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________________ डा० गंगाराम गर्ग अज्ञात जैन कवि और उनको रचनाएँ जैन पुरातत्व, संस्कृति, इतिहास और साहित्य को खोज के प्रसंग मे विविध क्षेत्रो की ओर विद्वानो का ध्यान आकृष्ट हो जाने पर भी कई क्षेत्र अभी तक अछूते भी पड़े है। पूर्वी राजस्थान के टोडारायासिंह, चाकसू, निवाई, टोंक, झिलाय, सवाई माधोपुर प्रादि नगर दिगम्बर जैन सस्कृति के प्राचीन केन्द्र है। इन केन्द्रो मे अत्यन्त प्राचीन, व कलात्मक नसियानों और प्रतिमानों के अतिरिक्त समृद्ध शास्त्र भण्डार भी है। इन शास्त्र भण्डारों में संस्कृत, अपभ्रश व हिन्दी की महत्वपूर्ण और अज्ञात कृतियाँ भी उपलब्ध हो सकती है। यहां पर उक्त शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध हिन्दी के कुछ प्रज्ञात कवियों और उनकी रचनाओं का परिचय दिया जा रहा है : १ खड़गसेन : विशति तीर्थकर पूजा' की रचना की। यह रचना टोडाये मागरा के रहने वाले थे। इनके पिता ठाकुरसी रायसिंह के प्राचीन जैनमन्दिर रेणजी का मन्दिर में उप रायासह के प्राचान जन पौर पितामह लूनराज थे । खड़गसेन के पूर्वजों का मूल ल स्थान बागड़ प्रदेश का नारनोल शहर था। प्रागरा ३ तीकम : निवासी चतुरभोज ने खड़गसेन की धन-धान्य से बडी यह कालस गाँव के रहने वाले थे। वहां भोजराज सहायता की । संवत् १६८५ के बाद कवि ज्ञान-वृद्धि की खगारोत का राज्य था। सुखमल शाह 'हुजदार' ने तीकम प्रोर अधिक प्राकृष्ट हुए। इनकी ज्ञान गोष्ठी के साथी को कालष गाँव मे बसाया । कवि अपने गाँव में प्रतिदिन जनजीवन सघो, अनूपराय, दामोदर, माधोदास, हीरानद, श्रावकों के साथ 'प्रतिमा चौबीसो' के समक्ष ज्ञान-चर्वा त्रिलोकचद, मोहनदास और प्रतापमल थे। ये सभी करते थे। इन्होने सवत् १७१२ में 'चतुर्दशी कथा' लिखी। चैत्यालय में बैठकर पूजा करते थे और शास्त्र श्रवण करते थे । खड़गसेन की एकमात्र रचना 'त्रिलोक सार' । ३५५ दोहे-चौपाइयो की यह प्रबन्ध रचना तेरहपंथी रेणजी का मन्दिर, टोड़ा राय सिंह में विद्यमान है। मन्दिर टोंक के एक गटके मे सकलित है। प्रस्तुत रचना त्रिलोक सार मे २००० से अधिक दोहे और चौपाइयां में चपापुरी के राजा हरिनाम के गुणभद्राचार्य मुनि द्वारा हैं। इस रचना मे कवि ने अधः मध्य और ऊर्ध्व लोक के शील की महत्ता समझाई गई है। सभी जैन घामो का विवरण दिया है :-कवि ने अपने ग्रन्थान्त में कवि ने चतुर्दशी के व्रत की महत्ता प्रति. ग्रन्थ की महत्ता इन शब्दों में प्रकट की है --- पादित की हैदर्पन में मुख देखिए, या मैं तीनूं लोक । भाव सहित यह व्रत घरयो होइ मुक्ति को साज ।३।। • यह हिदें की पारसी, वीस लोका लोक ॥ ज्येष्ठ भ्रात मेरे कवि, जीवनराम सुजानि । २ सेवाराम : प्रभु की स्तुति के पद रचे, महाभक्ति वर प्रानि । यह प्रसिद्ध जैन कवि बखतराम शाह के कनिष्ठ ४ लालचंद 'विनोदी' पुत्र थे। इन्होने अपने बड़े भाई जीवनराम के भक्तिपरक 'लालचंद विनोदी' की दो रचनाएं राजुल पच्चीसी' पदों की चर्चा की है। किन्तु अभी तक जीवनराम के पद और 'चौवीसी' पुरानी टोंक और चाकसू के जैन मन्दिरों अज्ञात ही हैं। सेवाराम का साधना-स्थल जयपुर का में मिली है। काव्यत्व की दृष्टि से 'राजुल पच्चीसी' लश्करी मन्दिर था । वहाँ भट्टारक सुखेन्द्रकीति भी उत्कृष्ट रचना है । इसमे कवि ने सरस्वती और मुनियो विराजते थे। सेवाराम ने संवत् १८२४ मे 'चतु- को प्रणाम करते हुए नेमिनाथ जी के विरक्त होने की
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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