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________________ पाहड़ के जैन मन्दिर का प्रप्रकाशित शिलालेख ९७ का एक शिलालेख एक लिंग मंदिर से मिला है। (२) ये। कर्म सकलं धमाय शांतात्मनः प्रज्ञा श्रीपति के २ पुत्र मत्तट और गुन्दल हुये। ये दोनों शास्त्रविवेचनाय जनता त्राणाय शस्त्रग्रहः राजा शक्तिकूमार' के समय उच्च पदों पर थे। कायो यस्य परोपकारविधये सत्याय गी. केवशक्तिकुमार का शासनकाल का वि सं १०३४ का लम् ।। गभीरान्महत: श्रियोऽधिवसतेरतः शिलालेख मिला है। स्फुरतेजस: । सत्वाधाद्विबुधापभुक्तविभवा लेख पागे से भी कुछ खंडित है। ३ पंक्ति का स्वच्छन्दमुक्तस्थितेः। प्रारम्भ का कुछ भाग और अन्त का पद श्लोक में (३) म वपुस्तापाति भत्त्राणिनां क्षीराब्धेरिवशीठीक नहीं बैठते हैं। इससे प्रतीत होता है कि सम्भवत: प्रागे का भी कुछ खंडित हो। तदीधितिर भूत्तस्मात्युत: श्रीपतिः। श्रीमदल्लट नराधिपात्मजो यो बभूव नर वाहनाह्वयः । लेख पढ़ने में सुन्दर खुदा हुअा है । लिपि बहुत सोध्यतिष्ठत पितुः पद सुधीश्चंतमक्षपट ले ही सुन्दर है लेख पढ़ने में डा. दशरथ शर्मा और रत्नचन्द्र अग्रवाल से सहायता ली है अतएव न्यवेशयत् । दृष्टस्तेनात्मना तुल्य: स प्रकृत्या मैं कृतज्ञ हूं। समाश्रितः कर (रु) णा निधि गुंजाने . . . . लख का मूल अश (४) विप्रेभ्यो विधिवद्वितीर्ण विभवाद्वैकुण्ठनि(खंडित) प्ठात्मनः शांताद्वाक्यपदप्रमाणविदुष (:) (१) [दु] उर्द्धरमरि यो देवपाल बलात। चचच्चंड तस्मादभून्मत्तटः । सत्यत्यागपरोपकार करुणा गदाभिघात विदलद्वक्षस्थलं संयुगे। निस्त्रिश सौ (शो) जिने (वै)क स्थितिः श्री क्षत कंधरोदरसिराबंधं कबंधं व्यधात् । मान्गुन्दल इत्य xxxहिमाभ्राता नुजोस्याअस्याक्षपटलाधीशो मयूरोमघरध्वनिः । प्रभूद- भवत् । तौ गुणातिशय शालिनावुभौ राजनीतिभ्युद्धतः स्वामी सत्पक्षः प्रभुशम्निभृत् । निपुणौ महो [जसौ] . . . . . उत्पत्तिः कुल भूषणाय विभवो दोनात (त्ति) (५) मत्रिस्वपि पदमावापूतः (पतूः) क्रमेण] । विच्छि [त्त] सर्व व्यापारकर्तारौ तौ द्वौ कटक भूषणौ राज्ञा नरवाहन के शासन काल मे शवों जैनों और बौद्धो शक्तिकुमारेण कल्पितौ स्वौ भुजाविव । एतमे शास्त्रार्थ हुमा था। दिगम्बर प्राचार्य समरचन्द्र स्मिन्प्रणत क्षितोश्वर शिरश्चूडामणिxxx ने जो षष्ठि शलाका पुरुष चरित ग्रथ के कर्ता थे xxत पाद पंकजयुगे मन्वादि मार्गानुगे चद्राइसमे भाग लिया था। ७. राजा शक्तिकुमार के राज्य में प्रसिद्ध ग्रंथ "जम्बू दित्यमरुत्कुबेरमघवद्वैवस्वता गि . . . . . . . . दीवपण्णत्ति" लिखी गई थी। xxx कार्य तीन परिणाम एक कुम्भकार जंगल मे गया और मिट्टी खोदने लगा। मिट्टी ने सवेदना भरे शब्दों में कहा-भाई कुम्भकार ! तू निर्दय होकर मेरे पर तीक्ष्ण प्रहार कर्ता हुमा मेरे अस्तित्व को ही कुरेद रहा है, पर सावधान रहना, एक दिन तुझे भी मेरे साथ मिलना पड़ेगा। लकड़ियों का गदर लाने के लिए एक लकड़हारे ने घर से प्रस्थान किया। यही उसकी प्राजीविकाका मख्य साधन था। सघन निर्जन वन में जाकर तीक्ष्णतम कुल्हाड़े से वृक्ष काटने लगा। तीखे प्रहार लगते ही पेड़ कराह उठा और रुदन के साथ पुकार उठा-लकड़हारे ! अभी तो तू मुझे काट कर मेरे स्वणिम जीवन को समाप्त कर रहा है, पर याद रखना एक दिन तुम भी मेरे साथ जलना पडंगा। माली उद्यान में गया और सुकोमल कलियों को तोड़ने लगा। कलियों को यह सब कैसे सह्म हो सकता था। माली से तर्जना की भाषा में कलियाँ बोल पड़ीं-मालाकार! हमारे जीवन के साथ यह खिलवाड़ क्यों हो रहा है? क्या हमारे जीवन का कोई मूल्य नहीं है। माली का नहीं, कलियों ने उष्ण नि.श्वास छोड़ते हुए कहा-माली ! वह दिन भी दूर नहीं है, जब एक दिन तुझे भी हमारी तरह मुरझाना पड़ेगा।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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