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________________ त्रिपुरी की कलचुरि-कालीन जैन प्रतिमाए ४१ मालाए पहने हुए हैं। मालाएँ दोनों स्तनों पर से होती प्रतिमा को वायी और के देव के दाये हाथ मे चवर हुई नीचे लटक रही है । भुजानो मे भुजबन्ध अकित है। है । वायां हाथ नीचे की ओर झुका हुआ है। हाथ के हाथों में ४-४, ६.६ कंगन और कंगनों के मध्य चूडियों अगूठे तर्जनी तथा कनिष्ठा में मुद्रिकाए है। अन्य अल करण हैं । दोनों हाथों में अलकृत माला के दोनों छोर दिखाए प्रथम देव के समान है। स्त्री प्राकृति भी दायी भोर गए हैं। अकित स्त्री के समान है। ये स्त्री पुरुप गधर्व ज्ञात होते दोनो देव भी गले में दो दो मालाएं पहने हुए है। जा मानो नाचने के लिए लिए तैयार है। इनमे एक माला गले से नीचे कमर तक लटकती हुई अनिमा दिख ई गयी है । भुजानों मे भुजबन्ध भी है। भुजबन्धी प्रतिमा के शिर पर तीन छत्र है जो क्रमश. सामने की प्राकृति वर्तमान में भगवान रामादि के चित्रों में दर्शाये की पोर निकले हुए हैं। प्रतिमा के पीछे अलंकृत भा. जाने वाले भुजबधो के समान है। हाथों मे एक देव एक मण्डल है । बाल धुंघराले हैं । कान कधों से जुड़े हुए है। हाथ मे एक और दूसरे मे दो कगन पहने हुए है । दूसरे श्री वत्सचिन्ह नही है किन्तु चिन्हाङ्कित स्थल से ऐसा देव के दोनों हाथों मे दो-दो कगन है। दोनों देव दोनों अनुमान लगता है कि श्रीवत्स चिन्ह अवश्य ही यथास्थान हाथों से भालाप्रो के छोर सम्हाले हुए है। कटि मे भी अंकित रहा है। प्रतिमा नासाग्रदृष्टि पद्मासन मुद्रा में है । कमरपट्टे जैसी प्राकृति है। पैरों में पायल और अंगु प्रतिमा की प्रसन पर अलंकरणों के मध्य एक कमल के लियों में (हाथ की) मुद्रिकाए पहने कुछ दिखाई देते है। ' फूल जैसी आकृति है। जिससे प्रतिमा भ. पद्मप्रभु की इन दोनों स्त्री पुरुष मूर्तियों के मध्य सामने की ओर ज्ञात होती है। पूजारी श्री हल्कलाल से ज्ञात हा कि मूख किये हुए बालिकाओं की प्राकृतियाँ अकित है। यह प्रासन इस प्रतिमा का नहीं है। प्रतिमा का प्रासन उरोज अंकन से वे उन्हीं देवों की बालिकाएं प्रतीत होती तो मिला ही नहीं था। प्रतिमा महावीर भगवान की है। है। बालिकाओं के गले मे दो-दो मालाएं एक माला दोनों प्रासन को देखने से वर्तमान प्रासन मल प्रासन प्रतीत उरोजों से होकर नीचे लटक रही है। हाथों में मालाग्रो के होता है क्योंकि प्रासन का अलग रहना पत्थर के जोड से दोनों छोर हैं। ज्ञात होता है जबकि यहां कोई जोड दिखायी नहीं देता है। उनके नीचे दोनों ओर दो देव अपनी पत्नियो सहित प्रासन पर कमल के फूल की तीन प्राकृतियाँ हैं । दो अकित हैं । देवों के शिरों पर बारीक छैनी से खुदे हए कमल दोनों ओर एक मध्य में अकित है। अतः प्रतिमा किरीट हैं । कानों में कुण्डल, गले में हार, तथा पेट पर भ. पद्म प्रभु की ही ज्ञात होती है। वालों तथा गले लटकता हुमा तीन लड़ी की प्राकृति का कोई अलंकरण में अकित तीन रेखामों से कुण्डलपुर के महावीर याद है। हाथों में एक एक कंगन है। प्रतिमा की दायी प्रोर पाते है। मेरी समझ से महाकोशल में ऐसी बहुत कम वाले देव के वायें हाथ में एक विकसित पुष्प है तथा दाये मूर्तिर्या उपलब्ध होंगी जिनमें कला की सूक्ष्म भावना हाथ में चवर है। हाथ के अंगूठे मे मुद्रिका है। भजाम्रो एवं बारीक छैनी का ऐसा आभास दिखाई देता हो। में भुजबंध, कटि कमरबन्द तथा पैरों में पायल हैं। देवी पद्मावती: __देव की कमर से सटी हुई एक स्त्री मूर्ति प्रकित है। इसी मन्दिर मे ऐसी प्रतिमा है जो लाल पत्थर से इस मूर्ति में अन्य सभी अल कारों के साथ कमरपट्टा भी (संगमर्मर) निमित है। प्रतिमा पालथी मारकर बैठी है । है। जो दो दो लड़ियों से निर्मित है। दायें हाथ में टेहनी दायां पैर सामने की ओर है। हाथ चार है। ऊपर के से लटकती हुई एक मनीवेग भी अंकित है। कमर से दाएं हाथ में एक प्रकूश जैसी प्राकृति है। बायें हाथ मे दांगी जांघ पर एक सूत्र लटकता हुआ दिखाया गया है कोई फूल धारण किए हुए है। नीचे के दायें हाथ मे जो संभवतः चाबी का द्योतक है। हाथों में भाला के दोनों माला और वायें हाथ मे गोल लम्बी प्राकृति की कोई छोर हैं। कपड़े भी दिखाई देते है। (शेष टाइटल के तीसरे पेज पर)
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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