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________________ ७२, वर्ष २४, कि०२ अनेकान्त हो चुका था। नन्द राजा वहाँ से विजय के चिन्ह रूप बहुत दुःख भोगने पड़े। जिस राजाने अशोक की सेनाओं मे जिन प्रतिमा ले प्राया था। उस समय कलिंग के साथ रक्षात्मक युद्ध किया था उसका नाम तक अशोक मगध सम्राट् नन्द का अग हो गया, नन्दिवर्धन विजय ने कहीं उल्लिखित नहीं किया। स्वरूप कलिंग में पूजी जाने वाली प्रादि जिन की प्राचीन अशोक के पश्चात् कलिंग दो सौ वर्षों में बहुत कुछ मूर्ति को ले गया। यह मूर्ति पटना में पौने तीन सौ वर्षों सम्पन्न हो गया था। अपना सब कुछ बलिदान करने के तक रही। इससे स्पष्ट है कि नन्द राजा जनघम क बाद भी कलिंगवासी अपनी स्वतन्त्रता को नही भूले। उपासक थे । यदि वे जैन धर्म क उपासक न हात, तो इससे स्पष्ट है कि कलिंगवासी अपनी स्वतन्त्रता के कितने उतने सुदीर्घ काल तक पाटलीपुत्र मे वह मूर्ति स राक्षत हामी ये। उनकी स्वतन्त्रप्रियता और एकता स्पृहणीय नही रह सकती थी। उक्त दार्यकाल के बाद सम्राट् थी। कलिंगवासियों का स्वाभिमान और परस्पर का खारवेल उसे वापिस कलिंग ले गया और कुमारगिरि पर वात्सल्य भी अनुकरणीय था। उसे महोत्सव के साथ प्रतिष्ठित किया और स्मृति में ईस्वी पूर्व दूसरी या पहली शताब्दी मे कलिंग का विजय-स्तम्भ भी बनवाया। उस समय कलिग में जन प्रतापी सम्राट खारवेल उग्रा । खारवेल जैन था। उडीसा धर्म प्रतिष्ठित था। का सारा राष्ट्र उम समय मुख्यत: जैन ही था। जिसे नन्द के प्राक्रमण के पश्चात् कलिंग का जैन राजवश अभिलेखो कलिंगाधिपति और कलिग चक्रवर्ती कहा गया सम्पन्न हो गया था । प्लिनी ने तत्कालीन कलिंगराज की है। इसकी राजधानी कलिंग नगर थी । शिशुपालगढ शक्तिशाली सेना का वर्णन किया है"। कलिंग की नामक प्राचीन स्थान है, जो भुवनेश्वर से १।। मील सम्पन्नता पौर स्वतन्त्रता अशोक से सहन नहीं हुई। दक्षिण-पूर्व से अभिन्न माना गया है । अभिलेख के परिणाम स्वरूप ईस्वी पूर्व २६२ में उसने कलिंग पर अनुसार कलिग नगर के द्वार, प्राकार, भवन और उपवन प्राक्रमण कर दिया। अशोक की फौजों के साथ कलिंग तूफान में नष्ट हो गए थे। जिनकी मरम्मत खारवेल ने की सेनामों का दो वर्ष तक युद्ध चला। जब अशोक ने कराई थी। खारवेल ने दिग्विजय करके अपने राज्य को विजय के प्रासार धूमिल देखे तब अन्याय अत्याचार बहुत विस्तृत कर लिया था और उसकी प्रसिद्धि कलिंग का पाश्रय लिया। अनेक नगर अग्नि मे भस्म हो गए, सम्राट् के नाम से हुई । खारवेल के बाद उसके पुत्र ने नगर के नगर वीरान करा दिए, भारी नर-सहार किया, राज्य किया। तब किसी तरह उसे विजय मिल सकी। अशोक ने युद्ध सन् १९४७ में शिशुपालगढ़ में जो पुरातात्त्विक भूमें अपनी उच्छृखंल और बर्बर वृत्ति से कलिंग के जन-घन उत्खनन हुआ था, उसमे उड़ीसा के जैन मुरुंड राजाओ का बुरी तरह से विनाश किया। इस भीषण युद्ध मे एक के राजत्व का स्पष्ट प्रमाण मिल गया है । इस भू-उत्खनन लाख प्रादमी मारे गए और डेढ़ लाख बन्दी हुए। और में मिली हुई एक स्वर्ण मुद्रा के सम्बन्ध मे पालोचना करते युद्धोत्तर उपरांत होने वाली महामारी आदि दुविपाक हुए डा० अल्तेकर ने कहा है कि 'यह मुद्रा महाराजासे लाखों व्यक्ति अपने प्राणों से हाथ धो बैठे । अशोक ने घिराज "धर्मदामघर" नामक किसी मुरुण्ड राजा द्वारा स्वय १३वें लेख में यह स्वीकार किया है कि कलिंग युद्ध प्रचलित की गई थी।' उन्होंने प्रागे बताया कि 'तव में श्रमण और ब्राह्मण उभय सम्प्रदाय की जनता को मुरुण्ड राजा उड़ीसा में ईसा की तीसरी शताब्दी में शासन १५. कलिय से जिनकी मूर्ति को विजय के चित्र में करते थे और वे जैन थे। ले जाने वाला नन्दिवर्धन था। खारवेल ने पौने तीन डा० नवीनकुमार साहू ने प्रमाणित किया है कि सौ वरस पीछे मगध से उसका बदला चुकाया । १७. भारतीय इतिहास की रूप-रेखा पृ० ७१६ 'भारतीय इतिहास की रूपरेखा' वृ०४१३। १८. एन्सियेन्ट इडिया नं. ५ शिशुपाल गढ़ उत्खनन १६. देखो, हिन्दी विश्वकोष भाग २ पृ० ३८२ रिपोर्ट
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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