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अपभ्रंश का एक प्रचचित चरितकाव्य
तिल्लोपचक संखोहणाइ, संपुण्ण तवें प्रज्जिय विसेण ।
बेद बहुल वारसि जाणिज्जा, माहह सिय तेरसि माणिज्जहु । जेठ्ठहु बहुल चउद्दसि जाणहु, वइसाहउ सिय पडिव पमाणह । मग्गसिरहं सिय चउदसि जाणिया, पुण एयारसि जिणवर काणिया ।
संगीतात्मक ताल और लय से समन्वित पद-रचना देखते ही बनती है । यथा
झरति दाण वारि लुद्ध मत्त भिंगय, णिरिक्ख एस दतु वेयदंत संगयं । प्रलद्ध जुज्झु ढिक्करत सेयवणयं, घरम्मि मह संपविस्समाणु गोवय । पउभियं वमं चलं च पिंगलोयणं, विभा सुरंघु लंतकघ केसरं घणं ।
सणंकरं तुयंतु संतु लवं जोहयं,
पकोवपं पलित पिच्छए सुसीहयं । काव्य भाव और भाषा के सर्वथा अनुकूल है। भावों के अनुसार ही भाषा का प्रयोग दृष्टिगत होता है। फिर भी भाषा प्रसाद गुण से युक्त तथा प्रसगानुकूल है । जैसे कि
कालाणलि अप्पउ किणि णिहित्त, प्रासोविसु केण करेण छित्तु । सरगिरि विसाण किणि मोडियउ, जनमहिससिंग किणि तोडियउ। जो मह विमाण थन्भणु करेइ, सो णिच्छय महु हत्थ मरेइ । प्रसगतः अमर्ष सचारी भाव विभाव से संयुक्त होकर रोष के आवेग के साथ वीर रस का स्फुरण कर रहा है। इसी प्रकार अन्य रसों से युक्त होने पर भी रचना शान्तरस की है।
पृ० ५२ का शेषांस) वाली एक चतुर्विंशति मूर्ति (नं० २२०७३) स्थित है। दोनों ओर ब्याल प्राकृतियाँ उत्कीर्ण है। पीठिका के श्रीवत्स चिन्ह से युक्त मूलनायक को मध्य में ध्यान मुद्रा अन्तिम भाग में दोनों ओर उपासक प्राकृतियों को मूर्तिगत में पद्मासनस्थ प्रदर्शित किया गया है। देवता की कलाई के .किया गया है। खजुराहो से प्राप्त होने वाली इस मूर्ति नीचे का भाग व वामपाद संप्रति खण्डित हो चुका है। को शैली व प्रतिमाशास्त्रीय विशेषताओं के प्राधार पर तीर्थकर की पीठिका के नीचे उत्कीर्ण दो सिंह सिंहासन ११वीं-१२वी शती में तिथ्यांकित किया जा के सूचक हैं। देवता की केश रचना गुच्छको के रूप में सकता है। निर्मित है और स्कन्धो पर केश की लटे लटकती हुई गोदाम में सगृहीत चौमुखी (सर्वतोभद्रिका) प्रतिमा उत्कीर्ण है। पादपीठ के नीचे देवता का लाछन वृषभ (१०३'x'x') मे चारों दिशाओं में एक नग्न उत्कीर्ण है। देवता के दोनों पाश्यों में प्राभूषणों से सुस- तीर्थकर प्राकृति को खडा उत्कीर्ण किया गया है । लांछन ज्जित द्विभुज सेवक प्राकृतियों चित्रित है। दोनों प्राकृ. व श्रीवत्स चिन्ह रहित सभी प्राकृतियों की भुजाएं काफी तियो की एक भुजा मे वृत्ताकार वस्तु प्रदर्शित है, किन्तु कुछ भग्न है । इस चित्रण की विशिष्टता है चार प्रमुख दूसरे भुजा की वस्तु अस्पष्ट है। देवता के मस्तक ऊपर तीर्थकों के अतिरिक्त प्रत्येक कोने पर दो आसीन तीर्थचित्रित त्रिछत्र के दोनों ओर सवाहन गज प्राकृतियाँ करों का चित्रण । इस प्रकार यह मति कुछ १२ तीर्थकरो अकित है। त्रिछत्र के ऊपर दो कतारो में शेष २३ तीर्थ- का प्रकन करती है। इस मूर्ति का प्राप्ति स्थल अज्ञात है। करो को सक्षिप्त पद्मासनस्थ व कायोत्सर्ग आकृतियाँ इसकी शैलीगत विशेषताओं के आधार पर इसे परवर्ती चित्रित है, जिसमें से काफी खण्डित है। सम्पूर्ण प्रकन के मध्य युग में तिथ्याकित किया गया है। *