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७०, वर्ष २४, कि०२
भनेकान्त
कलिंग से अलग हो गया था। इस कारण उसका न.म में विहार कर जैनधर्म का खूब प्रचार किया। पार्श्वनाथ त्रिकलिंग पड़ गया था। मेगस्थनीज आदि विदेशी पर्यटकों के विहार स्थल देशों में अंग, बंग के साथ कलिम का भी ने अपने भू-भ्रमण वृत्तान्तों में उसे उत्तर कलिंग, मध्य उल्लेख मिलता है। पार्यमज्जु श्री मूलकल्प ९८३ ई० कलिंग और दक्षिण वलिंग के नाम से उल्लिखित किया में तिब्बतीय भाषा में अनुवादित हुआ था। उसके एक है। इन तीन विभागो की सीमायो का वर्णन इस प्रकार अध्याय मे ७७० ई० तक के भारतीय राजवंशों का
वर्णन है। उसमे ऊँचे साधकों की गिनती मे कलिंग के कलिग की सीमाएं-वंशधारा नदी के किनारे से ऋपभ का नाम लिखा है"। लेकर दक्षिण मे गोदावरी तक सब प्रदेश दक्षिण कलिंग जैन तीर्थङ्करों के साथ जन संस्कृति का मुदृढ़ सम्बन्ध कहलाता था । इसकी राजधानी कलिंगपत्तन थी। रहा है। भगवान पार्श्वनाथ और महावीर के साथ ऋषिकूल्या नदी से लेकर वंशधारा नदी तक का भू-माग कलिंग की प्राचीन संस्कृति का घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। मध्य कलिंग कहा जाता था। इसकी राजधानी समापपुरी खण्डगिरि मे भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमानों को थी, जिसे वर्तमान मे जौगढ कहते हैं। उत्तर कलिंग मूलनायक के रूप में सम्मान प्राप्त है। पार्श्वनाथ की कुल्या नदी से प्रारम्भ होकर उत्तर मे गगा नदी के परम्परा के अनेक राजा जैन संस्कृति के उपासक थे, किनारे तक विस्तृत था जिसमे सिंहभूमि, मेदिनीपुर और जिन्होंने कलिंग पर शासन किया है । पार्श्वनाथ की बाकुरा जिला भी शामिल था। इसकी राजधानी वर्तमान परम्परा में होने वाले राजा करकण्डु ने, जिसकी राजधानी भवनेश्वर के निकटवर्ती खण्डगिरि और घौली के मध्यवर्ती दन्तपूर थी,१२ राज्य किया और तेरापुर में जैन मन्दिर स्थान में थी। उसका नाम तोषालि या तोषली था। बनवाए और पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की। इससे कलिग की समृद्धि का अनुमान लगाया जा सकता कपिष्ट, प्रजातशत्रु, शत्रुसेन, जितारी और जितशत्रु
नामक राजापो ने राज्य किया और प्रजा का पुत्रवत् ___ मेगस्थनीज ने कलिंग देश को महानदी और गोदावरी पालन किया"। इनमें जितारी का पुत्र राजा जितशत्रु के बीच बतलाया है और लिखा है कि "कलिंग के -
१०. अंग, बंग कलिगे च कर्णाटे कोंकणे तथा । सकल लोग समुद्र के सबसे निकट रहते थे । इस देश की
कीतिकृत पार्श्वनाथ चरित्र । राजधानी पार्थलिस थी । इसके प्रबल राजा के पास
११. देखो भारत के प्राचीन राजवंश, भाग २ १०६६ ६०,००० पैदल, १०,००० घोड़े और ७०० हाथी थे।
१२. दन्तपुर या दन्तिपुर कलिंग का ही एक उपनगर है । कलिंग में जैन संस्कृतिः-कलिंग पर जैन राजानों
'कलिंग विषये दिव्ये पुरं दन्तिपुरं गतः ।' हरिपेण ने सभवतः सात सौ वर्षों तक राज्य किया है। जैन
कथा कोश २०७ प०६४ बोद्ध ग्रंथों मे लिखा संस्कृति चूकि अहिंसा प्रधान है इसलिए उसका दूसरो
हैं कि बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् उनका एक दांत से वैर-विरोध होना बहुत कम सभव है । जैनियों के
कलिंग के राजा ब्रह्मदत्त को दिया गया था उन्होंने तेईसवें तीर्थङ्कर भगवान पार्श्वनाथ के समय से लेकर
उसे सुवर्ण मन्दिर में रखा था। इसी दन्त के कारण सम्राट् खारवेल के समय तक तथा उसके कुछ बाद तक
कलिंग की राजधानी ने दन्तपूर नाम पाया। हिन्दी जैन साम्राज्य रहा है। यद्यपि बीच में कुछ समय तक विश्वकोष नागेन्द्र वसुकृत पृ० १६७ दूसरों का भी राज्य रहा है किन्तु कलिंगवासी पुनः महावस्तु के अनुसार दन्तपुर कलिंग का प्रधान नगर स्वतन्त्रता प्राप्त करते गए।
था। भगवान पार्श्वनाथ ने अंग, बंग और कलिंगादि देशों
१३. कपिष्टनामान्वयभूषणस्त्वभूदजातशत्रुतनयो
स्ततोऽभवत् । ८. प्राचीन कलिंग या खारवेल पृ०२
स शत्रुसेनोऽस्य जितारिरङ्गजस्तङ्गजोऽयं जित६. देखो, भारत के प्राचीन राजवंश भाग २ पृ०६६ शत्रुरीश्वरः ।। -हरिवंश पुराण ६६-५