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________________ मोम् प्रहम अनेकान्त परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिम्पुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोषनयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ वर्ष २५ वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत् २४६८, वि० सं० २०२९ जुलाई-अगस्त १९७२ अर्हत-परमेष्ठी-स्तवन रागो यस्य न विद्यते क्वचिदपि प्रध्वस्तसंगग्रहातप्रस्त्रादेः परिवर्जनान्न च बुधद्वेषोऽपि संभाव्यते। तस्मात्साम्य मथात्मबोधनमनोजातः क्षयः कर्मणामानन्दादिगुणाश्रयस्तु नियतं सोऽर्हन्सदा पातु वः ॥३ -पग्रनन्धाचार्य अर्थ-जिस परहंत परमेष्ठी के परिग्रहरूपो पिशाच से रहित हो जाने के कारण किसी भी इन्द्रिय विषय में राग नहीं है, त्रिशूल प्रादि प्रायुधों से रहित होने के कारण उक्त प्ररहंत परमेष्ठी के विद्वानों द्वारा द्वेष की संभावना भी नहीं की जा सकती है। इसीलिए रागद्वेष रहित हो जाने के कारण उनके समता भाव आविर्भूत हुआ है । अतएव कर्मों के क्षय से बहत्तरमेष्ठी अनन्त सुख प्रादि गुणों के पाश्रय को प्राप्त हुए हैं। वे अहत्परमेष्ठी सर्वदा पाप लोगों की रक्षा करें।
SR No.538025
Book TitleAnekant 1972 Book 25 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1972
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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