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सेन परम्परा के कुछ प्रज्ञात साप
अतएव यह पूर्व-मध्य कालीन कृति कही जा सकती है। (२) बा श्री छत्रसेन देवपादरा.(?) तस्य धर्मम्राता इसके स्तम्भों के अतिरिक्त उत्तरंग का भाग भी प्राचीन पंडित श्री अम्बरसेन तस्य भ्राता श्री uuuuu सर्व है। इसमें शिलालेख छ बातों पर अकित है। पहला लेख संघसेनाम्नाय प्रणमनि नित्य ....... वि० सं० १२१२ का है। इसमें कई साधुप्रो के नाम है। ३. णमेघर : पउत्र (पुत्रः) खेमघर साचदेव घोलण इसमे चन्द्रप्रभ चैत्यालय में गोष्ठियो द्वारा कुछ निर्माण
श्रीधर । समस्त गोष्ठि कारापित । कार्य का उल्लेख है। इसमे भट्टारक सागरसेन का नाम है। उनके शिष्य मंडलाचार्य ब्रह्मसेन का नाम है। इसके
लेख स०२ बाद छत्रसेन प्रादि साधुओं का उल्लेख है। छत्रसेन नामक
१. ॐ साश्चर्य प्रतिबिंबता (बिम्बिता) शुभतरा जन्मां
१. एक साधु का उल्लेख अथूणा के लेख में भी है। किन्तु
तरश्रीक्षणा। भास्वादोनखदर्पणेषु नितरां तारा व दोनों का क्या सम्बन्ध है, कहा नही जा सकता। इन्हे
तारा दशा । दिक्ष्वन्ता (...) तथानता: क्रमनखो... उक्त लेख में "माथुरान्वयो" कहा गया है। दूसरे लेख मे २. द्यच्चवंद्र रूपाततरा । यस्य ध्यानमितो स भवतः तिथि अंकित नहीं है। इसमे अमृतसेन, सयमसेन, ब्रह्मसेन,
श्रीनाभिभूतः प्रभुः ॥१॥ रेजे यस्य शरीरदीप्तिरनघा योगसेन, निष्कलंक और अकलक नामक साघुप्रो के नाम सतप्त हेमोज्व (ज्ज्व) ला । मूर्द्धस्थेद्धजटा कलाहै। इसमे ५ श्लोक हैं और अन्त मे 'पडित निष्कलक ३. प विलसद्ध मद्धि रेखाकिता। फारातितति प्रभोः सेनस्य कृतिरियम्" पद अकित है।
प्रदहतो ध्यानानलाच्चियंथा। देया केवल सपदं सेन परम्परा की पावली में इनका नाम अकित जिनवरो सोमेपि मौनश्चरी ।।२।। अमृतनही है। इसी तरह अन्य अनेक प्राचार्य और विद्वानों का ४. सेन बुधो जनि संयतो, यतिसमाज जनस्तुतपयुगः । उल्लेख यत्र तत्र मिलता है। इस तरह की अप्रकाशित अमृतसूरि व चः सुतपोनिधिः सकल शास्त्र पयोसामग्री का सकलन करना अत्यन्त आवश्यक है । इसके निधिपारगः ।।३।। वादी संयम सेन सुबिना इतिहास अधूरा ही रहेगा।
५. रि रजनि रजनि क्षेत्राधिपेयः सुधीः । स्याद्वादामृत इन सब साधुप्रो को सेन परम्परा का कहा गया है। वारिधिगुणनिधिः श्री ब्रह्मसेनस्ततः । श्री संघालेखो का मूल पाठ इस प्रकार है :
शी(?)त...गुरु गुर्णा vv ण योगी ग्रणी ॥ रो(रो)लेख स० १
द्राराति तुरुष्क वंदित पदः १. ॥ई। स्वस्ति श्री संवत् १२१२ वर्षे मार्गसिर (शीर्ष) ६. श्री योगसेनो गुणी ॥४॥ निष्कलंकाकलंकाख्यो
वदि ११ देव श्री चन्द्रप्रभ चैत्यालये आचार्य श्री सेनांती विदुषां विदो।...पुष्कर जातीयौ सोदयों भट्टारक. सागरसेन(:) तस्य सि(शि)ष्यमय मण्डला- विश्रुतौ भुवि ।।५।। पडित निष्कलक सेनस्य कृति चार्यधुर्य ब्रह्मसेन
रियम्......
काशित
बड़ा बनने का उपाय "क्या तू महान् बनना चाहता है । यदि हो तो तू अपनी आशा-लताओं पर नियंत्रण रख । उन्हें बे लगाम अश्व के समान आगे न बढ़ने दे। मानव की महत्ता इच्छाओं के दमन करने में हैं, गुलाम बनने में नहीं। एक दिन आयेगा जब तेरो इच्छाएँ ही तेरी मृत्यु का कारण बनेंगी।"