SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपवंश को एक मातमममाला न कोई विकासु वि देण समत्व, णागहिपास सयंभदेव, हज बंजस, गण गरिपड। न कोई वि हरेवइ होइ समत्था जो देव पतिट्रिय प्रासरम्मि, मणिसुग्वय बंद अंतरम्मि । मणस्स सुहासुह कम्म मएवि, मालवह सति व पवित्त वितसेणराय कढि ण इत्त । न सुक्ख वि दुक्ख वि ढोयइ कोवि। मंगलउरि बंब जगिपयास, अहिण वण प्राइसय गुणनिवास । महार उ बप्पु महारउ पत्त, महारउ वल्लहुं एह कलत्त। बाहुबलिवेउ पोयणपुरंमि, ४ वबउं जो मइ अंतरंपि । महारउ गेह महारउ वव्य, महारउ परियण एह जि सव्वु। हत्थिणउरि वंदउ सतिकंच, भणंतहो ढक्कई जाम कयंत, न कोइवि दीसइ रक्खकरत । पर तिणि वि वंदउ पय वि तित्यु, प्रणेण जिएण जयम्मि दुरत, मरंति ण उलिउ जम्म प्रणंत। वाणारसि पास सयभसत्य, बंदउ परिहरित दवगंध। भमंत्ति णहिडिय जोणिहि लक्ख, पावह लव अंकुस रामसूया, पचेवकोडि जहि सिबवा। भिडति ण मग्ग प्रणेय विवक्ख । सेसंनयसिहरि पट्ठवेव कोडि, पांडव सबवउ हत्थजोरि। पीयंति ण सोसिय सायर सब्व, ताराउरि वंदउ मणिवरंग, माकोडि किलसिद्धिसंग। घसंति ण नठिय पोग्गलबध्व। बडवाणी रावणगुणनिलउ, बंदोज देवत्रिभुवन तिलउ । ण एयहो तित्ति कयायवि जाय, जिणेसरएवहिं तुम्ह पाय। वडवाणी रावणतणउ पुत्त हउ बंदउ इजित मनि पवित्त । णियच्छवि मणिय अप्पउ घण्ण, करकडुराउ णिम्मियउ भेउ, हउ बंदउ प्रगलि देववेउ । चउगह दुक्ख हो पाणिय दिण्ण। प्रहवउ सिरिपुर पासणाह, जयत्तयसामिय दल्लहो बोहि, दुहक्खउ उत्तमदेह समाहि। जो अन्तरिक्ख पिउ नाणलाह। पत्ता--पई वंदई अप्प निदह, जे नर विलिय भवा-हह। होलागिरि संख जिणद तेउ, दुस्सज्जइ ताह सुसज्जइ, कणय कित्ति सासयसुहई ॥२॥ विज्जण रिद पवि लबछेउ । रिगव्वाण जयमाला हउ बंदउ तिउरिहि गणि लग, कमकमलणवेप्षिण हियइ घरेप्पिण, तियलोउतिलउ जो सिदिमाग। वाई सिरिगिरि गणहरयं । णव णवह कोडि बलभद्दत्त, तुंगीगिरि बंई मणि पवित्त । निव्वाणइट्ठाणइ तित्यसमाणई, पडिय भत्तीए जिणवरहं पुण अट्ठकोडि बलएव सत्य गयवह गिरिश्मि णिव्वाणपत्त। कहलाससिहरि सिरिरिसहनाह, पचकोडि रावणसुभाई, रेवाणइं वंद संपभुवाइ । जो सिद्धउ पडिउ धम्मालाह। कण्णाडि वसइ वाडइजिणंद, जसु प्रालि नच्चइ सुररिव । पुणचंपणयरि जिणवासपुज्ज, निवाणपत्त छंडेवि रज्ज। वं दिज्जइ माणिकदेव देउ, जसु प्रविण पणवह सुरवरितु । उज्जतमहागिरि सिद्धि पत्त, सिरिणमिणाहु जादव पवित्त। वंदिज्जइ गोमटदेउ तित्थु, जसु प्रावणु पणमउ सुरहसत्यु । पण्ण वि पुण सामिपज्जण णवेवि, पच्छिमसमुह ससिसंखवण्ण, तिलयाउरि चंदपहरवन्न । अणरुद्धसहिय हउ तं णविते देवि । मह अइसइ तित्थह पयडियाइ, अण्णु वि पुणु सत्त सयाइ तित्य, बाहत्तरि कोडिसिद्ध जेत्थ । श्रीउवयकित्ति मुनि बंदियाई। पावापुरि वंदउ वढमाण, इय तित्थंकर तित्थह पुष्णपवित्तइ, जिण महिलि पयडिय सिठाण। पढइ विहाणई विमलहरे । सम्मेवमहागिरि सिद्धजेवि हवंद वीसजिणंव तेधि। तसु पापपणास इ रियविणासइ, मंगल सयलवितासु घरे।। प्रवरे वितिस्प महिलि पसिब हव'मासयसमिद्ध। इति श्रीकमकमलजयमाला समाप्त: ।
SR No.538024
Book TitleAnekant 1971 Book 24 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1971
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy