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________________ पं० बलभद्र जैन मानव की स्वाधीनता का संघर्ष मनुष्य में स्वतन्त्रता की इच्छा स्वाभाविक है। स्वतन्त्रता उसका सहज अधिकार है। अधिकार कर्तव्य में से निजपते हैं । मनुष्य मे मनुष्यता है, इसलिए वह अपने कर्तव्य का पालन करके इस अधिकार को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है । स्वतन्त्र रहने के अपने अधिकार को जो समझता है वही सही मायनो मे इन्सान है। जो अपने प्रापको परतन्त्र और दूसरे को अपना स्वामी मानता है, वह इन्सान नही हैवान है। परतन्त्र होना अलग बात है और अपने को परतन्त्र मानना अलग बात है । लेकिन जो दूसरों की स्वतन्त्रता छीनता है, तोप रलवार लेकर दल बनाकर दूसरों की आजादी के अधिकार पर डकनी डालता है, वह न इन्सान है, न हैवान । वह तो शैतान है। ऐसे शैतान को सही मार्ग पर लाने का उपाय यह नहीं कि हम उसे पुचकारें। ऐसे शैतानो के लिए एक ही उपाय है कि उसकी शैतानियत को कुचल दिया जाय । जो स्वतन्त्र रहना चाहते है या जो स्वतन्त्र होना चाहते है, उन्हे कोई शैतान-चाहे वह कितना ही बडा क्यों न हो-गुलाम नही बना सकता । मुक्तिरंकान्तिकी तस्य चित्त यस्याचला धृतिः । तस्य नैकान्ति की मुक्तिर्यस्य नास्यचला तिः ।। निश्चय ही वह आजाद होगा, जिसमे अविचल धीरज है। जिसमे यह धीरज नही, वह स्वतन्त्र नहीं हो सकता। मानव की स्वतन्त्रता के संघर्ष का इतिहास उसके त्याग और बलिदान की स्याही और धीरज की कलम से लिखा जाता रहा है । दुनिया मे शैतानों की कभी कमी नही रही। लेकिन ऐसे इन्सानों की भी कमी नहीं रही है, जो दूसरों के स्वतन्त्र रहने के अधिकार को मानते है और उनकी स्वतन्त्रता के लिए जो सहायता करते है। वे मनुष्य नही देवता है। दुनिया ने सच्चे मनुष्य का सम्मान किया है, लेकिन देवता की तो वह पूजा करता पाया है। जैन धर्म तो मनुष्य ही नही, प्राणी मात्र की स्वतन्त्रता का समर्थक है । उसकी मान्यता है कि सब प्राणियो मे परमात्मा बनने की शक्ति है। __ परमात्मा अर्थात् संमार के सभी बन्धनों से मुक्त, दुनिया के माया विकारों से निलिप्त । हम ऐसे स्वतन्त्र परमात्मा का स्मरण करते है; क्योंकि हम भी ऐसे स्वतन्त्र बनना चाहते है । जो दुनिया से मर्वथा स्वतन्त्र होना चाहता है वह दूसरों की पराधीनता देखकर चुप कसे रह सकता है। लोग पूछते हैं जो दूसगे की स्वाधीनता पर बलात्कार करते हैं, जो उस बलात्कार की प्रशंसा करते है और तोप तमंचे दे-देकर ऐसे लोगो की सहायता करते है, वे किस धर्म के अनुयायी है ? मेरा उत्तर है-वे सब एक ही धर्म के अनुयायी है और वह धर्म है शैतान का। यह कैसा आश्चर्य है कि एक परमात्मा को मानने वाले परस्पर मे लडते-झगडते है और शैतान को रहनुमा मानने वाले एक हो जाते है-चाहे उनके देश और वेश, चेहरे और चमड़े जूदे-जुदे क्यों न हों। आज दुनिया मे दो ही तरह के लोग है-एक वे जो परमात्मा मानते है और खुद इन्सान है। दूसरे वे जो शैतान की पूजा करते है और खुद भी शैतान है। दूसरे शब्दो मे कहें तो लड़ाई है इन्सानियत और शैतानियत के बीच मे। जानता हूँ, शंतान की फौज बड़ी है, शैतानियत के तौर तरीके की कोई सीमा नहीं। दूसरी पोर इन्सानियत जिसमें है, ऐसे इन्सान कम हैं-गलियो पर शायद गिने जा सके। लेकिन दुनिया शैतानियत के पाये पर नहीं टिकी, वह टिकी है इन्सानियत की धुरी पर । फिर शैतान अकेला हैं। धर्म अनेक नाम रखकर दुनिया में फैले हुए है। ससार के सभी धर्मों ने इन्सान की सोई हुई इन्सानियत को ही जागृत करने का प्रयत्न किया है। माज इन्सानियत का तकाजा है कि दुनिया के सब इन्सान एक होकर शैतान को चुनौती दें और दूसरों की स्वतन्त्रता को काटने वाले उसके नुकीले दांतों को तोड़ डालें।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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