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कोषाध्यक्ष, मंत्री और सेनापति
परमानन्द जैन शास्त्री
हुल्ल या हल्लराज-वाजिवंशी यक्ष राज और लोका- मण्डलाचायं नयकीति सिद्धान्त चक्रवर्ती को उक्त चतु म्बिका का पुत्र था। जैन धर्म के बड़े भक्त थे। वह जैन विशति जिनालय का प्राचार्य बनाया । जो सणेरु गांव की धर्म का सच्चा पोषक था। उसकी उपाधि सम्यक्त्व चूड़ा- प्राय का उपयोग जिनालयो की मरम्मत तथा पूजादि मणि थी। इसकी धर्म पत्नी का नाम पद्मावती था। यह कार्य में करते थे। सन् ११७५ ई० मे हल्ल ने राजा एक प्रादर्श जैन और शक्तिशाली सेनापति था। तथा एक बल्लाल द्वितीय से सवण के माथ बेक्क और कगोटे नामके महान सेनापति और जैन धर्म के सरक्षक रूप मे उसकी गांवो को प्राप्त किया और उन्हे उक्त जिनालय तथा गोम्मटख्याति थी। वह केवल धार्मिक पुरुष ही नही था, किन्तु देव और पार्श्वनाथ की पजा के लिए प्रदान किया। विलक्षण राजनीतिज्ञ भी था। वह महान मत्री, प्रधान
सेनापति हुल्ल ने केल्लगेरे, बकापुर और कोप्पण इन कोषाध्यक्ष, सर्वाधिकारी और सेनापति के पदों को सुशोभित
तीन जैन केन्द्रों को भी अपनी उदारता से सिंचित किया। करता था । वह कार्य-साधन में योगन्धरायण से और
केल्लगेरे एक प्राचीन तीर्थ स्थान था, जो गङ्ग नरेशों राजनीति मे वहस्पति से भी अधिक दक्ष था। उसने राजा
द्वारा स्थापित किया गया था। वह खण्डहर हो गया था । विष्णुवर्द्धन, नरसिंह और बल्लाल प्रथम को प्राधीनता
वहां उसने एक विशाल जिन मन्दिर का निर्माण कराया, में कार्य किया था।
तथा तीथंकरो के पंचकल्याणको की भावना से अन्य पांच ___ मंत्री हुल्लराज के गुरु कुक्कुटासन मलघारि देव थे।
बस्तिया बनवायी थी। हल्ल ने इसे नया रूप प्रदान किया मंत्री हुल्ल को जैन मन्दिरों का निर्माण, और जीणों. था। बकापुर के प्राचीन एवं विशाल दो जिन मन्दिरों का द्वार कराने, जैन पुराण सूनने, तथा जैन साधनो को जीर्णोद्धार कराया था। तथा कोपण मे नित्य दान के लिए माहारादि दान की बड़ी अभिरुचि थी। इसने श्रवण वृत्तियो का प्रबन्ध किया था। (देखो, जैन लेख संग्रह बेल्गोल में पर कोटा रङ्गशालों व दो प्राश्रमों सहित भा० १ १३७ (३४५, पृ० २६६) चतुर्विशति जिनालय का निर्माण कराया था। इसका श्रवण बेल्गोल से लगभग एक मील दूर पर स्थित निर्माण कार्य संभवतः सन् १९५६ ई० में हा था, जब जिननाथ पुर गाव मे एक भिक्षा गृह बनवाया था। इस राजा नरसिंह द्वितीय अपनी विजय यात्रा के निमित्त से तरह हल्ल का जीवन जिन शासन की सेवा में व्यतीत होता उघर गया, तब उसने बड़े प्रादर के साथ गोमट्टदेव और था। पाश्र्वनाथ की मूर्तियों तथा चतुर्विशति जिनालय के लिए जिन गैहोद्धरणङ्गलि जिन महा-पूजा-समाजङ्गलि, दर्शन किये और जिनालय की पूजादि के लिए 'सवणेरु' जिन-योगि-व्रज-दानदि जिन-पद-स्तोत्र-क्रिया-निष्ठयि । नाम का ग्राम प्रदान किया । और हल्ल की चूड़ा- जिन सत् पुण्य-पुराण-संश्रवणादि सन्तोषमं ताल्दिभमणि उपाधि के कारण जिनालय का 'भव्यचूडामणि' व्यनुतं निच्चलु मिन्ते पोल्तुगलेवं श्रीहल्ल-बण्डाषिपं ॥२४॥ नाम प्रदान किया । मौर सेनापति हुल्लराज ने मह
-श्रवण वेल्गोल शिलालेख