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________________ वीर - शासन - जयन्ती महोत्सव सानन्द सम्पन्न आज दिनांक १ जुलाई सन् १९७१ को प्रातःकाल ग्राठ बजे वीर-सेवा-मन्दिर की ओर से वीर-शासन जयन्ती का उत्सव प्रसिद्ध उद्योगपति लाला राजेन्द्रकुमार जी की अध्यक्षता में दि० जंन लालमन्दिर में मनाया गया । श्रोतानों की उपस्थिति से लालमन्दिर के दोनों हाल भरे हुए थे। साथ ही समाज के विद्वानों की भी अच्छी उपस्थिति थी । गुनि श्री १०८ ऋषभसागर जो और मुनि श्री १०८ शान्तिसागरजी भी पधारे थे। जैन बाल आश्रम के छात्रोंने सुन्दर भजन सुनाये । अहिंसा पर विवेचन किया। इसके बाद श्वेताम्बर, दिगम्बर, स्थानकवासी धौर पं० परमानन्द जी शास्त्री के मगलाचरण के बाद श्री प्रेमचन्द जी मंत्री वीर सेवा मन्दिर ने वीरशासन जयन्ती के मनाने का प्रयोजन और उसके इतिहास पर प्रकाश डाला। पश्चात् प० हुकुमचन्द जी वरुना सागर न कविता पाठ किया। पं० बलभद्र जी ने वीर शासन पर प्रकाश डालते हुए उसकी उत्पत्ति और महत्ता पर विवेचन किया । सा० प्रेमचन्द जी जंनावाच ने अपने भाषण में वीर शासन के सिद्धान्त बाबू यशपाल जी ने अपने भाषण में वीर शासन की महत्ता प्रकट करते हुए तेरापंथी सभी सम्प्रदायों की एकता पर प्रकाश डाला। डा० देवेन्द्रकुमार जी ने अपने भाषण में वीर शासन का अच्छा विवेचन किया । पश्चात् मुनि ऋषभ सागर जी ने अपना संक्षिप्त भाषण दिया, अनन्तर मुनि शान्तिसागरजी ने वीरशासन का जयघोष करते हुए श्रात्मतत्त्व पर प्रकाश डाला । अनन्तर की गिरनार जो तीर्थ क्षेत्र पर मुनि श्री महावीर कीर्ति के साथ किये जाने वाले अभद्र व्यवहार की निन्दा की और क्षोभ व्यक्त किया गया और उस पर समाज की ओर से निम्न प्रस्ताव पास हुआ । 'श्री दि० जैन लालमन्दिर दिल्ली में प्रायोजित जैन समाज की विशाल सभा श्री गिरनार जी सिद्धक्षेत्र (जूनागढ़) पर पूज्य प्राचार्य श्री महावीर कीर्ति जी के साथ वहां के बाबाओं द्वारा हुए पोर अभद्र व्यवहार के प्रति अपना अत्यन्त दुख और क्षोभ व्यक्त करती है तथा श्रापसे प्रार्थना करती है कि धर्मनिरपेक्ष सरकार में इस प्रकार धार्मिक गुरुयों के साथ निन्दनीय व्यवहार करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाये जिससे भविष्य में इस प्रकार के कार्यों को पुनरावृत्ति न हो।" नोट :- प्रस्ताव की कापी महामहिम माननीय राज्यपाल गुजरात प्रदेश अहमदाबाद को भेजी गई। अन्त में सभा के अध्यक्ष और कमेटी के उपाध्यक्ष ने सबका श्राभार प्रकट किया। मंत्री वीर सेवा मन्दिर ने अध्यक्ष का प्राभार प्रकट करते हुए जनता को धन्यवाद दिया और भगवान महावीर की जयध्वनिपूर्वक उत्सव समाप्त हुआ । -प्रेमचन्द जैन संशोधन गत वर्ष के प्रनेकान्त की संयुक्त किरण ५-६ मे 'धनंजयकृत द्विसन्धान महाकाव्य' शीर्षक लेख प्रकाशित हुआ है। उसमे भूल से डा० हीरालाल जी जैन का नाम छपने से रह गया है। कृपा कर पाठकगण उसमें डा० हीरालाल जी का नाम और बढ़ा कर पढ़े । व्यवस्थापक 'अनेकान्त'
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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