________________
६०, वर्ष २४ कि० २
अनेकान्त
जोडा नगर) में की है। ग्रन्थ मे ६५१ पद्य का लिखा हुपा है । अतएव रचना उसके बाद की नहीं: है. प्रस्थ की यह प्रति दोसा भडार की है । कवि ने तक्षक- हा सकती, किन्तु उससे पूर्ववर्ती है और वह संभवतः
न करते हए लिखा है कि तक्षक गढ विशाल १५वी शताब्दीकी जान पडती है। रचना सुन्दर और गति मानो कप बावडी, वाग प्रादि से अलकृत था। शील है। पाठकों की जानकारी के लिए उसके कुछ दोहे चारो दिशाम्रो A बाजार था जिसमें कपड़ा, नीचे दिये जाते है, जिनमें अनित्य, अशरण संसार, प्रशचि मोती प्रादि सभी जीवनोपयोगी सामान मिलता था। भावना और एकत्व का स्वरूप दिया गया है।बडा ऊंचा जिन चैत्याल था, जो ध्वजा, चदोवा व तोरण जल बम्बउ जोविउ चवल, पण जोवण तडि-तुल्ल । दारों से सशोभित था। वहां श्रावकगण जिनपूजादि कार्यों इसउवियाणि वि मा गमोह, माणुस जम्मु अमुल्ल ॥५ में संलग्न रहते थे। कवि का विहार अनेक नगरों मे हुआ जइ णिच्च वि जाणियइ, तो परिहरहि प्रणिच्यु । है. सांगानेर, हरसौरगढ़, तक्षकगढ़ (टोडा नगर) आदि। ते काइं णिच्चु वि मुणहि, इय सुयकेवलि वृत्त ॥६ कई रचनामों मे तो स्थान का नाम नहीं मिलता, जिससे प्रशरणभावनायह बतलाना कठिन है कि वह कहाँ पर रची गई। प्रसरण जाणहि सयलु जिय, जीवहं सरण न कोई।
रवी रचना 'भक्तामरस्तोत्र वृत्ति' है। जिसे कवि सण-णाण-चरितमउ, अप्पा अप्पउ जोह॥७ महासागर के तट भाग मे समाश्रित ग्रीवापुर के चन्द्रप्रभ सण-णाण-चरितमउ, प्रप्पा सरण मह। जिनालय मे वर्णी कर्मसी के वचनों से भक्तामरस्तोत्र की अण्ण ण सरण वियाणि तह. जिणवर एम भणेह॥ वृत्ति की रचना वि.सं. १६६७ माषाढ़ शुक्ला पंचमी
एकत्वभावनाबुधवार के दिन की है।
इक्किल्लउ गुण-गण-निलज, बोयउ अस्थि ण कोह। इनके अतिरिक्त कवि की निम्न रचनाएं और ज्ञात
मिच्छा सण मोहियउ, चउगइ हिंडइ सोइ ॥११ हुई हैं । जंबूस्वामी चौपई, चन्द्रगुप्त चौपई । प्रादित्यवार
जइ सद्दसणु सोलहइ, जो परभाव चएइ । कथा और चिन्तामणि जयमाल, कवि की अन्य रचनाएं भी
इविकल्लउ सिव-सह लहइ, जिणवरु एम भणे ॥१२ अन्वेषणीय हैं।
लक्ष्मीचन्द-कवि ने रचना में अपना कोई परिचय अशुचिभावनानहीदिया, पापकी एक मात्र कृति 'दोहा अनुप्रेक्षा' है, जिसमे सत्त धाउमउ पुग्गलवि, किमि कुल प्रसइ निवास । ४७ दोहे दिये हुए है। जिनमे अनित्यादि बारह भावनामों तहि णाणिउं किमई करइ, जो छंडइ भव-पास ॥१५ का सन्दर विवेचन किया गया है जो प्रात्म-प्रबोधन के असुइ सरीर मणेहि जइ, अप्पा जिम्मल जाणि । लिए उपयोगी है । ग्रन्थ मे रचना काल भी नहीं है, किन्तु तो असुइ वि पुग्गलचहिं एम भणंतिहणाणि ।।१६ उक्त रचना जिस गुच्छक में लिपिबद्ध है वह स. १५७० अनुप्रेक्षा की भाषा पुरानी हिन्दी है, दोहा भावपूर्ण
और रोचक हैं। यह मूल रूप मे अनेकान्त में प्रकाशित ८. सोलास छत्तीस वखान, ज्येष्ठ सांवली ते रसि जान ।
हो गई है, किन्तु उसे सम्पादित कर आधुनिक रूप में सौभ वार सनीचरवार, गृह नक्षत्र योग शुभसार ।
प्रकाशित करना चाहिए । कवि ने ग्रन्थ में अपना कोई परिहै. चक्रवृत्ति मिमां स्तवस्य नितरां नत्वा (सू १)
चय नही दिया और न कही अपना नाम हो अकित किया, . वादीदुकम् ।।७
किन्तु गुच्छक में अकित होने से उसे लक्ष्मीचन्द्र के नाम सप्त षष्ठयकितें वर्षे षोडशाख्ये हि संवते ।
मे दिया है। कवि की गुरु परम्परा अन्वेषणीय है। प्राषाढश्वेत पक्षस्य पंचम्या बुधवार के ॥ ग्रीवापुरे महासिन्धो स्तटभागं समाश्रिते ।
कवि पाहल-ने अपना कोई परिचय और गुर परप्रोोत्तुंग-दुर्ग-सयुक्त चद्रप्रभ-सद्भनि |
म्परा एव ग्रन्थ का चना समय नही दिया, जिससे उनके