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________________ आहड़ के जैन मन्दिर का अप्रकाशित शिलालेख श्री रामवल्लभ सोमाणी श्राह उदयपुर नगर के समीप स्थित है । यह प्राचीन नगर किसी समय बड़ा उन्नत था । जैन संस्कृति का यह केन्द्र रहा है । आज भी यहां ६ बड़े मध्यकालीन जैन मंदिर हैं । यहाँ खुदाई में 5वीं शताब्दी की जैन प्रतिमा भी मिली है जो इस समय राष्ट्रीय संग्रहालय में केमिकल ट्रीटमेंट के लिये गई हुई है । यहां दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही सम्प्रदायों के मंदिर हैं प्रस्तुत लेख को सर्व प्रथम गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा ने देखा था और इसका संक्षिप्त अंश इन्होंने राजपूताना म्यूजियम रिपोर्ट में छपाया भी है। पूरा भाग अब तक प्रकाशित है । लेख में केवल ५ पक्तियां ही मिली है । ऊपर का भाग भी कुछ टूटा हुआ है । लेख के प्रारम्भ में सम्भवतः अल्लट का वर्णन है । इसमें "देवपाल" को मारने का वर्णन है। यह प्रतिहार राजा देवपाल' था । प्रतापगढ़' का वि. स. ६६६ के शिलालेख में मेवाड़ के शासक भर्तृ पट्टकों "महाराजाधिराज" लिखा है और इसमे प्रतिहार राजा का नाम स्वेच्छा से छोड़ दिया है। जब कि इसी लेख के आगे के भाग प्रतिहार राजा महेन्द्रपाल एवं उसके तंत्रपाल माघव द्वारा दान देने का उल्लेख है। इससे प्रतीत होता है कि प्रतिहारों और मेवाड़ के शासकों के मध्य अच्छे सम्बन्ध नही थे । राष्ट्रकूट राजा कृष्ण के करहाड़ और देवली के लेखों में उल्लेखित किया है कि जब उसके दक्षिण के १. प्रोझा उदयपुर राज्य का इतिहास : पृ० १२४ का फुटनोट प्रल्लट के शासन काल मे श्वेताम्बरों मौर दिगम्बरों में शास्त्रार्थ होने के वर्णन मिलते हैं । २. एपिग्राफिया इण्डिका भाग १४ पृ० १७६-८६ । ३. उक्त भाग ५ पृ० १५४ । भाग ४ पृ० २८४ । महत्वपूर्ण दुर्गों पर विजय प्राप्त कर ली तो प्रतिहार राजाश्रों के दिल में चित्तौड़ को वापस हस्तगत करने की इच्छा समाप्त हो गई इससे प्रतीत होता है कि मेवाड़ के शासकों को राष्ट्रकूट राजानों ने प्रतिहारों के विरुद्ध सहायता दी थी । इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि अल्लट राजा की मां, और भर्तृपट्ट की रानी राष्ट्रकूट वंश की थी । आहड़ के विसं ० १००८ और १०१० के शिलालेख में वहां कर्नाट प्रदेश के व्यापारियों के निवास का भी उल्लेख किया गया है । देवपाल का शासन काल बहुत ही अल्पकालीन रहा था । प्रतापगढ़ के वि सं० १००३ के लेख में महेन्द्रपाल का शासक के रूप में उल्लेख है । इसके वि सं ० १००५के सियोडोनी के लेख में देवपाल के उत्तराधिकारी का इस प्रकार देवपाल सं० १००४ में राज्यगद्दी पर बैठा और मेवाड़ के शासक अल्लट से युद्ध करते हुये यह वीरगति को प्राप्त हुआ । अल्लट के सारणेश्वर के मंदिर आहड़ के वि सं० २००८-१०० के लेख में उसके अक्षपट्ट लिक का उल्लेख है । इसी अक्षपट्टलिक' मयूर के वशकों का यह प्रस्तुत लेख है। इसकी स्वामी शक्ति की प्रशंसा की गई है। इसका पुत्र श्री पतिहुआ जो राजा नर वाहन के समय अक्ष पट्टलिक था । नर वाइन के शासनकाल का वि. सं. १०२८ ४. उक्त भाग १ पृ० १६२-१७६ । ५. "अक्षपट्टलिक एवं उच्च राजकीय अधिकारी था । यह उच्च रेवेन्यू रेकार्डस एवं लेखा विभाग से सम्बन्धित था।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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