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________________ मक-साहित्य-सेवी श्री पन्नालाल जी अग्रवाल इनका नाम श्री पन्नालाल जी जैन है जो दिल्ली के रहने हिन्दी सेवी संसार, श्री अद्भुत शास्त्री द्वारा लिखित, वाले हैं। यद्यपि इनको अपनी शिक्षा बड़ी ऊंची नही है, (३) आज के हिन्दी-सेवी, हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर बम्बई पर साहित्यकारों तथा विद्वानों के सत्संग का लाभ इनको द्वारा प्रकाशित, (४) अर्घ कथानक, आदि। युवावस्था से प्राप्त रहा है, इसलिए साहित्य-सेवा की भावना ६. जीवराज ग्रन्थमाला शोलापुर द्वारा प्रकाशितइनमें काफी है। दिल्ली के दो-तीन प्राचीन जैन मन्दिरों (१) तिलोयपण्णत्ती के दो भाग, (२) कुन्द-कुन्द प्राभृत में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश और हिन्दी के अनेक विषयों संग्रह। के सहस्रों प्राचीन ग्रंथ, गुटके, पोथियां और स्त्रोत्र ७. जर्मन विद्वान एच. वी. ग्लासीनप्प द्वारा लिखित आदि हैं, जो हजार, डेढ़ हजार वर्ष तक के पुराने है। -डेर जैनिसमस । इन शास्त्र भण्डारों के पूरे उपयोग का सुदिन तो अभी ८. प्रयाग विश्वविद्यालय, हिन्दी परिषद द्वारा प्रकानहीं आया है, पर हाँ, इनकी देखभाल तथा रक्षा जिन शित-(१) हिन्दी का सर्वप्रथम प्रात्मचरित, अर्द्ध कथामहानुभावों के हाथों में है, वे काफी जागरूक, समझदार नक, (२) प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य । और साहित्यिक कर्तव्य का पालन करने वाले है। श्री ६. दिगम्बर जैन पुस्तकालय, सूरत द्वारा प्रकाशितपन्नालाल जी भी एक ऐसे ही योग्य व्यक्ति है। जो यहाँ १.आदि पुराण, २. चन्द्रप्रभपुरा, ३. चिदविलास, ४. इनके के शास्त्रों को जैन साहित्य के उद्धार कार्य में अभिरुचि अतिरिक्त प्रात्मावलोकन मौर्य साम्राज्य के जैनवीर, महर्षि रखने वाले किसी भी विद्वान या संस्था को चाहे वह शिवव्रतलाल जी लिखित जैनधर्म। इस लेख के लेखक भारत का हो या भारत से बाहर का, समय-समय पर द्वारा लिखित ज्योतिप्रसाद और श्री कामता प्रसाद जी आवश्यकतानुसार ग्रंथ भेजते रहते है। इनकी साहित्य द्वारा लिखित जैनतीर्थ और उनकी यात्रा इत्यादि की सेवा का क्षेत्र बड़ा विशाल है। अापके सहयोग से नीचे तैयारी में भी इन्होने सामग्री भेजकर सहायता की। निखे ग्रंथों के प्रकाशन मे सहायता मिली है : सरसरी तौर से और बाह्य रूप से देखने में ये सेवायें जैन १.बीर सेवा मन्दिर, सरसावा जिला सहारनपुर साहित्य की सेवा तक सीमित मालम होगी, पर इनमें द्वारा प्रकाशित, (१) अध्यात्मकमल मार्तण्ड, (२) पुरातन साम्प्रदायिकता का नाम तक भी नही। जैन वाक्य सूची, (३) आप्तपरीक्षा, (४) न्यायदीपिका, (५) बनारसी नाममाला, (६) विवाह क्षेत्र प्रकाश । श्री पन्नालालजी को स्वयं भी कुछ लिखने का शौक २. माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, बम्बई है और उन्होने दिल्ली की जैन सस्थाएं नामक पुस्तिका लिखकर प्रकाशित की थी। मुद्रित जैन ग्रन्थों की एक द्वारा प्रकाशित-(१) वरांगचरित्र, (२) हरिवंशपुराण, (३) जम्बूस्वामीचरित, (४) प्रमाण प्रमेयकलिका। सूची भी उन्होने तैयार की है जो 'प्रकाशित जैन साहित्य' ३. भारतीय ज्ञानपीठ वनारस द्वारा प्रकाशित के नाम से प्रकाशित हो चुकी है। कभी-कभी प्रापके लेख (१) मदन पराजय, (२) महापुराण, (३) हिन्दी जैन भी अनेकान्त, वीरवाणी, जैनमित्र, जैन संदेश, जैन गजट, साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, (४) जैन जागरण के अग्र- वीर प्रादि में निकलते रहते हैं। दूत, (५) नत्त्वार्थवृत्ति, (६) वसुनन्दि श्रावकाचार, (७) जिस प्रकार श्रद्धेय बनारसीदासजी चतुर्वेदी के पास सवॉर्थसिद्धि, (८) उपासकाध्ययन । प्रसिद्ध साहित्यकारों के सहस्रों पत्र सुरक्षित हैं, उसी ४. अम्बादास चवरे दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, कारंजा प्रकार श्री पन्नालाल जी के पास भी पिछले पचास वर्ष द्वारा प्रकाशित-(१) पाहुड़ दोहा, (२) सावयधम्म के सैकड़ों पत्र उन जैन विद्वानों, लेखकों तथा सुधारकों दोहा। के हैं, जिन्होंने जैन समाज में नवजीवन का संचार किया मदास विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित-(१) वृहत है। इन पत्रों के प्रकाशन की बड़ी प्रावश्यकता है । अब अंग्रेजी सूची, श्री कालिदास कपूर द्वारा लिखित, (२) उनके प्रयत्न से तथा पूज्य मुनि विद्यानन्दजी की प्रेरणा
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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