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________________ संत कबीर पोर थानतराय मधुरता आदि गुणों से विभूषित देखा है । महात्मा कबीर जैन भक्त द्यानतराय भी जिनेन्द्र के नाम-स्मरण को ज्ञानी गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्हें ईश्वर सुखद, दुःख भंजक, त्रय ताप-विनाशक, मगलकारी और से भी बड़ा मानते हैं - शान्तिदाता मानते हैं। उनका कहना हैसतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार । जैन नाम भज भाई रे । लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार । जा दिन तेरा कोई नहीं, ता दिन नाम सहाई रे। गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय । अगनि नीर हशत्रु वीर व महिमा होत सवाई । बलिहारी गुरु मापने, जिन गोविन्द दियो बताय। दारिद जावं धन बह पावं, जो मन नाम दुहाई रे ।१२८॥ यानतराय भी ग्रह को ही उद्धारक मानते हुए उनके नाम-स्मरण को पद्धति के सम्बन्ध में सगुण भक्तों चरण-कमलों को नित्य प्रति हृदय मे बसाने की प्रेरणा का दृष्टिकोण कुछ उदार रहा। तुलसी का मत है कि भाव या कुभाव, उपेक्षा या प्रालस्य से-कैसे-मी राम तारन तिरन जिहाज सुगुरु है, का नाम लेने से तोनो लोको में मंगल हो जाता है।' सब कुटुम्ब डोब जग तोई । सन्त कवियो के नाम-स्मरण के ढग में इतनी सरलता की धानत निशिदिन निरमल मन में, गु जाया नही। कबीर के अनुसार नाम के प्रभाव के राखो गह-पद-पंकज दोई। लिए उसके स्मरण में निरन्तरता, इकतारता और हृदय ___ कबीर साधु-सेवा के अतिरिक्त दूसरी कोई हरि-सेवा की पवित्रता होना अनिवार्य है। नाम स्मरण के सम्बन्ध ही नहीं मानते: में द्यानतराय की भी यही धारणा है:जा घर साधन सेवियहि, हरि की सेवा नाहिं। द्यानत उत्तम भजन है को मन रटके। द्यानतराय साधुनों के गुण-गान को भी मोक्षप्रदायक भव भव के पातक सबै, जैहैं तो कट ७॥ मानते है:धानत भवि तिनके गणगावं, ऐसा सुमरन कर मेरे भाई, पावै - शिव - सुख दुख नसाहीं । पवन भै मन कितहूँ न जाई ।१०१॥ नाम स्मरण बाह्याचार खंडन भारतीय भक्ति साधना मे नाम स्मरण का महत्वपूर्ण बाह्याचार का खडन कबीर प्रादि सभी सन्तों के स्थान है। तीर्थ, वन प्रादि मे श्रद्धा रखने वाले सगुण काव्य का प्रमख प्रादर्श था। वैष्णव इस्लाम भक्तों ने भी समस्त जप, तप, व्रत, तीर्थ, भोग, ज्ञान, जैन ग्रादि विविध धर्मों के अनुयायी वेष तीर्थ प्रादि वैराग्य प्रादि को धप मानकर नामरूपी कल्पवृक्ष के नीचे बाह्याचार में उलझ कर परस्पर सौहार्द की भावना को बैठने में ही सुख और प्रानन्द माना है।' निर्गुण काव्य बिल्कुल भूल गए थे। अतः सन्तो ने बाह्याचार का तीव्र मे तो उपासना की पद्धति ही एक है-नाम-स्मरण । खडन कर मन की पवित्रता पर जोर दिया। जैन कवि कबीर अपनी भक्ति, सेवा, पूजा, बान्धव, भाई और बाह्याचार का उग्र विरोध तो नहीं कर सके, किन्तु उद्यम सर्वस्व राम के नाम-स्मरण को ही मानत है। बाद्याचार की अपेक्षा मन की पवित्रता को धंष्ठ अवश्य उनके विचार से गम के नाम का स्मरण ही प्रज्ञान और करने कहते रहे । धानतराय अपने कई पदों में प्रमुख जैन तीर्थ वाला तीनो तापो का विनाशक है, अत: उसे अमूल्य जानकर हस्तिनापुर और गिरिनार का जाने की प्रेरणा देते हैं, हृदय मे धारण करना चाहिए ४. द्यानत पद संग्रह, पद २३२ । राम नाम हिरदै परि निरमोलिक हीरा । ५. भाव कुभाव अनख पालसहूँ, सो भो तिहुँ लोक तिमिर जाय त्रिविध पोरा।। राम जपत मंगल दिसि दसहूँ। ३. विनय पत्रिका पद १५५ । ---रामचरित मानग, बाल
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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