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________________ आगरा से जैनों का सम्बन्ध और प्राचीन जैन मन्दिर बाबू ताराचन्द रपरिया [इस लेख के लेखक बाबू ताराचन्द जी रपरिया जैन समाज के पुराने कार्य कर्ता है। अच्छे विद्वान और समाज सेवी है। शौरीपुर तीर्थक्षेत्र के कई वर्षों तक मंत्री रहे है । प्रागरा एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है । मुगल साम्राज्य के समय वहां अनेक प्रतिष्ठित जैनियों का निवास था। अनेक प्रसिद्ध विद्वान कवि भी रहते थे। वहा की प्रध्यात्म गोष्ठी प्रसिद्ध थी। उस गोष्ठी के प्रभाव से अनेक व्यक्ति जैनधर्म के घारक हुए थे । बनारसीदास, भगौतीदास, रूपचन्द, कुंवरपाल, भूधरदास, द्यानतराय, जगतराय, मानसिंह, विहारीदास, हीरानन्द, जगजीवन, बुलाकीदास, शालिवाहन, नथमल विलाला प्रादि कवियों की रचनाएं प्रागरा में ही रची गई हैं। पं० नयविलास ने ज्ञानार्णव की संस्कृत टीका साहू टोडर के पुत्र ऋषभदास की प्रेरणा से बनायी थी। प० दौलतराम कासलीवाल ने स. १७७७ मे पुण्यास्रव कथा कोष का पद्यानुवाद बनाया था। समयसार कलशा टीका के कर्ता पांडे राजमल को भी आगरा में अकबर के समय रहने का अवसर मिला था। कविवर भगवतीदास ने स० १६५१ मे अर्गलपुर जिनवन्दना बनाई थी, जिसमे अकबर कालीन दिगम्बर श्वेताम्बर मंदिरो का उल्लेख किया है प० नन्दलाल ने स० १६०४ मे योगसार को टीका बनाई है । इन सब उल्लेखो से प्रागरे की महत्ता का सहज ही भान हो जाता है। अतः आगरे को जैन समाज का कर्तव्य है कि वह अागरा के जैन मन्दिरो के मूर्ति लेख और आगरा के शास्त्र भागे के हस्तलिखित ग्रन्थो की सूची का निर्माण कराये, जैन साहित्य और इतिहास के लिए इसकी महती आवश्यकता है, प्राशा है आगरा समाज इस प्रोर अपना ध्यान देगी। -सम्पादक] कृष्ण साहित्य में वृज के चौरासी वनो का उल्लेख उत्तर पश्चिम में है और प्रागग से गौरीपुर ४४ मोल मिलता है जिनमे एक अग्रवन भी है। वर्तमान आगरा की दक्षिण पूर्व में जमूना के किनारे स्थित है । मथुरा से स्थिति भी उसी अग्रवन में हैं (सम्भव है नगर बसने के शौरपर तक का क्षेत्र यादवो की क्रीडास्थल था प्रार उपरान्त अग्रलपुर-अग्रसेनपुर-अगलपुर या अग्रपूर- श्रीकृष्ण भक्त वैष्णवों तथा श्री नेमिनाथ भक्त जैनों अर्गलपुर प्रादि नाम पर हो) यह वन यमुना नदी के के लिए पूज्य पवित्र एवं तीर्थ तुल्य थी। प्रागरा, मथुरा किनार, यमुना के कछार में फैले हए थे। वन्दावन की व शौरीपुर के मध्य मार्ग पर स्थित होने से प्रागरे मे जैनो भौति अग्रवन भी जमुना के तीर पर बसा था । शौरीपुर का निवास निविवाद था और उनके मन्दिर प्रादि का या शूरसेन नगर यादवो की राजधानी थी। श्री कृष्ण के भी प्राचीन काल से होना इतिहास से सिद्ध होता है। पिता वसूदेव व ताऊ समुद्र विजय प्रादि दशार्णव व पिता- जैन साहित्य मे "निर्वाणकाण्ड अतिशय क्षेत्र मह अन्धक विष्णि प्रादि यादवो का निवास स्थान शौरी. काण्ड" नामक निर्वाण भक्ति प्राकृत भाषा में बहुत पुरानी घर था । प्रसिद्ध योद्धा कर्ण और जैनो के २२वे तीर्थ दुर एव प्रामाणिक स्तोत्र है । दश भक्तियों में निर्वाण भक्ति श्री नेमिनाथ का जन्म शौरीपूर मे हया था। वे श्री कृष्ण भी एक है जिसका नित्य पाठ करना, जैन साधु मौर के चचेरे भाई थे। उनके पिता का नाम समूद्र विजय था। श्रावकों के लिए प्रावश्यक होता है। इस में "प्रगल श्री कृष्णजी का जन्म मथुरा में अपनी ननसाल देव" नाम से एक प्रतिमा को नमस्कार किया गया है। (ननिहाल) में हुआ था । मथुरा से प्रागरा ३६ मील प्राकृत 'अग्गल, का संस्कृत रूप 'अर्गल, होता है । जैसा
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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