SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कलपरि काल में जन धर्म ५ दक्षिण कौशल के कलचुरि एवं जनधर्म-दक्षिण भी सहन कर जीवित रहा, यह उसके सिद्धान्त की कौशल के कलचुरियों के अभिलेखों में जैनधर्म का विशेषता थी। उल्लेख प्राप्त नहीं होता है । परन्तु उस क्षेत्र के अनेकों विज्जल देव के राजस्व काल में जैनधर्म उन्नत रहा। स्थल से प्राप्त जैन मूर्तियो से उस क्षेत्र में जैनधर्म के सम्राट् स्वयं धर्म की प्रभावना के लिए अग्रसर रहते थे। प्रसार एवं पस्तित्व का बोध होता है। जैन मूर्तियां, उन्होंने स्वय कई जैन मन्दिरों का निर्माण कराया । उनका रतनपुर, मल्लार एवं पारंग स्थलों से प्राप्त हुई हैं। अनुकरण उनके सामंतों और प्रजा जनो ने किया था। वि. कल्याण के कलचुरि एवं जैन धर्म-कल्याण के कल सवत १०५३ मे माणिक्य भट्रारक के निमित्त से कन्नडिगे चुरि नरेशो के काल में भी जैनधर्म का अस्तित्व प्रमा- मे एक जिन मंदिर बना था। सं० १०८४ में कीर्ति सेट्टि णित होता है। इस वंश के प्रमुख नरेश विज्जल एवं ने योन्नवति वेल हुगे पौर वेण्णे चूर में श्री पार्श्वनाथ के उनके अनेक राज कर्मचारी जैन धर्म के पोषक थे। सन् मदिर बनवाये थे। कलचुरियों के शिलालेखों में जिन १२०० में कलचुरि राजमत्री रे चन्मय ने श्रवण बेल- भगवान की मूर्ति यक्ष-यक्षणियों सहित अंकित रहने का गोला में शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी वर्णन है। थी। विज्जल के काल मे जैन धर्म का अस्तित्व घट गया लिंगायतों के वासव पुराण में लिखा है कि विज्जल एवं लिंगायत संप्रदाय का प्राबल्य हमा। 'वासव-पुराण' के प्रधान बालदेव जैन धर्मानुयायी थे। उनकी मृत्यु के एवं विज्जल वीर चरित' मे जैन एवं शैव धर्माव- पश्चात् उनके भाजे वसव की प्रसिद्धि एव सद्गुणों से लम्बियो के मध्य हुए सघर्ष का वर्णन है । प्रभावित हो विज्जल ने उसे अपना सेनापति एव कोषा ध्यक्ष नियुक्त किया। बासव ने अवसर का लाभ उठकार हॉवों ने धर्म प्रचार हेतू हठयोग का प्राश्रय लिया। अपने धर्म प्रचार हेत राजकोष का खूब रुपया खच वे चमत्कारिक कृत्यों द्वारा जनता को मुग्ध करने लगे। किया। इस प्रकार विज्जल एवं वसव मे मनोमालिन्य उनमें एकांत रामय्य मुख्य था। उस समय अम्बलूर जैन बढ़ गया। विज्जल ने हल्लेइज एवं मधु वेय्य नामक दो धर्म का केन्द्र था। रामय्य ने जैनियों को सताया एवं जंगमो की प्रांख निकलवा ली। यह सुन वरूव कल्याणी उनकी मूर्तियों को तोड़ना प्रारम्भ किया। जैनियों द्वारा से भाग गया परन्तु उसके द्वारा भेजे गये जगदेव नामक विज्जल से शिकायत की गई। विज्जल ने रामग्य को व्यक्ति ने विजल का अंत कर दिया। समझा कर एवं उसके सोमनाथ के मंदिर को कुछ भेट कर विदा किया। इस मन्दिर में जनो पर अत्याचार के ५. विज्जल के समय जैन धर्म एक प्रमुख धर्म थाचित्र भी उत्कीर्ण है। किन्तु जैन धर्म इन अत्याचारों को फ्लोट डाइनेस्टीज माफ कनारीज डिस्ट्रिक्ट्स पृ० ६०. ४. मोरिवल जैनिज्म-श्री भास्कर मानंद पृ० २६१, ६. मीडिवल जैनिज्म-बी भास्कर मानन्द पृ० २८१, जैनिज्म एन्ड कर्नाटक कल्चर-शर्मा १९४० पृ० जैनिज्म एण कर्नाटक कल्चर शर्मा पृ० ३५-३८ । ३५ से ३८ । ७. जैन ऐण्टीक्वेरी ६, पृ०६७-६८ । PAY
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy