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________________ भारत कला भवन का जैन पुरातत्व मारुति नंदन प्रसाद तिवारी वाराणसी स्थित भारत कला भवन में विभिन्न युगों तीर्थंकर का चित्रण करने वाली एक अन्य गानसे सम्बन्धित कई जैन प्रस्तर और कांस्य प्रतिमायें, सगृ-. यंगीन (६ठी शती ईसवी) मति (नं. १६१) में देवता हीत हैं, किन्तु इस लेख में हम मात्र प्रस्तर प्रतिमानो का को। क ऊची पीठिका पर ध्यान मद्रा में प्रासीन चित्रित ही अध्ययन करेंगे, क्योकि कास्य प्रतिमानों का अपना किया गया है। पीठिका के नीचे विश्वपथ का प्रश्न स्वतंत्र महत्व होने के कारण उस पर एक अलग लेख चित्ताकर्षक है। पीठिका के मध्य में उत्कीर्ण धर्मचक्र के अपेक्षित है। दोनों मोर दो सिंहों का प्रदर्शन तीथंकर के सिंहासन पर २३वें तीर्थकर पार्श्वनाथ के एक कुषाण युगीन . पासीन होने की पुष्टि करते हैं। धाराणसी से प्राप्त इस शीर्षभाग (मं. २०७४८) को शैली के घाघार पर प्रथम मति के पादपीठ के दोनों घेरों पर चित्रित दो तीर्थकर शती ईसवी में तिथ्यांकित किया गया है। मथुरा से प्राप्त स प्राप्त इस मंकन की विशिष्टता है। इस नयनाभिराम चित्रण होने वाले इस शीर्ष में देवता के मस्तक पर सप्त फणों में मुख्य प्राकृति के दोनों पाश्वों में दो प्राकृतियो को से युक्त नाग का घटाटोप प्रदर्शित है, जो पाश्वनाथ . 1. उत्कीर्ण किया गया है, जो सभवत: शासन देवता है। अंकन की विशेषता है। देवता की केश रचना सीधी मुख्य प्राकृति के पृष्ठभाग में प्रदर्शित प्रलकरण हीन । रेखामों से प्रदर्शित सहायक प्राकृति की प्रवशिष्ट भुजा प्रभामण्डल के दोनों पोर गप्तयुगीन शिरोभूषा से युक्त के ऊपरी भाग में चांवर चित्रित है । दो उड्डायमान गन्धदों का चित्रण ध्यानाकर्षक है। देवता भारत कला भवन में शोभा पा रहे गुप्त युगीन ") की केश रचना गुच्छकों के रूप में निर्मित है। मूलनायक प्रतिमानों में एक महावीर शीर्ष (नं. २६४) का चित्रण के वक्षस्थल पर श्रीवत्स उत्कीर्ण है। गुप्तयुगीन समस्त करता है। राजघाट से प्राप्त इस मनोज्ञ शीर्ष में देवता । विशेषतामों से युक्त इस प्रतिमा के मुखमण्डल पर प्रदकी केश रचना गुच्छकों के रूप में निर्मित है । लम्बे कर्ण, शित मंदस्मित, शांति व विरक्ति का भाव प्रशसनीय है। अर्षनिर्मिलित नेत्र, मुख पर मंदस्मित का भाव, अन्तर्दृष्टि, संग्रहालय में यह प्रतिमा महावीर मूर्ति के नाम से स्थित लम्बी नासिका धादि इस शीर्ष की ध्यातव्य विशेषताएं है, पर मेरी दृष्टि में तीर्थकर के लाछन या किसी लेख हैं । यह शीर्ष समस्त गुप्त युगीन कलात्मक विशेषतामों । पादि के प्रभाव में इसकी निश्चित पहचान सभव नहीं का निर्वाह करता हुआ प्रतीत होता है । तीर्थकर प्राकृति ., "है। यद्यपि डा. यूः पी. शाह हिरणों के स्थान पर धर्मचक के ऊवभाग में उडायमान गन्धर्व प्राकृतियों को मूर्तिगत के दोनों पोर प्रदर्शित सिह प्राकृतियों के प्राचार पर इसे किया गया है, जिनकी भुजामों में पुष्पहार प्रदर्शित है। महावीर अंकन बतलाते हैं, क्योंकि धर्मचक के दोनों भोर देवता के मस्तक के ऊपर छत्र रूप में वृक्ष का अंकन तीर्थहरों के लांक्षनों के चित्रण की परम्परा गुप्तयुग में प्रशसनीय है । शैलीगत विशेषताओं में प्राधार पर इसे ताथकरो क लोभन सर्वथा प्रचलित थी। यह मूर्ति ४.५४' लम्बी व ३३ छठी शती ईसवी में तिथ्यांकित किया जा सकता है। चौड़ी है। यद्यपि यह शीर्ष संग्रहालय में महावीर अंकन के नाम से .." स्थित है, पर मैं किसी निश्चित प्रमाण या' लांछन के भारत काभवन में स्थित जैन प्रतिमानों में एक प्रभाव में ऐसा करना उचित नहीं समझता । विशिष्ट प्रकन कल्पवृक्ष पर मासीन तीर्थङ्कर का चित्रण
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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