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मागरा से जैनों का सम्बन्ध और प्राचीन जैन मन्दिर
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कि शिलालेखो से जाना जाता है, प्रागरा का एक अर्थात् मुसलमान काल से पूर्व के प्राचीन अवशेष नाम अर्गल पुर भी है । मत: मालम पड़ता है कि मागरा मे बहुत थोड़े है। मागरा किले के जलद्वार के प्रागरा मे प्राचीन काल में कोई प्रतिशय क्षेत्र था जिस बाहर, किले और नदी (जमुन) के बीच कई काले पाषाण को पूजनीय प्रतिमा अग्गल देव के नाम से उस समय के स्तम्भ खदाई में पाये गये थे और एक बहुत भारी प्रख्यात थो । निर्वाण भक्ति वि. स. ४६ मे होने वाले विशाल काले पाषाण की कलापूर्ण मूर्ति जो जनो के २० श्री १०८ प्राचार्य कुन्द कुन्द की रचना मानी जाती है। वे तीर्थङ्कर श्री मुनिसुव्रत नाथ की थी, खुदाई मे मिली अतः अग्गल देव का अस्तित्व वि. की प्रथम शताब्दी से थी इस पर कुटिला अक्षरो मे स० १०६३ खुदा था। पूर्व होना चाहिए, क्योकि श्री कुन्द कुन्द के समय में वह निःसन्देह स्तम्भ प्राचीन जैन मन्दिर के द्वार के थे जो नदी मुख्य अतिशय क्षेत्रो में गिना जाता था, प्रसिद्धि प्राप्ति मे की ओर था और जो शायद जब किला बनाया गया, स्थापना से कम से कम २००-२५० वर्ष का समय गिरा दिया गया हो।" अवश्य लगा होगा। अतः अग्गल देव की स्थापना ई० पू० कनिंघम ने मवत् को विक्रम संवत मान कर दूसरी शताब्दी मे हुई होगी।
१००६ ई० सन् माना है। परन्तु कुटिला अक्षर और उस इस समय अग्गल देव की प्रतिमा व मदिर का कोई समय के मवतों को देने की प्रथा को ध्यान में रखते हए चिन्ह प्रवशिष्ट नही है और इतने लम्बे काल में यह वीर संवत भी हो सकता है। इससे जान पड़ता मुस्लिम व अन्य लोगों द्वारा जैनों पर होने वाले अाक्रमणों है कि मुसलमानों के प्राने के पहिले से इस स्थान पर के कारण, पाया जाना भी सम्भव नही है। परन्तु
कोई प्राचीन मन्दिर मौजद था। प्रतिमा के सम्बन्ध मे १८७३ में जार्ज कनिंघम को किले के पूर्व जमुना के
पता नहीं लगता है कि वह कहाँ चली गई। बहतो का पास एक प्राचीन जैन मन्दिर के अवशेष व एक विशाल
विचार है कि रोसन मुहल्ला मे स्थित श्री शीतल नाथ काय श्याम वर्ण प्रतिमा मिली थी। यथा
की प्रतिमा यही है, परन्तु उम पर कोई चिन्ह या पोर "The ancient remains at Agra of the
कोई शिलालेख नहीं दिखलाई पडता है सम्भव है मिट pre. Musalman period are very few. Out
गया हो, अलबत्ता चरण चौकी पर जो फल-पत्तियां side the water gate of the fort of Agra, bet
बनी हुई है वे कच्छुपा सरीखे भी दिखाई पड़ते हैं ween the fort and the river, several square
शायद इस कारण से कनिपम ने उसको श्री मुनिसुव्रतनाथ pillars of black basalt have been unearthed की प्रतिमा मान लिया हो । प्रतिमा का वर्तमान नाम as well as a very massive and elaborately करण उस शिलालेख के कारण प्रचलित प्रा जान sculptured statue of black basalt representing पडता है जो मन्दिर मे दरवाजे के दाहिनी पोर लगा
Munisuvrata Nath the twentieth Jain Tirtha- हया है । यथा-"प्रथम बसन्त सिरी सीतल ज देत्र है nkara, with a dedicatory inscription in Kutila की प्रतिमा नगन गुन दस दोय भरी।" characters, dated Samvat 1063 or A.D. 1006. शिला लेखो और मूर्ति प्रशस्तियों में प्रागरे का There can be no doubt that these pillars पुराना नाम उग्रसेन पर व अरगल पुर, मिलता है। formed the colonnade to the entrance, from शाहजहाँ तक के समय में उग्रसेन पुर व अर्गलपर प्रसिद्ध the river, of some ancient Jain temple which थे। अकबर के प्रागरा बसाने से पहिले शायद यही नाम are probably pulled down and destroyed when प्रचलित थे। अकबर के प्रागरा बसाने के बाद प्रकरावाट the fort was built.""
quities and inscriptions N.W.P. and Oudh १. Archeological Reports, Vol. VI, page 221- Vol. II, 1891, Page 75.
247. सं० १९७३-७४ ब Monumental anti- २. प्राचीन जैन शिला लेख संग्रह भाग २