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साहित्य-समीक्षा
१. भविष्यवत्त कथा तथा अपभ्रश कथा काव्य- विचार का थोड़ा भी कष्ट नही किया जब कि इस ग्रंथ लेखक डा० देवेन्द्रकुमार शास्त्री। प्रकाशक भारतीय ज्ञान- के कर्ता कवि धनपाल है, जो धर्कट वंश में उत्पन्न हुए पीठ, ३६२०१२१, नेताजी सुभाष मार्ग दिल्ली-६, मूल्य थे। उनके पिता का नाम माएसर (मातेश्वर) और २० रुपया।
माता का नाम धनश्री था। जबकि सं० १३९३ में ग्रन्थ प्रस्तुत ग्रथ एक शोध प्रबन्ध है, जिस पर लेखक को की प्रतिलिपि कराने वाले दिल्ली के अग्रवाल वाधू साहू प्रागरा यूनिवर्सिटी से पी० एच० डी० की डिग्री मिली थे। उस समय दिल्ली में मुहम्मद विन तुगलक का राज्य था है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध में सान अध्याय हैं जिनमे अप- मैंने एक लेख 'धनपाल की भविष्यदत्त कथाके रचना काल भ्रंश भाषा और उसके साहित्य का सुन्दर वर्णन दिया पर विचार शीर्षक लिखा था।" जो अप्रेल सन् १८६६ के है। साथ ही भविष्यदत्त कथा का भी परिचय दिया गया अनेकान्त के अंक एक में छपा था। उसके पढ़ने से तो है। भविष्यदत्त कथा और उसकी परम्परा का विवरण लेखक को अपनी भूल का स्पष्ट पता चल गया था, फिर देते हुए अपभ्रंश के प्रमुख कथा काव्यों का-"विलासवई भी अपनी पुस्तक में उसका संशोधन नहीं किया। किन्तु कथा, जिणदत्त कथा, सिद्धचक्र कहा, सिरिपाल कहा भविष्यदत्त कथा का रचना काल चौदहवी शताब्दी सिद्ध प्रादि का भी–परिचय दिया है। लोककथा की सामान्य करने के लिये विबुध श्रीघरमुनि कृत (सं० १२३०) प्रवृत्तियों और लोक तत्त्व का विश्लेषण करते हुए वस्तु में भविष्यदत्त कथा रचित प्रथ के साथ तुलना तत्त्व का अच्छा विवेचन किया गया है। यह सब होते कर यह निष्कर्ष निकाला कि धनपाल की भविष्यहए भी लेखक ने भविष्यदत्त कथा के रचनाकाल पर बिना दत्त कथा पर इसका प्रभाव है। अापने दोनों की किसी प्रमाण के उसका रचनाकाल विक्रम की १४वीं तुलना करते हुए बतलाया है कि "धनपाल ने उसका शताब्दी बतलाने का प्रयत्न किया है । जो किसी तरह अनुकरण किया है।" परन्तु लेखक ने यह विचार नहीं भी उचित नही कहा जा सकता। जबकि डा० हर्मन किया कि दोनों ग्रथों के कथानको में समानता होने पर जेकोबी ने धनपाल की भविष्यदत्त कथा का रचना काल भी भाषा गत और कथानक शैली का भेद बना हुआ है । १०वीं शताब्दी बतलाया है।
घनपाल की भविष्यदत्त कथा की भाषा प्रौढ और विशद लेखक को मोती कटरा प्रागरा के भण्डार से सं० है जो माल
है, उसमें काव्यत्व को झलक स्पष्ट है। जबकि विबुध १४८० की लिखी हुई प्रति मिली। उसमें सं० १३६३ की श्रीधर की भविष्यदत्त कथा की भाषा सीधी-सादी है, वह एक दूसरी लिपि प्रशस्ति भी लिखी हुई थी। जिसे साहू चलती हुई है। इतना होते हुए भी पाप लिखते हैं किवाघु अग्रवाल ने धनपाल की उक्त कथा को सं० १३६३
। उक्त कथा का स० १३९३ “कल्पनात्मक वैभव, विम्बार्थ योजना, अलंकरणता और लिखवाया था। लेखक महाशय ने उस पर से ग्रंथ का जितकी जो अलक धनपाल की भविष्यदत्त कथा रचनाकाल विक्रम को १४वीं शताब्दी निश्चित कर में लक्षित होती है वह इस काव्य में नहीं है।" इतना दिया। भाप लिखते हैं कि-"विक्रम सं० १३६३ पौष होने पर भी प्राप उक्त कथा में अनुकरण की बात कहते शुक्ला द्वादशी को यह कथा काव्य लिखकर पूर्ण हुआ हैं। वह कैसे फलित हो सकती है ? जबकि उस ग्रंथ का था। माधुनिक काल गणना के अनुसार निर्दिष्ट तिथि रचना काल १०वीं शताब्दी माना जाता है। तब अनु. १६ दिसम्बर १९३६ ई० है। इससे स्पष्ट है कि काव्य करण की बात कैसे घटित हो सकती है? यह तो कल्पना का रचना काल चौदहवीं शताब्दी है।" पर लेखक ने तब मानी जा सकती है जब सं. १३६३ की लिपि