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________________ प्रयाग श्री पं० बलभद्र जैन तीर्थ क्षेत्र: भगवान का दीक्षा कल्याणक देखने चल रहे थे। आद्य तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने जिन ५२ देशों भगवान पुरिमतालपुर के बाहर सिद्धार्थ नामक वन की रचना की थी, उनमें कोशल देश भी था । उसके मे पहुँच कर पालकी से उतर पडे और सभी प्रकार के अन्तर्गत ही पुरिमताल नामक एक नगर था। भगवान् ने परिग्रह का त्याग करके एक वटवृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख दीक्षा लेने से पूर्व अपने सौ पुत्रों को विभिन्न नगरों के होकर अपने हाथों द्वारा केश लु चन किया। इस प्रकार राज्य दिए थे। उनमें वृषभसेन नामक पत्र को परिमताल- चैत्र कृष्णा नवमी के दिन सायंकाल को उत्तराषाढ़ नक्षत्र पुर का राज्य दिया। जब भगवान ने नीलांजना अप्सरा मे दीक्षा ले ली। और छह मास का योग लेकर उस की नत्य करते हए मृत्यु देखी तो उनके मन में ससार, वट वृक्ष के नीचे एक शिला पट्ट पर आसीन हो गए। शरीर और भोगों के प्रति निर्वेद हो गया। लोकान्तिक दीक्षा लेते ही भगवान को मन:पर्यय ज्ञान उत्पन्न हो देवों ने इस पुण्य अवसर पर प्राकर भगवान के वैराग्य गया। चार हजार राजा भगवान के साथ दीक्षित हो की सराहना की, मनुमोदन किया और प्रेरणाप्रद निवेदन गए। उनमे सम्राट भरत का पुत्र मरीचि भी था। देवों किया, भगवान राजपाट त्यागकर दीक्षा लेने अयोध्या से ने भगवान का दीक्षा कल्याणक मनाया। देव निर्मित पालकी 'सुदर्शन' मे चल दिए । पालकी को इसी समय से पुरिमताल नगर के उस स्थान का सर्वप्रथम भूमिगोचरियों ने उठाया और सात कदम चले। नाम प्रयाग पड़ गया। प्राचार्य जिनसेन ने इस सम्बन्ध पश्चात् विद्याधरों ने पालकी को उठाया। तदनंतर देवो मे बड़े स्पष्ट शब्दों में कथन किया हैं। ने पालकी को उठा लिया और प्राकाश मार्ग से चले। वे लिखते है: प्राकाश में देव और इन्द्र हर्ष विभोर हो चल रहे थे एकमुक्त्वा प्रजायत्र प्रजापति मपूजयत् । और भूमि पर भगवान की स्त्रियों-नन्दा और सुनन्दा, प्रदेशः स प्रजागाख्यो यतः पूजार्थ योगत: 18-९६ अन्य परिवारी जन और जनता शोकाकुल चल रही थी। अर्थात् 'तुम लोगों की रक्षा के लिए मैंने चतुर भरत साथ भगवान के माता-पिता मरुदेवी और नाभिराय को नियुक्त किया है। तुम उसकी पूजा करो' भगवान के इसके अलंकरणों को बारीकी से अध्ययन करने पर कई लेख और है। महत्व की बातों की जानकारी मिल सकती है । गुफागत ललाटेन्दु केशरीगुफा-भी दो मंजिली थी किन्तु अलंकरण बड़े ही सुन्दर और दर्शक को अपनी ओर उसका अग्रभाग और दीवालों का कुछ भाग गिर गया आकृष्ट करते है। है। दीवालों पर तीर्थंकरों की मूर्तियां उत्कीणित हैं। ___इस पर्वत पर नवमुनि गुफा है जिसमें इसकी दीवाल इसमें एक संस्कृत का खंडित अशुद्ध लेख है, जिसमें पर नौ तीर्थकरो की पद्मासन मतिया अंकित हैं। उनके लिखा है कि उद्योतकेशरी के राज्य के पांचवें वर्ष में नीचे यक्षिणी देविया है । मूर्तियों के साथ तीन छत्र और कुमार पर्वत पर जीर्ण जलाशय और मन्दिरों का जीणों. दो चमरेन्द्र हैं। इसमे चार लेख है जिनमें १ लेख दशवी द्वार कराया और चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियां प्रतिष्ठित शताब्दी का राजा उद्योतकेशरी के १८वें वर्ष का है। की। इस तरह यह गुफा भी बहुमूल्य सामग्री को लिये दूसरा लेख श्रीधर नाम के विद्यार्थी का है। और दो हुए है जो दर्शकों के लिए उत्प्रेक्षणीय है। ★
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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