________________
२, वर्ष २४, कि० २
एवं सहयोग से वैरिस्टर चम्पतरायजी के पत्रों का सकलन तथा जीवनी मेरे द्वारा संकलित एवं लिखी जाकर तैयार हो गई है और अब वह शीघ्र प्रकाशित हो जायगी। उनके संग्रह किये हुए पत्रों का यह पहला संग्रह जैन साहित्य जगत में जा रहा है । आशा है भविष्य में इसी प्रकार के दूसरे सग्रह भी प्रकाशित हो जायंगे ।
साहित्यकारो को प्रेरणा करके काम लेने मे आप बड़े कुशल हैं। जिन दिनों श्राप जनमित्र मण्डल दिल्ली के मन्त्री थे, तब आपने महर्षि शिवव्रतलाल जी से "जैनधर्म" लिखाया था । और सुधारक बाबू सूरजभान जी वकील तथा ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी से ट्रेक्ट और पुस्तकें लिखाई । पच्चीसों जैन लेखकों के परिचय मुझसे लिखाकर दिगम्बर जैन सूरत के साहित्यांक में प्रकाशित कराये ।
पिछले दिनों भारत सरकार के तत्वावधान में दिल्ली के लाल किले में सांस्कृतिक सम्मेलन हुआ था, उसकी साहित्यिक प्रदर्शनी मे श्री पन्नालालजी दिल्ली के जैन भण्डारों के कुछ अमूल्य प्राचीन ग्रन्थों और चित्रो को दिखा रहे थे ।
दिल्ली की कई साहित्यिक तथा शिक्षा सस्थाओं के आप उत्साही कार्यकर्ता रहे हैं और अपने कर्तव्यों को
प्रनेकान्त
बडी सलग्नता से निभाया पर जब आपने उनके कुछ दूसरे, अधिकारियों की पदलोलुपता और अनीति को देखा, तो उस काम से श्रापने हाथ खींच लिया । श्री पन्नालाल जी अत्यन्त मिलनसार, निहायत सादे, प्रेमी, धर्म परायण और सरल स्वभाव के है । 'गुणिषु प्रमोदं ' आपका प्रादर्श वाक्य है । युवावस्था मे पदार्पण ही इन पंक्तियों के लेखक का परिचय आपसे हुआ था, और तब से वह बराबर बढ़ता चला जा रहा है।
आपका जन्म माघ शुक्ला द्वादशी सम्वत् १९६० को हुआ था । भ्रापके पिता लाला भगवानदासजी थे श्रीर श्रापका जन्म नसीराबाद छावनी में हुआ था पर बचपन से ही आप दिल्ली आ गये थे । श्रापको स्वास्थ्य, योग्य पुत्र, श्राज्ञाकारी धर्मपत्नी और श्रार्थिक निश्चितता आदि सभी सुख प्राप्त है। आयु मे मुझसे दो वर्ष छोटे है । इसलिए मैं आपकी दीर्घायु की शुभकामना करता हुआ यही चाहता हूँ कि स्वतन्त्र भारत में प्राचीन साहित्य के उद्धार और नवीन साहित्य के निर्माण का जो महान कार्य हो रहा है, उसमे श्राप पूर्ववत् श्रधिक से अधिक सहयोग दे और दूसरे नवयुवक श्रापकी साहित्य-सेवा के इस ढंग को अपनावे । विद्वानो को भी श्री पन्नालालजी की सेवाओ का खूब उपयोग करना चाहिए ।
विश्वमैत्री - दिवस
भारत जैन महामण्डल की सूचनानुसार कार्यक्रम १२ सितम्बर ७१ को मनावें
प्रिय महोदय !
विश्वमंत्री दिवस ५ सितम्बर ७१ को मनाने के लिए मण्डल की ओर से आपको कार्यक्रम की रूपरेखा सहित एक परिपत्र भेजा था, मिला होगा । कई शाखा सभात्रों एवं कार्यकर्ताओं के सुझाव के कारण ५ सितम्बर की तिथि में परिवर्तन करना आवश्यक लगा और १२ सितम्बर ७१ को विश्वमंत्री दिवस मनाने का निर्णय किया गया है ।
को ही मनावें
अतः कृपया पिछले परिपत्र की तिथि सुधारते हुए अब विश्वमंत्री दिवस १२ सितम्बर १९७१ ताकि देश भर में एक ही दिन सब जगह यह कार्यक्रम सम्पन्न हों ।
१५ ए, हानिमनं सर्कल,
भारत इंशुरंश बिल्डिंग, दूसरा माला, फोर्ट, बम्बई - १
निवेदक : रिषभदास शंका प्रधानमंत्री ।