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उत्तर पवाल की राजधानी पहिल्डन
२६७ कलाकार पाया बह विनीत वेश में राजा के सामने उप. की। प्रतः उसका नाम पहिच्छत्र लोक में प्रसिटमा। स्थित हुमा । राजा ने बड़े कोष में उससे कहा । कलाकार उत्तरपुराण में भी पाश्र्वनाथ के उपसर्ग निवारण देखो, हमने अनेकों कलाकारों को असीम धन दिया, का उल्लेख है। पौर' उपसर्ग दूर होते ही कैवलज्ञानकिन्तु वे मुखं थे इसीलिए मूर्ति का निर्माण नहीं कर प्राप्ति का वर्णन किया गया है। सके। तुम अद्भुत चित्रकार के रूप में पाए हो, प्रतः दक्षिणी पंचाल की राजधानी काम्पिल्य में दशवां इस प्रतिमा को शीघ्र तम्यार करो । इस उपलक्ष पक्रवर्ती हरिषेण हुमा और बारहवा पक्रवर्ती ब्रह्मदत्त । मे मैं तुम्हें बहुत धन दूंगा । यदि तुम कला में पारंगत रामायण में भी पांचाल के राजा ब्रह्मदत्त की पर्चा न हो तो इसी समय यहां से चले जाम्रो । कलाकार ने मिलती है। कहा कि पाप प्रब अधिक न कहिए । मैं प्रतिमा तय्यार
महाभारत युद्ध के बाद उत्तर पांचाल तथा पहिकरता है। राजा ने कलाकार को ताम्बल देकर विदा च्छत्र के सम्बन्ध में कुछ विशेष ज्ञात नहीं होता। कहा किया । कलाकार घर चला गया। वहां उसने बड़ी भक्ति ।
र चला गया । वहा उसने बड़ा भावत जाता है कि पंचाल के उत्तर पश्चिम मे नाग जाति का से जिनेन्द्र भगवान की पूजा की, और वहां स्थित प्राचा- प्राबल्य हा पोर इस जाति के नेता द्वारा परीक्षित की रनिष्ठ मुनि का स्तवन किया । और गुरू के समक्ष बैठकर
मत्यु हुई । कुरु पांचाल जनपद पर उसका क्षणिक प्रभुत्व भक्ति से उनकी विनय करने लगा। उसने मुनिराज से रही। परन्तु जन्मेजय ने उन्हें बड़ी संख्या में विन निवेदन किया, कि हे मुनि नाथ ! जब तक भगवान किया। पाश्र्वनाथ की पूजा नही हो जाती तब तक के लिए
का पूजा नहा हा जाता तब तक के लिए सोलह जनपदो मे पचाल का नाम पाया है। इनमें मुझे मद्य, मास, मधु, पंचोदुम्बर फल, दूध, दही घी, पंचाल जनपद के दो भाग बतलाये गए हैं । उत्तर परि मौर स्त्री सेवन के त्याग का नियम प्रदान कीजिए। दक्षिण । उत्तर पांचाल की राजधानी पहिच्छत्र पोर कलाकार की इच्छानुसार मुनि ने कलाकार को व्रत दिए दक्षिण की राजधानी काम्पिल्य थी। इन जनपदों को और उनका विधि-विधान भी बतलाया । कलाकार अपने स्थिति बहत काल तक एक सी न रह सकी। इनमें से घर लौट प्राया। पौर सर्वलक्षण-सम्पन्न, सर्वाङ्ग सुन्दर
१. इहेव जंवदीवे भारहेवासे मज्झिमखडे कुरु जगल पार्श्वनाथ की प्रतिमा का निर्माण किया । जब राजा
जणवए सखावई णाम नगरी रिद्धसमिद्धा होत्था। वसुपाल ने उस नव निर्मित प्रतिमा के दर्शन किए तब
तत्थ भयव पाससामी छउमत्थविहारेण विहरतो उसका शरीर हर्ष से भर गया। उसने उस कलाकार को
काम्रोसग्गे ठिपो । पूचनिबद्धवरेण कमठासुरेण विपुल धन दिया।
प्रविच्छिन्नधारापवाऐहि वरिसंतो प्रबुहेरो विउम्विविविध तीर्थकल्प मे अहिच्छत्र नगर का प्राचीन मो। तेण सयले महिमडले एगवण्णवीभूए पाकंठनाम-'सख्यावती' लिखा है। जो कुरुजांगल प्रदेश की मग्गंग भगवंतं मोहिणा माभोएऊण पचग्गि साहगजधानी थी। उसमे लिखा है कि जब भगवान पार्श्व- णुज्जय कमढमुणि पाणाविभकट्टखोडीनंतरडज्झत नाथ उक्त सख्यावती नगरी मे ठहरे हुए थे। तब कमठ
सप्पभवउवयारं सुमरतेण घरणिदेण नागराएण नामक दानव ने उनके ऊपर वर्षा की झडी लगा दी। अग्गमहिसीहि सह मागंतूण मणिरयण चिचइमं जब नागराज घरणेन्द्र को यह बात मालूम हुई तब वह सहस्सफणा मडलछत्तं सामिणी उरिकरेऊण हिट्ठ सपत्नीक उस स्थान पर पाया, जहां पाश्वनाथ ध्यानस्थ
कंडलीकय भोगेण संगिहिम सो उपसग्गे निवारियो। थे। उसने भगवान के शरीर को चारों पोर से परिवे- तमो परंतीये णयरीए अहिच्छत्त ति नाम संजायं । ष्टित कर लिया। और फणो द्वारा उनके शिर की रक्षा
-विविधतीर्थकल्प पृ० १४ २. देखो, उत्तरपुराण ७३।१३६-१४४ श्लोक, पृ.
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