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________________ हिन्दी के कुछ अज्ञात जैन कवि और अप्रकाशित रचनाएं परमानन्द जैन शास्त्री ब्रह्म रायमल मूलसंघ सरस्तीगच्छ के मुनि अनन्त- सुदर्शनरास, श्रीपालरास, भविसयत्तकहा रास, और कीर्ति के शिष्य थे, जो भ० रत्नकीति के पट्टधर थे। भक्तामर स्तोत्र वृत्ति, परमहंस चौपई जंबूस्वामी चौपई, रायमल संस्कृत और हिन्दी के अच्छे विद्वान थे । इनका चंद्रगुप्त चौपई, आदित्यवार कथा और चिन्तामणि वंश हमड़ था और पिता का नाम मा तथा माता का जयमाल । नाम चम्पादेवी था। कवि ने इससे अधिक अपना परि. ब्रह्म रायमल की सबसे पहली रचना नेमीश्वर रास चय नही दिया। कवि १७वों शताब्दी के विद्वान थे। है। जिसमे नेमिनाथ का जीवन परिचय प्रकित है। रास कवि ने अनेक देशों में भ्रमण किया और कितने ही की भाषा हिन्दी और गुजराती मिश्रित है। रचना काल स्थानों के जैन मन्दिरों में बैठ कर रासा साहित्य की सं० १६१५ श्रावण कृष्णा त्रयोदशी है। अभिवद्धि की। तथा उपदेश द्वारा विविध लोगों को दूसरी कृति हनुवत कथा है। जिसमें पवनजयपुत्र सम्बोधित किया। कवि की रचनाएं यद्यपि साधारण हनुमान का जीवन परिचय दिया हुमा है । पवनंजय हनुकोटि की है परन्तु कोई-कोई रचना बहुत सुन्दर मोर मान के पिता थे। और अंजना देवी उनकी माता थी, भावपूर्ण एवं सरस हुई है । लोग इन रचनाओं को संगीत जो राजा महेन्द्र की पुत्री थी। कवि की रचना यद्यपि के साथ गाते थे, उससे जनता प्रानन्द विभोर हो उठती साधारण है किन्तु कथानक सुन्दर है। दिन बीत गया थी। उनसे जनता का जहाँ मनोरंजन होता था वहाँ सूर्य अस्त हो गया। पक्षी आकाश में शब्द कर रहे हैं । उससे शिक्षा भी मिलती थी। प्रापकी निम्न कृतियाँ राजा पवनंजय अपने मित्रों के साथ महल की छत पर उपलब्ध हैं-नेमीश्वररास, हनुवंत कथा, प्रद्युम्न रास, बैठे हुए है। उन्होने सरोवर के किनारे पक्षी देखे, जो १. मूल सघ जगतारणहार, शारदगच्छ तणो शुभसार । गम्भीर शब्द कर रहे थे। दशो दिशाओं में अंधेरा छा गया और चकवा चकवी मे अन्तर हो गया-वे जुदे-जुदे पाचाराज सकलकीति मुनि गुणवन्त, हो गये । कवि के इस वर्णन मे स्वाभाविकता है । तास माहि गुण लहो न अन्त ॥ दिन गत भयो प्राथयो भान, पंखी शब्द कर असमान । तिह को अमृत नाव अति चंग, मित्र सहित पवनंजयराय, मन्दिर ऊपर बैठो जाय । रत्नकीर्ति मुनि गुणी अभग । देखे पंखी सरोवर तोर, कर शब्द प्रति गहिर गहीर । अनन्तकीर्ति तास शिष्य जान, दसों दिशा मख कालो भयो, चकवा चकवी अन्तर लयो। बोल मुखतें अमृत वान ॥ कवि ने बालक हनुमान का प्रोजस्वी चित्र खीचा तास शिष्य जिन चरणा लीन, है। कवि कहता है कि जब बालक रूपी रवि (सूर्य) ब्रह्म रायमल बुध को हीन । का उदय होता है तब सब अधकार दूर भाग जाता है। X X X श्रीमद् हवंड वंश मण्डन मणि,महियेतिनामा वणिक । सिंह छोटा भी हो, तो भी वह दन्तियों के मारने में तद्भार्या गुणमंडिताव्रतयुत्ता, चम्पा मितीताऽभिधो॥ समर्थ होता ही है। सधन वृक्षों से व्याप्त वन कितना ही तत्पुत्रो जिन पाद पकंज मधुपो रायादि मल्लो वृती। २. सोलहस पद्रोहत्तरै रच्यो जी रासु । -भक्तामरस्तोत्र वृत्ति । सांवली तेरसि सावणमासु, वरत जीव घुवासर भलो॥
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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