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१२, पर्व २५, कि०३
अनेकान्त
जिसमें प्राचीन उज्जयिनी से प्राप्त ६७ तीर्थङ्कर प्रति- पद्म का है व पुष्प प्रलंकरण है । संग्रहालय मू. क्र. २०७ मानों को काल क्रमानुसार रखा गया। संग्रहाध्यक्ष श्री में जेरपर (Jarper) निमित मुनि सुव्रतनाथ की प्रतिमा विष्णु श्रीपद नाकणकर ने इनको एकत्रित करने में पर्याप्त है। वाहन या पादस्थल पर कच्छप उत्कीर्ण है। प्रतिमा बम किया। श्री भाटी जी ने माखनवर नामक स्थान में पद्मासन व ध्यान मुद्रा है। प्रभा मडप मे चपक वृक्ष से, जो शिप्रा तट पर कालियादह नामक स्थान के क्षत्र. है व दोनो और वरुण यक्ष व नरदत्ता यक्षिणी है जो फल मे हैं, एक विशाल जैन तीर्थ र प्रतिमा को नदी के
ललितासन मे है । इस प्रस्तर फलक का प्राकार अथाह जल मे निकाल कर विश्वविद्यालय के परमान
EX २२४१० से० मी० का है। प्रतिभा प्राप्ति का हालय की प्रदान की।
धान कठाल है जिसे मेडम क्राउझे ने 'कान्तारवन' कहा उज्जैन में एक अन्य वृहद् जैन मूनि संग्रहालय है जो
है, (देखे विक्रम स्मृति ग्रन्थ में लेख-उज्जैन में जैन धर्म) "जयमिह पुग जैन मूनि मग्रहालय' के नाम से प्रसिद्ध
प्रतिमा के पाद स्थल पर दो पक्ति का अभिलेख है-कुछ है। वह संग्रहालय जैन पुरातत्व को दृष्टि से पात्यन्त
ग्रम्पान रूप से 'ग्राचार्य श्री विजयराज सूरि विराजिता', महत्वपूर्ण है और यहाँ प्रतिवर्ष अनेक शोधकर्ता जैन प्रति
अकित है । लिपि पूर्णतया परमार काल के अन्तिम समय मानों का अध्ययन करने आते है। इस संग्रहालय में
की है अर्थात् १.१५ ई० के पास-पास मे स्थापित की प्राचीन मालवा-प्रदेश की एकत्रित जिन मूर्तियाँ है । ज्ञान
गई। पीठ के सौजन्य से इस संग्रहालय को व्यवस्थित करने का
____ अाठवे (तीर्थक र चन्द्रप्रभ की प्रतिमा विशेष कलाकार्य लगभग डेढ वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया गया। ज्ञानपीठ
मक है। पद्मासन में ध्यान मुद्रा मे यह सगमरमर की के प्रमुख लक्ष्मीचन्द्र जी जैन व कार्यकर्ता श्री गोपीलाल जी 'प्रमर' ने इस दिशा में विशेष रुचि लेकर पूर्ण
प्रतिमा है, नीचे चिन्ह चन्द्रमा उत्कीर्ण है। प्राकार संग्रहालय की जैन प्रतिमानो को ऐतिहासिक काल क्रम
२५४१८४ ११ से. मी० है व उज्जैन के हासामपुरा में रखने, उन पर क्रमाकीकरण करने और यहाँ की लग
से उपलब्ध हुई है। श्री वत्स लांछन है व ध्यानमग्नता भग ५१३ प्रस्तर एव कास्य प्रतिमानों का 'केटलाग'
लाग का भाव अंकित है । इसका क्रमांक २०८ है। बनाने का कार्य मुझे सौ।। 'केट लाग' ज्ञानपीठ की भोर तत्पश्चात् मूर्ति क्रमांक २०६ व २१० में पाश्वनाथ भेजा जा रहा है जो महावीर भगवान के ढाई हजार वर्ष व ऋषभनाथ अकित है । सप्तफण छाया व अन्य पर के समारोह पर प्रकाशित किया जायेगा। इस प्रकार वृपभाकृति से यह पहचानी जाती है। दोनों काले सलेटी सम्पूर्ण मालव प्रदेश की जन प्रतिमानों का विवरण, कला पत्थर से निर्मित है। प्राकार २६४२४४१० से० मी० सौन्दर्य व उनकी जैन प्रतिमा विज्ञान के ग्रन्थो पर पह- है। दोनों ही प्रवति सुकुमाल का जैन मन्दिर (खारा चान, नाप, अभिलेख प्रादि विवरण रखा गया और यह कुग्रा-उज्जैन) जहाँ स्थित है उसके पीछे के खण्डहर में जैन शोधकर्ताओं के लिए प्रमुख क्षेत्र बना।
नवनिर्मित मकान की नींव खुदाई के समय उपलब्ध हुई। विश्वविद्यालय मे स्थित तीर्थङ्कर प्रतिमानों का विव- अब ये विश्वविद्यालय के संग्रहालय में 'तीर्थ धर दीर्षा' रण इस प्रकार है :
मे प्रतिष्ठित है। मूर्ति क्रमांक २०६ में प्रादिनाथ का अकन है। इस अगली तीर्थङ्कर प्रतिमा है ४४४३३४२० से. सर्वतोभद्र प्रतिमा में जटाए कन्धों तक है जिन्हें कर्ण भी मी० के प्राकार की पार्श्वनाथ मूर्ति जिस पर अभिलेख कहा जा सकता है । पपासन में ध्यानस्थ प्रादिनाथ दोनों अकित है। पद्मासन मे ध्यानस्थ मुद्रा में प्रतिमा सुन्दर हाथ गोदी में रखे हुए है । प्राकार २६४२०x१० से० मूर्तिकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। प्रतिमा संगमरमर मी. व प्रतिमा संगमरमर की है। १२वीं शताब्दी की की है और लिपि के अनुसार १५वी शताब्दी के प्रतिम जैन प्रतिमा पारदर्शी झीने वस्त्र पहने है । पाद स्थल पर शतक में निर्मित है।