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________________ वर्ष २४ किरण ६ प्रोम् प्रहंम् अनेकान्त परमागमस्य बीज निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् || वीर- सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण संवत २४६८, वि० सं० २०२७ सिद्ध स्तुति सिद्धो बोधमितिः स बोध उदितो ज्ञेय प्रमाणो भवेत् । ज्ञेयं लोकमलोकमेव च वदन्त्यात्मेति सर्वस्थितः । मूषायां मदनोज्झिते हि जठरे यादृग नभस्तादृशः । प्राक्कायात् किमपि प्रहीण इति वा सिद्धः सदानन्दति ॥५ - मुनि श्री पद्मनन्दि जनवरी फरवरी १६७२ अर्थ – जो सिद्ध परमेष्ठी अपने कर्मरूपी कठोर शत्रुम्रों को जीतकर नित्य मोक्ष पद को प्राप्त हो चुके हैं। जन्म जरा एवं मरण आदि जिनकी सीमा को भी नहीं लांघ सकते - जो जन्म जरा एवं मरण से मुक्त हो गए हैं तथा जिनमें असाधारण ज्ञान आदि के द्वारा अचिन्त्य एवं अद्वितीय अनन्त चतुष्टयरूप ऐश्वर्य का संयोग कराया गया है; ऐसे वे तीनों लोकों के चूडामणि के समान सिद्ध परमेष्ठी मेरे कल्याण के लिये होवे ||४||
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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