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पाण्डे जीवनवास का बारहमासा
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कहे नेमिनाथ सनों ज राजल, चित अपनो बसि करी॥ कहे नेमनाथ मूनोज राजल, चित अपनो वसि करौ।२६ प्रश्न-श्रावण प्रायो उमगि के, धन पायो विगसाय। दोहा-कातिक प्रायो फौज ले, मंगल गावत नारि ।
तुम विन डर लाग सरस घर चालो हरषाय ॥१८ कहुँ खेले कहूँ हंसि पर, कैसे परिस्यों भार ||३० श्रावण मायो सब न भायो कंथ चायो कामिनी। चाल-कातिक प्रायो फौज ल्यायो, कैसे चित तुम वास करो। चहुं पोर पवन झकोरि करि है लवं ददुर सामनी ।। त्रिया गावे गीत सरगमघरे, मावो घर प्रबचित घरो।। कोकिल बोल हिया डोल बीज चमक कन डर।
निस मांहि वीपक देष तुमरो, तसि जिवरो चले परं । गिरनारि गढ़ सं चलो नेमजी राजमति चितवन करं।।
गिरनार गढ़ संचलो नेमजी, राजमति चितवन करे । उत्तर-दोहा-श्रावण प्रायो प्रति भलो हमको कहा बिगार।
दोहा-कारिक प्रावो प्राज हो, मन नहीं तरसे मोहि।
ही जीव जतन बहने करो, कोउ न राखन हार ॥२०
पुद्गल स्यूं भिन्न में रहों, कहा सीखवू तोहि ॥३२ यह जीव कोईयन राख सक्क कालवलि सब घर है।
चाल-तो जीव तरसे सुन्न राजुल, तन्न अपनों जानिये । इंद्र और नरेन्द्र चक्रो, देव नर पशु लेर हैं ।
पुद्गल स्यं भिन्न भिन्न रहस्य, नीर क्षीर समानिये। ताते कहा उर सनो राजल चित अपनो सरवरी।
हंस जल को भिन्न करि है, तैसे तन को मैं करयो। कहे नेमिनाथ सनोज राजचित अपनो दसि करो।
कहे नेमनाथ सनी ज राजुल चित प्रपनो वसि करौ॥ प्रश्न-भादव वर्षा लग रही, पवन चले प्रति जोर।
दोहा-मगसिर पायो जोर स्यूं, लेय कटारी हाथ । नेमि पिया चलिये घरां, विरह जगावत मोर ॥२२
कसे अब तुम जायस्यों मक्ति रमण के साथ ॥३४ भाद्रव बरस देह तन्स, बहुत पवन सर ही।
चाल-प्रायोज मगसर मास प्रोतम, पवन शीतल प्रति बहै। ये बुद प्रावै मन न भाव, बोज करिहै सोर हो।
जब षांन पान स्वाद लगि है नीर शीतल बह चहै ।। घरे प्राय के व्रत क्यों न धारो, बहुत वन में दुष धरै।
तुम वाल वय में कैसे रहस्यो मोह दुठ कैसे जर। गिरनार गढ़ सुं चले नेमजी, राजमति चितवन करे ।।२३ उत्तर-भादव प्रायो समझि के, करस्यों, तप बहु भांत ।
गिरनारगढ संचलो नेमिजी, राजमति चितवन करै ।। मुक्ति रमण के कारण, देह अपावन सात ॥२४
दोहा-मृगसिर प्रायो क्या भयो, तन वसि कोनों प्राज । जग मांहि सुष न एक राजल, दुःख मांहि भ्रम्यो फिर। या घर को कछु हित नहीं, सिद्धन सों हम काज । ३६ गति च्यार मांहि अनंत मलि है, कालबमि जग यो फिर। चाल-यह देह षेह अपान है प्रति याह में कछ सार है। सब रोग-सोग-वियोग भरि है मरन जामन बह धरी। यह चर्म चादर बढ राषी, मूत्र मल को ठार है।
कहे नेमिनाथ सनोज राजल, चित अपनो वसि करो।२५ यह हाड़ पिजर माहि लागे, नेह या को हम टरयो। दोहा-पायो मास प्रासोज ही कसे धरस्यों ध्यान ।
कहे नेमनाथ सुनो जु राजल चित अपनो वसि करो।।३७ घर चालो तुम वेग हो, करो न हठ सग्यान ॥२६ दोहा-प्रायो पोस उछाहस्यूं, घणों परेगो शीत । चाल-पासोज लागे सुख भागे, बूंद शीतल प्रतिर। मुकत रमण तुम भूलि हो, पासो घर बहु भीत ॥३८
कहुँ बरस कहुँ नाहि बरषं, पवन बाजे ठंड परं । चाल-प्राया जु पोस उछाह सेती, शीत प्रति देही वहै । तुम देह प्रासक रहो कैसे, चित छिन में उले पर। कहा उठोगे जब प्राण प्यारे, कौन विध देही सहै ।।
गिरनार गढ़ सं चलो नेमिजी,राजमति चितवन करें। तुम तन कोमल है घनेरो, फौज काम की प्रति लरं। दोहा-प्रावो मास पासोज ही, चित्त डुले नहिं मोहि। गिरनारगढ़ सं चलो नेमिजी राजमति चितवन करे ।।
ध्यान लगाव सरस बह, किस विषिमें सुष होहि ॥२८ दोहा-पोस मास प्रावो तुरत नहीं हमरो काज ।। चाल-कैसे जु चित डले राजुल समाधि योग लगायस्यूं। अंतर ध्यान लगायस्यूं मुक्ति रमण हित साज ।।४०
परमेष्ठि पञ्चम ध्यान ल्याऊ, मुक्ति पर ज्यूं पायस्यूं। चाल-प्रास्रव होय कहा प्रसोभै पवन शीतल प्रति लगे। जीव निसदिन फिर हंडित, नर्क दुष यों में परचो। इन्द्रिय पंच पयार जहां तहां, राग-द्वेष स्यं चित भग।।