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कस्तूरचन्द्र 'सुमन' एम. ए.
त्रिपुरी की कलचुरि-कालीन जैन प्रतिमाएँ
कलचुरि कालीन जात प्रतिमानों में एक जैन प्रतिमा एक जन प्रतिमा हनुमान ताल के दि० जैन मन्दिर मे नागपुर सग्रहालय में संग्रहीत बताई गई है। प्रतिमा काले जबलपुर में भी विराजमान रहने का उल्लेख मिलता है।' पाषाण से निर्मित मस्तक खण्डित अवस्था में है। चौकी वैसे तो मन्दिर के अनेक बार दर्शन किए परन्तु इस बार पर संस्कृत भाषा में नागरी लिपि द्वारा छोटा सा एक उक्त प्रतिमा का ही मैने बारीकी से अवलोकन किया तो पक्ति का अभिलेख भी अकित मिला है जिसमे बताया प्रतिमा के दर्शन कर हर्ष विभोर हो गया। कलाकृति गया है कि माथुर अन्वय से साधु घोलु नामक किन्ही देखते ही बनती है। व्यक्ति के पुत्र देवचन्द्र द्वारा संवत् ६०० (कलचुरि संवत्) यह प्रतिमा जबलपुर के दि.जैन पार्श्वनाथ बा मन्दिर मे उक्त प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई गई थी। प्रतिमा पर हनुमान ताल के मन्दिर क्रमांक ४ में विराजमान है । कोई लाक्षण नही है जिससे प्रतिमा किस तीर्थकर की है, प्रतिमा करीब ५ फुट ऊँचे और ३-३॥ फुट चोड़ पत्थर यह ज्ञात नहीं होता है। अभिलेख मे उल्लिखित संवत् पर प्रकित है। वर्ण कुछ लाल सा है। शिरोपरि तीन को लेख की लिपि के आधार पर कलचुरि संवत् बताया छत्र बहत ही बारीक कलाकृति से अलकृत है। छत्र के गया है जिससे प्रतिमा ११४६ ईस्वी मे निर्मित हुई प्रतीत दोनो प्रोर दो हाथी खडे है जिनकी सड छत्र का प्राधार होती है। अंकित लेख निम्न प्रकार है :
बनी हुई है। गजों के पागे का एक पैर कुछ मुडा हुआ माथुरान्वय साधु धौलु सुत देवचन्द्र संवत् ६००। है। दोनों गजों की पीठ पर घोड़ों की पीठ पर कसी . माथुरान्वय से सम्बन्धित इसी संवत् की एक जैन जाने बाली जीन जैसी प्राकृति है। प्राधार एक विकसित प्रतिमा का और भी उल्लेख मिलता है जो मथुरा निवासी पृष्प है। किन्हीं जसदेव और जसधवल के द्वारा प्रतिष्ठित कराई इस पृष्प के नीचे प्रतिमा के दोनों ओर दो देव गई थी।' प्रतिष्ठा कराने वाले श्रावकों के नामों से ज्ञात अंकित है जो बारीक खुदाई से अलंकृत किरीट धारण होता है कि दोनों प्रतिमाएं थी तथा उनकी प्रतिष्ठा भी किए हए है। दोनों देव उडते हुए दिखाये गये हैं। दोनों अलग-अलग हुई अलग-अलग थी। प्रतिमा किस तीर्थकर के हाथों मे मालायें हैं। दोनों देवो के साथ स्त्री मूर्तियाँ की है, यह नहीं बताया गया है।
भी अकित हैं जो सम्भवतः उनकी स्त्रियाँ है। स्त्रियो के त्रिपुरी से उपलब्ध तृतीय जैन प्रतिमा नागपुर में मख देवों के विपरीत दिशा में है। कानों में वर्तुलाकार संग्रहीत है (संग्रहालय कृम ३३) जो १०वी शती की कुण्डल है। गोल जड़ा बँधा हुमा है। जूड़े के मध्य दो बताई गयी है। प्रतिमा को महावीर की प्रतिमा कहा मालाएं गुथी हुई हैं जो गोन गुरियों से निर्मित दिखाई गवा है।'
देती है। कघी बीच मे मांग निकाल कर की गई है।
मांग की दोनों प्रोर बालों को उठाया गया है जिससे १. श्री बालचन्द्र जैन, उपसंचालक संग्रहालय रायपुर,
ऐसा प्रतीत होता है मानों बालों में सामने की पोर फग्गे रेवा पत्रिका : सं. २०२३ प्रक २, पृ. २७
बनाए गए हों । वक्षस्थल पर खजुराहो की स्त्री मूर्तियों २. डा. मोरेश्वर दीक्षित, मध्य प्रदेश के पुरातत्त्व की
जैसा अंकन हैं। गले में एक छोटी और एक बड़ी दो रूपरेखा, सागर विद्यापीठ ३. मध्यवर्ती संग्रहालय नागपूर स्मरणिका ई०१६६४ ४. पं. परमानन्द शास्त्री, अनेकान्त : वर्ष १९, कि. १-२
पृ० ३६