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________________ ४. पर्व २४, कि०२ अनेकान्त मैजर टिकल ने लिखा है कि सिंहभूमि श्रावकों के वंश' (महामेघवाहन वंश) का तीसरा राजा था। वह हाथ में थी किन्तु अब नहीं है, उस समय उनकी संख्या प्रारम्भसे ही वीर, निर्भय, धर्मनिष्ठ, विद्वान, रणकुशल पौर अन्य लोगों से कहीं अधिक थी। उनके देश का नाम कलाप्रिय था । वह देखने मे प्रभावशाली और सुन्दर था, शिखर भूमि था और पांचेत । उनको बड़ी तकलीफ देकर उसका शरीर प्रशस्त लक्षणों से संयुक्त था । और वह निकाल दिया गया। अपूर्व तेजपुञ्ज का धारक था। उसका प्रकाश चारों कर्गेल डाल्टन ने बेंगल एथनोलोजी में लिखा है कि दिशाओं मे विखर रहा था। सभी विद्यायो और कलानों में पारगत था। खारवेल के पिता का नाम 'वक्रदेव" सिंहभूमि के कई हिस्से ऐसे दल के हाथ में थे, जो मानभूम में अपने प्राचीन स्मारक छोड़ गए। वहां पुराने लोग था। हाथी गुफा के शिलालेख से ज्ञात होता है कि खार वेल ने अपने जीवन के प्रारम्भिक १५ वर्ष राज्योचित रहा करते थे। उनको श्रावक या जैन कहा जाता था। शिक्षा प्राप्त करने में व्यतीत किये थे । खारवेल के पिता अब भी कोलहन को 'हो' जाति के लोग तालाबों को का स्वर्गवास उस समय हो गया था जब वे सोलह वर्ष के 'सरावक' (श्रावक सरोवर) कहते हैं। यहां के गृहस्थ श्रावकों ने जंगल के भीतर ताँबे की खानों का अन्वेषण थे। प्राचीन काल मे सोलह वर्ष की अवस्था मे पुरुष किया था और उसमें अपनी शक्ति लगा दी थी। बालक समझा जाता था। प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि खारवेल ने सोलह वर्ष की अवस्था मे युवराज पदवी प्राप्त बेणुसागर में कई प्राचीन जैन मन्दिर है। की। पश्चात् आठ वर्ष में उसने मुद्रा गणना, व्यवहार सो साल के पहले सिंहभूमि के बहुत से स्थानों में विधि (मीमासा तर्क आदि) तथा अन्य विद्याओं के सीखने सासकर 'पोड़ाहाट' में बहुत जैन लोग थे। इन्हे वहाँ के ____ में बिताये । और चौबीस वर्ष की अवस्था में वह कलिंग मादम निवासी लोग 'सराखु' (सरायोगी) कहते है। ___ का युवगन हो गया । खारवेल सम्राट वेण की तरह एक उस समय के प्राचीन मन्दिर, मूर्ति, गुहा, पुष्करिणी प्रादि । विजयी सम्राट् था। उसका गृहस्थ जीवन भी राष्ट्रीय के अवशेष देखकर मालूम होता है कि वे ऐश्वर्यशाली जीवन के समान सुखमय था । वह अशोक से भी बढ़कर मौर स्वाधीन थे। वहां मिट्टी के अन्दर रुपये, मोहरे, था; क्योंकि उसने अशोक से भी अधिक विजय प्राप्त चित्रित, टूटे हुए कांच की चूड़ियां और मूल्यवान पत्थर की थी, परन्तु अशोक जैसा नरसंहार नही किया था। की मालाएं मिलती थीं। वह एक प्रजावत्सल और कर्तव्यपरायण शासक था। ___सराकलोग डिम्बरी डूमर (गूलर) आदि फल में उसने थोड़े समय मे जो कार्य कर दिखाया, उसे अच्छेकीड़ा रहने के कारण उन्हें नहीं खाते है। और प्याज, अच्छे राजा लोग भी उतने अल्प समय में नही कर सके। गोभी, माल भी नहीं खाते हैं। वे खण्डगिरि की यात्रा २५वे वर्ष मे खारवेल का राज्याभिषेक हुआ। खारवेल को पाते हैं। इनके यहाँ एक कहावत प्रसिद्ध है 'डोह जब सिंहासनारूढ हए, उस समय कलिंग का राज्य वर्तहमर पोढो छाती। एइ चार नही खाए श्रावक जाति ।" - ४. कलिंग का यह नया राजवश चेदि-चेदि क्षत्रियों का इससे स्पष्ट है कि वे अहिंसा प्रेमी हैं। सराक लोग पार्व था। यह चेदिवंश ऐर या ऐल कहलाता था । वैदिक नाथ की पूजा करते हैं। लोग वास्तव मे ऐल थे , माधुनिक बुन्देलखण्ड उनका सम्राट् खारवेल-यह उस वंश का सबसे प्रसिद्ध पौर जनपद होने से ही चेति या चेदि कहलाने लगा था। पराक्रमी राजा था। इसके चरित्र की उज्ज्वलता, कार्य बुन्देलखण्ड से दक्षिण कौशल (छत्तीसगढ़) द्वारा पटुता और सहनशीलता अद्भुत थी। खारवेल चेदि चेदिवंश का कलिंग तक चले आना स्वाभाविक था। १. जर्नल ए. एस. बंगाल ई०१८४० संख्या ६८६ । -भारतीय इतिहास की रूप-रेखा पृ० ७१६ । २. ए० एस० वी० १८६६ पृ० १७६.५ । ५. वेणीमाधव बरुपा ओल्ड ब्राह्मी इन्सि कृपसंस पृ. १. उड़ीसा में जैनधर्म पृ. १४४.४५ ।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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