निर्मित किया गया है। उनक नाच ऐसी प्रतिमा है जिसके पासन मे चिन्ह स्थल पर एक और सिद्धाकृतिया तथा उनक नारी प्राकृति सी प्रकित दिखाई देती है। इस प्रतिमा भट्टारक गद्दी के परिकर मे अकित देवो के प्रकन से ऐसा ज्ञात होता है भ० शान्तिनाथ मन्दिर के समीप बलेहा तालाब के मानो उक्त प्राकृति नीलांजना की अंकित की गई हो किनारे छह और प्रष्ट स्तम्भों पर आधारित तीन मड़ियाँ मौर ऐसा दिखाकर मानो मादिनाथ की अविचल ध्यानस्थ । विद्यमान हैं जिनमें चरण रखे हुए हैं। मन्दिर मे जती मुद्रा को प्रकित किया गया हो । बाबा की गद्दी आज भी बताई जाती है ।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy