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मध्य प्रदेश में "काकागंज" का जैन पुरातत्व
कस्तूरचन्द्र 'सुमन' एम. ए.
भारतीय इतिहास, संस्कृति, कला एवं पुरातात्विक (६) मन जज्ञ करता दुतिय पुत्र श्री सिघं दिमसामग्री में मध्यप्रदेश का एक विशिष्ट स्थान रहा है। (१०) न सागरमये (ध्ये) गज काकाको, राज्य थी प्र इस प्रदेश में जहाँ वादा और बोद्ध सस्कृतियों को अपने (११) गरेज बहादुरको सुभ (शुभ) सवत् मगल विकास करने के अवसर उपलब्ध हए हे, जैन गस्कृति भी ददात् (तु)। हो मा
तानिमित तीसरी लिपि:-बस अभिलेख की लिपि प्राचीन नागरी है। मध्यप्रदेश में बुलाए गोलापूर्व जैनो का भण्डार है। अभिलेख में श के स्थान में स का उप है। काकागज में नितिन मन्दिर इमो ग्राम्नाय के गया है। भाषा में कहीं-कही विकृत रूप दिखाई देते है । लोगो द्वारा बनवाया ना था। यह पार वर्तमान में काकागंज .-इस नाम से ऐसा ज्ञात होता है कि मध्यप्रदेश के सागर शहर म पु मेनगा हुया है। प्राचीन काल में यहां किसी धनिक का निवास था । मन्दिर के प्रवेश द्वार पर ११ पतियो का सस्कृत भाषा वे अपने क्षेत्र के सम्माननीय व्यक्ति भी रहे है । उनको म अकित एक अभिनयको उपलब्ध है, जिमि बनाया सम्मान देने के लिए सभवतः लोग काका कहकर पुकारले गया है कि मूलसघ म बलात्कारगण-मरस्वतीगच्छ कुद- थे । गज शब्द के विभिन्न अर्थों में 'खजाना' अर्थ' भी कुन्दाचार्याम्नाय के गोलापूर्व जाति के अन्तर्गत सिंघई एक है, जिससे ऐसा ज्ञात होता है कि यह स्थान उनका घासीराम हुए है । वे बनौनया वन के थे। उनके वश में सभवत: खजाने के रूप में रहा है। और इसी कारण इसे श्रो दिमन द्वारा बनाया गया है ---संवत् १६११ के कावागज के नाम से कालान्तर में संभवतः सम्बोधित फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष में चर्वशी बुधवार के दिन किया जाने लगा था। वर्तमान में प्रचलित काकागज इम मन्दिर की प्रतिष्ठा कराई गई थी। अभिाख मे यह नाम काकाकैगज का बिगड़ा रूप ही दिखाई देता है। भी बताया गया है कि उस समय अग्रेज बहादुर का
मूतिलेख वहाँ राज्य था। अन्त में मंगल कामना की गयी है।
इस शिखर युक्त मन्दिर मे दो वेदिकाए है . प्रथम काकागज मन्दिर प्रभिलेम्प निम्न प्रकार है :- वेदी पर पाच मतियां दिगजमान है । इनमें दोनिमा प्रो
(१) गवत् १९११ फाल्गुन मासे मु (शु) भे मु पर लेख भी अकित है। (शु) क्ल पक्ष (क्षे)
मुतिलेख क्रमाक (१) प्रादिनाथ प्रतिमा- लग ग (२) १४ वुधवारारे नादिन पता पतिष्ठ (प्रतिमा २॥ फुट ऊचाई मे सफेद संगमर्मर पापाण से निर्मित प्रतिष्ठा (कृता) शाती
पद्मासन मुद्रा मे वृषभ चिन्ह से युक्त एक सौम्य प्रादिनाथ (३) क कृत श्री पूनमधे वलात्कारगणे सग्सु(स्वती तीर्थकर की प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा मन्दिर (४) ...(गच्छे कुद) कुदानाम्निाय वैरया गोत्र.य निर्माता दिमन के बड़े भाई सिंघई चिमन द्वारा प्रतिष्ठित
(५) क व श्री गोलापूर्वक वनीला (वनौनया) श्री कराई गई थी । प्रतिष्ठा काल वही मन्दिर प्रतिष्ठा का सिधं (घई)
निर्देशित किया गया है । लेख तीन पक्तियों मे सस्कृत (६) घामाराम तस्य पुत्र दोय २ जेष्ट पुत्र लुषर भाषा मे नागरी लिपि से अंकित किया गया है। (७) दुतिय पुत्र मोनीगम माया वपता जेष्ट पुत्र लेख का पूरा पाठ निम्न प्रकार है(८) मायो मुना तस्य पुत्र दोय २ धी सिधै चि
(१) संवत् १९११ क फागुन मासे सु (शु) भे