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________________ कलिङ्ग का इतिहास और सम्राट् कारयेत एक अध्ययन मान उड़ीसा प्रान्त जितना या पीर जनसंख्या ३५ लाख के लगभग थी । जनगणना कराने का यह कार्य संभवतः मौर्यो के समय से श्रथवा उससे पूर्व प्रचलित था । कलिंग की राजधानी अशोक के समय से तोषली थी । खारवेल ने अपनी नई राजधानी बनाने का कोई उल्लेख नहीं किया । किन्तु प्रशस्ति में राजधानी का उल्लेख कलिंग नगर के नाम से हुआ है'। खारवेल को कलंगाधिपति, कलिंग चक्रवर्ती कहा गया है । क्षेमराज, बुद्धिराज भिक्षुराज, धर्मराज प्रौर राजषिकुल विनिसृत महाराजा श्रादि उसके विरुद है । खारवेल का विवाह कब हुआ इसका उल्लेख नहीं मिलता। उसकी दो रानियां थीं। एक वजिर परवाली, जो पट्टमही के नाम से ख्यात थी और दूसरी सा - राजा लालकस की पुत्री थी- जो हाथी सहस के पौत्र थे। ये दोनों ही रानियाँ बडी सती, साध्वी, रूप-शील सम्पन्न और धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थ का सेवन करती थीं । खारवेल ने सिंहप्रस्थ सिधुला रानी के नाम पर हाथी गुफा के पास गिरिगुहा (रानी गुफा) नाम का प्रासाद बनवाया था यह गुफा अपने डग की एक ही है। जो महत्वपूर्ण है। इसका परिचय धागे दिया गया है । खारवेल ने अपने १३ वर्ष के राज्य काल में अपनी दिग्विजय द्वारा भारतवर्ष मे ऐसी धाक जमा दी थी, जिससे कोई भी राजा उसकी ओर भाख उठाकर नहीं देख सकता था जहाँ वह वीर मौर पराक्रमी था वहाँ वह प्रजा हितैषी घोर उदार भी था। उसने प्रजा के हित के लिए जो-जो कार्य किये थे वे सब उसकी महत्ता के द्योतक है। वह जैनधर्म का दृढ़ श्रद्धालु होता हुम्रा भी अन्य सभी धर्म वालों के साथ समभाव रखता था । जैसा कि प्रशस्ति के निम्न वाक्य से स्पष्ट है- "सवपाखंड पूजिको सवदेवायतन संस्कारकारको " ये वाक्य उसकी महानता और समान धर्मता के सूचक है। खारवेल सबको सहायता करता था और मन्दिरों का जीर्णोद्वार आदि कार्यों में सहयोग देता था। उसने अपनी प्रजा को कभी कष्ट नहीं होने दिया। यद्यपि वह बाहर दिग्विजय करने भी गया, तो भी राज्य व्यवस्था १. शिलालेख की पंक्ति में उल्लेख है। ३ 1 ७५ सुचारु श्रप से चलती थी। पौर भौर जानपद संस्थाएं राज्य का कार्य इस तरह से सम्पन्न करती थी, जिसमें प्रजा का हित सन्निहित रहता था। राज्य में प्रजा सुखी और सम्पन्न यो । खारवेल का जीवन बड़ा ही महत्वपूर्ण था। उसने राज्य सम्पदा की अभिवृद्धि करते हुए भी उसमें उसकी प्रासक्ति नहीं थी इसीसे उसने १३ वर्ष राज्य करने के उपरान्त उससे विरक्त हो गया श्रीर श्रात्म-साधना के पथ की ओर अग्रसर हो गया था । तथा व्रतादि के अनुष्ठान द्वारा इन्द्रिय दमन करने घोर कषायों को शमन करने तथा उनके रस को सुखाने का प्रयत्न करने लगा । यह कार्य उसने कितने वर्ष किया इसका कोई इतिवृत नहीं मिलता। । खारवेल के ऐतिहासिक महत्वपूर्ण कार्य खारवेल के १३ वर्ष के राजत्व काल का विवरण मौर जीवन की खास घटनाओं का अंकन हाथी गुफा के शिलालेख मे हुआ है। हाथी गुफा एक कृत्रिम गुफा है जिसमें खारवेल का शिलालेख उत्कीर्ण हुआ है। शिलालेख में वर्षानुक्रम से राजत्व की प्रमुख घटनाओंों का उल्लेख किया गया है। शिलालेख की कुछ पंक्तियों पढ़ने में नहीं आई – वे घिस गई है, जो पक्तियाँ पढ़ी जा सकीं उनसे बहुत कुछ सामग्री प्रकाश में आ पाई है। फिर भी कुछ पंक्तिय अभी स्पष्ट हैं। इतिहास की दृष्टि से लेख बहुत ही महत्वपूर्ण है। १-खारवेल ने राजधानी को तूफान से प्राचीन इमारतों, कोट दरवाजों की मरम्मत कराई, लिविर ऋषि के बड़े तालाब का पक्का बोध बंधवाया और उद्यान लगवाए । २-सारवेल ने आंध्र के सातवाहन वंश के तृतीय राजा सातकर्णी के विरुद्ध आक्रमण कर उसे पराजित किया। उसने खारवेल का धाधिपत्य स्वीकार किया। सातकर्णी को विजित करने के बाद खारवेल को सेना कलिंग वापिस नहीं पाई, किन्तु दक्षिण में कृष्णा नदी के तट पर बसे हुए अशिक नगर में जा पहुँची। यद्यपि वहाँ के राजा बड़े पराक्रमी और शूरवीर थे, किन्तु वे खारवेल की शक्ति का मुकाबला न कर सके। प्रशिक नगर पर अपना आधिपत्य जमा, खारवेल ससैन्य वापिस भा गया
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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