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________________ खण्डार के सेन परम्परा के लेख रामवल्लभ सोमाणी खण्डार सवाईमाधोपुर के पास है। यहाँ के दुर्ग के १२३० तक जीवित थे। इनकी वंशावली इस प्रकार दी पास चट्टान में ५ शिलालेख है। इनमे से एक वि० सं० जा सकती है :१२३० और शेष लेख १५वीं और १६वी शताब्दी के है। सागरसेन इन लेखों को ढूंढ़ने का श्रेय डा. रामचन्द्र राय को है। जयपुर के पास झामडोली ग्राम से वि० सं० १२१२ का मुझे जो शिलालेख मिला था उसे मैंने महावीर जयन्ति ब्रह्मसेन छत्रसेन प्रबरसेन कुमारसेन स्मारिका १६७१ के पृष्ठ सं० ७७-७८ पर प्रकाशित (१२१२) (१२१२ से १२३० (१२१२ (वि० सं० करवाया है और इसका मूल भाग अनेकान्त वर्ष २४... १२३० वि०) वि०) १२३०) अंक १ पृ० ३७ पर भी प्रकाशित हुआ है। इन लेखों से पता चलता है कि सेन परम्परा के खण्डहर के वि० सं० १२३० के २ पंक्तियों के लेख साधुओं का कार्य क्षेत्र जयपुर के आसपास १२वीं शताब्दी मे सागरसेन, कुमारसेन और छत्रसेन के नाम है। यहाँ के पूर्व से था। किशनगढ़ के पास पराई नामक ग्राम से पहाड़ी को काट कर जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बनी हुई नैषिधकारों के लेखों में सेन परम्परा के साधुनों के नाम हैं। इस १२३० वि० के लेख को मैं महत्वपूर्ण मानता है जो १०वी शताब्दी मे उस क्षेत्र मे विचरण करते थे। हूँ । इसका सुपाट्य अंश इस प्रकार है : कोटा, संग्रहालय में बड़ी संख्या में जन प्रतिमाएं संग्रहीत १-ॐ श्री मूलसघे परमानन्दाद्याचार्य श्री सागर. है। इनमें कुछ लेख मुक्त भी हैं। इनमें सम्भवतः सेन सेनस्य शिष्यस्यां। परम्परा के लेख भी थे। इसके अध्ययन के बाद ही इस २-कुमारसेन छत्रसेन स्या कारित देव-स्थानं । पर विस्तार से लिखा जा सकता है। मटरू में एक सं० १२३०। विशालकाय जैन तीर्थकर की बैठी हुई प्रतिमा है जो अब इस लेख से कुमारसेन और छत्रसेन की तिथि वि० तक खुले में पड़ी है। इस क्षेत्र में और भी प्रतिमाये सं० १२३० स्पष्ट हो गई है। वि० सं० १२१२ के झाम- विद्यमान है। डोली जयपर के लेख मे पागे का प्राधा भाग बहुत ही खंडहर से प्राप्त अन्य लेखों में स. १५६८ क ३ बुरी तरह से घिस जाने से अस्पष्ट हो गया है। इसमे लेख है । इनमें से सलहदी के राज्य मे अग्रवाल जाति के जो साधुओं का वर्णन है वह इस प्रकार है :- श्रेष्ठियों द्वारा निर्माण कार्य का उल्लेख है। वि. स. ___ "प्राचार्य श्री भट्टारक: सागरसेन । तस्यशिष्य मय १५९४ का एक अन्य लेख और है इसमें मानसिंह तोमर मण्डलाचार्य धुर्य ब्रह्म (सेन).........वा श्री छत्रसेन देव के पूत्र विक्रमादित्य के राज्य का उल्लेख है। पुष्करगण पादार (?) तस्य धर्मभ्राता पंडित अम्बरसेन तस्य भ्राता के सेन परम्परा के साधुनों का उल्लेख है। लेख को श्री............सर्व संघ सेनाम्नाय प्रणमति नित्यं ।" ३ पंक्ति में अश्वसेन ४थी में विक्रमसेन तथा संघसेन छत्रसेन नामक एक साधु का उल्लेख अर्थणा के वि० व ५वीं पक्ति में विमलकीति मादि के नाम हैं। झामस० ११६५ के लेख में है किन्त निस्संदेह ये छत्रसेन कोई डोली से प्राप्त १२वीं शताब्दी के एक अन्य लेख में जो भिन्न रहे ोंगे। अब खण्डहर के वि० सं० के लेख के ६ पक्तियों की है जिसकी ६ पंक्ति में पुष्करगण के वाद यह स्थिति स्पष्ट हो गई है कि छत्रसेन वि० सं० लेख है । सन
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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