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साहित्य-समीक्षा
१. षड्दर्शन समव्यय सटोक (सस्कृत हिन्दी टीका दर्शनशास्त्र के अभ्यासियो को मगा कर अवश्य पढना संयुक्त - मूलकर्ता हरिभद्रमूरि, संस्कृत टीकाकार चाहिए। गुणरत्नसूरि । सम्पादक स्व. डा. महेन्द्र कुमार जैन न्याया
२ प्रमाण-नय-निक्षेप प्रकाश-लेखक सिद्धान्ताचार्य पं. चार्य, प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ, दुर्गाकुण्डमार्ग वाराणसी
कैलाशचन्द्र जी शास्त्री, प्रकाशक डा० दरवारीलाल जी, -५, बडा साइज, छपाई, सफाई, गेटप सुन्दर, पृष्ठ सं०
मंत्री वीर सेवामन्दिर ट्रस्ट | पृष्ठ संख्या ७०, छपाई५५८ सजिल्द प्रतिका मूल्य २२) रुपया ।
सफाई सुन्दर । मूल्य एक रुपया पचास पैसा । प्रस्तुत ग्रन्थ का विषय उसके नाम से स्पष्ट है। प्रस्तुत ग्रन्थ का विषय उसके नाम से स्पष्ट है। प्राचार्य हरिभद्र ने ८७ कारिकामो द्वारा षडदर्शनो लेखक ने तत्त्वार्थसू के प्रथम अध्याय के छठे सूत्र प्रमाण का सामान्य परिचय कराने हैए प्रत्येक दर्शन के मूल नये रधिगमः-सूत्रगत नयदृष्टि के अभिप्राय को सिद्धान्तो को सन्तुलित रूप मे प्रस्तुत किया है और षड- खोलने का प्रयत्न किया है
खोलने का प्रयत्न किया है। क्योकि देवसेन ने दर्शनों में वैदिक और अवैदिक दर्शनो को ममाविष्ट किया लिखा है कि जो नयदृष्टि विहीनहै उन्हे वस्तुतत्त्व है । छह वैदिक दर्शन (सांख्य, योग, नैयायिक, वैशेषिक, की उपलब्धि नही होती, और वस्तुस्वरूप की पूर्वमीमासा और उत्तर मीमासा) माने जाते थे, किन्तु उपलब्धि के बिना वे सम्यग्दष्टि कैसे हो सकते हरिभद्र ने उनमे बौद्धदर्शन और जैन दर्शन को शामिल है? नगदष्टि से सम्पन्न सम्यग्दृष्टि होते है । ५० किया है, अनाव छह दर्शनों की मम्म- बोद्ध, नैयायिक, कंशन की प्रसिद्ध विद्वान और अच्छे लेखक है, उनकी माख्य जैन, वैशेपिक और जैमिनीय इस रूप में की गई है। अनेक कृतियां साहित्यको के सम्मुख पा चुकी है। उन्होने
टीकाकार गुण रत्नसूरि ने पडदर्शन ग्रन्थ पर सन्दर अपने अनुभव से प्रमाण नय और निक्षेप पर अच्छा टीका लिवकर उसके मर्म को खोलने का प्रयत्न किया है, प्रकाश डाला है । भाषा सुगम और सरस है, वह पाठकों उन्होंने ही उसके विभाग किये है । टीका ग्रन्थ के हादका के लिए अत्यन्त रुचिकर होगी। इस उपयोगी प्रकाशन उद्घाटन करती है। भाषा की दृष्टि से वह दुरूह के लिए लेखक और प्रकाशक वीर सेवा मन्दिर ट्रस्ट नहीं है।
दोनो ही धन्यवाद पात्र है। स्व० न्यायाचार्य डा. महेन्द्र कुमार जी ने उसका ३. उत्तराध्ययन-सूत्र एक परिशीलन-लेखक डा. हिन्दी अनुवाद कर ग्रन्थ को और भी सुगम बना दिया सदर्शनलाल जैन, प्रकाशक सोहनलाल, जैनधर्म प्रचारक है। तुलनात्मक टिप्पणियां तो ग्रन्थ की महत्ता को प्रकट समिति गुरु बाजार, अमृतसर । पृष्ठ सख्या साढ़े पाचसा, कर ही रही है । दुःख इस बात का है कि ग्रन्थका सम्पादक मूल्य सजिल्द प्रतिका २५) रुपया । और अनुवादक अल्पायु मे ही स्वर्गवासी हो गया है। उत्तराध्ययन एक सूत्र ग्रन्थ माना जाता है उस पर उनसे समाज को बड़ी प्राशाए थी। उन्होंने जन संस्कृति यह शोध प्रबन्ध लिखा गया है जिस पर लेखक को की जो सेवा की, वह उनकी कीति को अमर बनाएगी। वनारस विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की डिगरी ग्रन्थान्त में दो परिशिष्टो में लघुवत्ति और षडदर्शन मिली है । लेखक ने उत्तराध्ययन का परिचय कराते हुए समुच्चय और प्रवचुणि दे देने से ग्रन्थ की महत्ता वढ उसके अर्थ पर भी विचार किया है शोधकर्ता ने मूलग्रन्थ गई है । ग्रन्थ की प्रस्तावना दल सुखमालवणिया ने लिखी के पद्यो का दोहन करके उसके नवनीत को पाठको के है जिसमें ग्रन्थादि विषयक अच्छा परिचय दिया है, ग्रन्थ सामने रखने का प्रयत्न किया है। ग्रन्थ में पाठ का प्रकाशन सुन्दर हुआ है। इसके लिए भारतीय ज्ञान- प्रकरण है जिनमे विविध विषयों पर विचार किया गया पीठ के संचालक धन्यवाद के पात्र है। ग्रंथ उपयोगी है, है। द्रव्य विचार, संसार, रत्नत्रय, कर्मबन्ध और मुक्ति