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कलिङ्ग का इतिहास और सम्राट् खारवेल : एक अध्ययन
परमानन्द जैन शास्त्री कलिङ्ग का इतिहास :
कोल ब्रुक साहव के मत मे गोदावरी नदी के तट का ___ प्राचीन समय में कलिङ्ग भी एक जनपद था। प्रदेश कलिङ्ग कहलाता था। टालेमि ने गंगासागर परन्तु सोलह जनपदों की सूची में उसका नाम नहीं है। के निकट कलिङ्ग राज्य बतलाया है। जगन्नाथ के पूर्व उसका विकास और समृद्धि क्रमश: बढ़ती गई और वह भाग से लेकर कृष्णा नदी के तीरान्त में कलिङ्ग देश है अपनी चरम सीमा तक पहुंच गई। उसकी समृद्धि का और उसे वाममार्ग परायण बतलाया है। पूर्वी समुद्रतट कारण जैन राजाओ का प्रजापालन, वात्सल्य और पर कलिङ्ग देश था, जहाँ इस समय महानदी बहती हैं। अहिंसक प्रवृत्ति थी। जैन शासको की नीति सूखात्मिका महाभारत प्रादि मे कलिङ्ग के दो नगरों का उल्लेख और निर्भय बनाने वाली थी। यही कारण है कि वहा के है मणिपुर और राजपुर । बौद्ध ग्रन्थो मे कलिङ्ग के निवामी परम्पर मटन और एकता के हामी थे। दन्तपुर और कुम्भवती नाम के दो प्राचीन नगरो के नाम कलिङ्ग का इतिवृत्त बतलाता है कि वह एक शक्तिशाली का उल्लेख मिलता हैं। पुन्नाटसधी जिनसेनाचार्य के देश था। कलिङ्ग की सम्पन्नता, स्वाधीन वृत्ति और हरिवश पुराण में कलिंग का केवल उल्लेख ही नहीं है, बलवत्ता ईर्षा की वस्तु थी। उसके बढ़ते हए बैभव को किन्तु वहाँ के शासको का भी नामोल्लेख हुमा है। कोई प्यार की दृष्टि से नहीं देखता था। कोई भी सम्पन्न और उसी पुराण के २४३ पर्व के ११वे श्लोक में कलिंग देश उमके उत्कर्ष को सहन करना नही चाहता था। यही के जितशत्रु नामक राजा का उल्लेख करते हुए कांचनकारण है कि दूसरे राज्यो ने कलिंग पर आक्रमण किये, पुर नामक नगर का नाम दिया है। हरिषेण के जैन किन्तु कलिङ्गवासी इतने म्वातन्त्र्य प्रिय और स्वाभिमानी कथाकोप मे दन्तपुर और धर्मपुर नगरो का नामोल्लेख थे कि अबसर पाते ही स्वतन्त्र हो जाते थे। उनकी हुअा है। भारतीय साहित्य में कलिग के अन्य नगरो के एकता अनुकरणीय थी। कलिङ्ग का उल्लेख महाभारत नाम अन्वेपणीय है।
और रघुवश आदि में भी पाया जाता है। कलिङ्ग पर जरत कलिंग में दक्षिण कौशल का समस्त राज्य भी कुमार और उसके वशज अनेक राजामी ने राज्य किया
शामिल था, किन्तु कुछ समय बाद उसका कुछ भाग था । इस कारण कलिङ्ग की प्राचीनता स्पष्ट है। कहा जाता है कि कलिङ्ग का भू-भाग गगा से लेकर
४. Colbrookes Essoges Vol. II P. 178 गोदावरी तक और समुद्र से लेकर दण्डकारण्य तक फैला ५. Indian Antiquary Vol.XIII. P.363 हया था। उड़ देशके उत्तर में कलिङ्ग लोक में प्रसिद्ध है।
६. जगन्नाथात् पूर्वभागात कृष्णा तीरान्तग शिवे ।
कलिंगदेश: सम्प्रोक्तो वाममार्गपरायणः ।। १. कलिंग पाणिनी के समय मे जनपद राज्य था, परन्तु
-शक्ति संगमतन्त्र १६ जनपदो की सूची में उसका नाम नहीं है । कलिंग देश को वाममार्ग परायण लिखने का कारण पाणिनि कालीन भारतवर्ष . ७५
वहाँ जैन साम्राज्य का होना है। २. कूर्मपुराण आदि।
७. प्रासीन्नृपः कलि गेप पूरे कांचन नामनि । ३. प्रोड्रदेशादुत्तरे च कलिंगो विश्रुतो भुवि ।
जितशत्रु गणा स्यातो जितशवरभिख्यया ।। -कविराम दिग्विजयप्रकाश १८१
-हरिवंशपुराण २४-१