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अनेकान्त
ने दसरों को दबाना या उन पर अधिकार करने का रूप में रहा ज्ञात होता है। इस काल को अनेक कलाप्रयत्न करना शुरू कर दिया । महात्मा बुद्ध के समय कृतियों वहाँ मिली है। तक मगध, कोशल, वत्स और प्रवन्ति। ये चार राज्य कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में अहिच्छत्रा के मुक्तामों उत्तर भारत में प्रवशिष्ट थे। शेष की स्थिति गौण हो का उल्लेख किया है। इससे ज्ञात होता है कि सम्भवतः गई। बुद्ध की मृत्यु के एक सी वर्ष बाद शायद पंचाल उस समय पहिच्छत्र नगर मुक्ता व्यवसाय के लिए प्रसिद्ध स्वतन्त्र रहा। चौथी शताब्दी ई० पूर्व मे उसे महापप- हो गया था। नन्द ने मगध साम्राज्य में मिला लिया। नन्दों के बाद अशोक के बाद मौर्य साम्राज्य का ह्रास प्रारम्भ पंचाल क्रमशः मौर्य और शुंग शासन के अन्तर्गत रहा। हो गया। विविध प्रान्तों में शासक स्वतन्त्र रहने लगे। शंग कालीन जिन शासकों के सिक्के इस प्रदेश में बड़ी उत्तर भारत में राजनैतिक अस्थिरता मुखरित हो उठी। संख्या में मिले हैं। उनके नाम अग्नि मित्र, भानु मित्र, और सन् १८५ ई० पूर्व अन्तिम मौर्य शासक वृहद्रथ को भद्रघोष, जेठ मित्र, भूमि मित्र मादि मिलते है। मार कर पुष्पमित्र ने शुंग साम्राज्य की स्थापना की।
ईस्वी सन के प्रारम्भ में उत्तर पांचाल का राजा अन्य प्रदेशो की तरह पांचाल भी स्वतन्त्र हो गया। यह पालादसेन था, जिसके समय के दो लेख कोशाम्बी के पास स्वतत्रता लगभग २००ई० पूर्व प्राप्त हुई। उस समय पभोसा से मिले है। एक लेख में प्राषाढसेन को राजा से लेकर ईसा की तीसरी शताब्दी के मध्य तक पाचाल वहस्पति मित्र का मामा बताया गया है। मित्रवशी मे कई राजवंशों ने शासन किया। इन राजामों की राजशासकों के बाद अच्युत नाम के राजा का पता चलता धानी अहिच्छत्र ही रही । पहिच्छत्र मे मोर उसके पासहै। इसके सिक्के अहिच्छत्र तथा रुहेलखण्ड के अन्य कई पास जो सिक्के मिले है। उनसे ज्ञात होता है कि ई. स्थानो से प्राप्त हुए है। सम्भवतः यह वीर राजा था। पूर्व २०० के लगभग ५० ईस्वी पूर्व तक अहिच्छत्र पर जिसे सम्राट् समुद्रगुप्त ने परास्त कर पचाल पर अपना पाल भोर सेन नाम के राजामो ने शासन किया है। अधिकार कर लिया था और तब से पचाल गुप्त मगध शुगवशी शासको के साथ इनका क्या सम्बन्ध था यह साम्राज्य के अन्तर्गत रहा जान पड़ता है। क्योकि कुछ ज्ञात नही हुमा । गुप्त नाम वाले रुद्र गुप्त, जय गुप्त अहिच्छत्र के उत्खनन मे एक मुहर मिली है जो गुप्त और दास गप्त । तीन शासको के सिक्के मिले है। पाल कालीन है, जिससे स्पष्ट है कि महिच्छत्र गुप्त साम्राज्य वंशी राजानो मे बगपाल का नामोल्लेख मिलता है। की भुक्ति बना' । गुप्त काल मे अहिच्छत्र बड़े नगर के इनका समय ईस्वी पूर्व दूसरी सताब्दी का अन्तिम भाग १. अधिछत्रा या राबो शोनकायन पुत्रस्य वंगपालस्य,
माना जाता है। बगपाल के उत्तराधिकारी विश्वपाल पुत्रस्य राज्ञो तेवणी पुत्रस्य भागवतस्य पुत्रेण,
यज्ञपाल हुए । इनके नाम सिक्कों से ही ज्ञात हो सके हैं। वहिदरी पुत्रेण प्राषाढसेनेन कारित ।"
पहिच्छत्र मे अभिलिखित कुशान कालीन जो बुद्ध २. दसरे लेख में प्राषाढसेन को राजा वृहस्पति मित्र प्रतिमा मिली है, वह मथुरा के लाल बलुए पत्थर की है। का मामा कहा गया है।
उसकी निर्माण शैली से स्पष्ट है कि वह मथुरा से एपि ग्राफिया इण्डिक। जिल्द २०२४०.४१
अहिच्छत्र लाई गई होगी । कुषाण काल मे मथुग मूर्ति(क) राज्ञो गोपालीपुत्रस, बहसति मित्रस मातुलेन निर्माण कला का बड़ा केन्द्र हो गया था। कुशाण काल
गोपाली या वहिदरीपुत्रन [प्रासा] आसाढ़सेनेन लेन में निर्मित मूर्तियाँ पश्चिमोत्ता मे तक्ष शिला से लेकर कारित [उदाकस] दसमे सवछरे कश्शयोमानं पूर्व मे सारनाथ तक और उत्तर में श्रावस्ती से लेकर
अरह [त] व। -जैन लेख स० अ० २ १० १३ दक्षिण में सांची तक भेजी जाती थी। उस काल की ३. 'श्रीअहिच्छत्रा भुक्तो कुमारामात्यकारणस्य' निमित मूर्तिया सुन्दर एव कलापूर्ण होती थी। उन्हें देखते देखो अहिच्छत्रा-कृष्णदत्त बाजपेयी संग्रहाध्यक्ष
मथुरा पृ० ११ ४.दाखए अर्थशास्त्र का शामशास्त्री सस्करण ।