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________________ पांडे जीवनदास का बारहमासा गिन्नीलाल जै. हिन्दी साहित्य के अनेक विद्वान और उनका साहित्य नोबत बाजे अति सुभग, भरे नगारा ढोल । अभी तक अप्रकाशित ही है। १० जीवनराम पाण्डे भी तुरही संख सुहावां, बहु बांटत तंबोल ॥१॥ उन्ही में से एक है। वे २०वीं शताब्दी के दिल्लीके विद्वान नेमि जिनन्द टूकण चले, उग्रसेन घरि जाय । भट्टारकों के शिष्य हैं। वे भट्टारक ललितकीति की शिष्य नारी पुर को एक होय, गावें गीत रसाय ॥६॥ परम्परा में हुए हैं। यह भट्टारकीय पंडित थे और हिन्दी सब सखियन के लरे, राजल बैठी प्राय । भाषा के विद्वान थे। इनको बारहमासा नाम की एक देख नेमि मन भावना, अंग-अंग विगसाय ॥७॥ रचना है । यद्यपि वह साधारण है, फिर भी उद्बोधक है। पश सबद सुन नेम जी, रथ सुं उ. रे वेग । पं० रूपरामजी के शिष्य पाण्डे जीवनराम जी थे, जो ककण डोरे तोरि के, रिपु जीतन लई तेग ।।८।। अन्तिम भट्टारक राजेन्द्रकीति जी के समय मे फतहपुर पशु छड़ाये तुरत ही, वार कछु न लगाय । शेखावटी के दिगम्बर जैन बड़े मन्दिर जी मे रहते थे। उज्जंती गिर चढ़ गये देव रिषि सब प्राय || वे जाति के ब्राह्मण थे और ज्योतिप व वैद्यक के अच्छे टोंक पचमी ऊपरे, दीनो ध्यान लगाय । जानकर थे। वे मन्दिर जी में पूजापाठ भी किया करते मोह जीत रिपु दल हने अंतर सुरत सलाय ॥१०॥ थे । उनका लिखा हुप्रा एक गुटका' मन्दिर जी में है। राजुल सुन ये बातड़ी, गिरे तेवालो (मछित) षाय । उसमे ज्योतिष व वैद्यक की बहुत सी चीजें लिखी हुई हैं। सखियां चदन छिटकियो, वेग लई ज उठाय ॥११॥ समय-समय पर कितने ही विद्वान उसको देखकर कितनी राजल चाली नेमि पं. गिर पर पहुँची जाय । ही चीजे उतारकर ले जाते है । उनका ही लिखा हुअा एक हाथ जोड़ स्तुति करि, बहु विध शीश नवाय ॥१२॥ दूसरा गुटका अभी मेरे देखने में आया जिसमे जीवनदास, यह सजम वय है नहीं, तुम समझो चित मांहि । खुशालचन्द, बुधसूरदास, कनककीति और विनादीलाल द्वादश मास कैसे षमो, समझावो हम जांहि ॥१३।। के पद है। हेमचंद मुनि लिखित राजमती की चूनड़ी है। बारहमासा उसी में पाण्डे जीवनराम जी का लिखा हुमा स० १६१० दोहा-प्रासाढ मास सहावणों, कुछ वरपे कुछ नाहिं । ज्येष्ठ वदी १० का बनाया हुअा नेमनाथजी का बारहमासा नेमि पिया घर प्राइये, क्यूं तुम लोग हंसाहि ।।१४ है जो आप सबकी जानकारी के लिए नीचे दे रहा है... चाल-प्रायोजु मास अषाढ प्रीतम, प्रथम मनायूं शारदा, गुरु के लागों पाय। पहले व्रत तुम नहि लियो। नेमनाथ ध्याहन चढ़े, हरषे रानो राय ॥१॥ छप्पन कोड भये जनेतो दुष्ट जन कप हियो । छप्पन कोडि जादव मिले, इक दइयां महाराज । बलभद्र और मुरारि संग ले बहुत सब सरभर करें। देखत उपजे हर्ष प्रति, घन ज्यों चाले गाज ||२॥ गिरनारगढ़ सं चलो नेमिजो राजमति चितवन करें ॥१५ उग्रसेन द्वारं गया, गये बधाई दार । उत्तर-प्रायो मास असाढ ही, मन नहिं उलस मोहि। सज्जन जन हरष्यो हियो, बटी बधाई सार ॥३॥ मुकत रमण हित कारण, छाड़े घर सब तोहि ।।१६ हीरा, पन्ना बहु दिया, प्रस चुन्नी बहुलाल । यह जीव तो निस सुपन जानौं कहा बढाई कीजिये । दिया, बधाई वार कों, बहु प्राभरण भुभाल ॥४॥ ये बंधु, भगनी, मात-पिता ही, सर्व स्वारथ लीजिये। १. अने० वर्ष ११ किरण १२ फतेहपुर के जैन मूनि लेख । तिह बात हम सब त्याग दीनों, मोक्ष मारग पग घरो।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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