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साहित्य-समीक्षा
१. जन फिलासफी-लेखक डा. मोहनलाल, प्रकाशक ५ पुदगल, ६ ज्ञान, ७ प्रमाण और कर्म । अन्त में पार्श्वनाथ विद्याश्रम रिमर्च इन्स्टिटघट वागणसी ५। पुस्तक में प्रयुक्त पुस्तक सूची एवं महत्व पूर्ण शब्दों पृष्ठ सख्या २३४, मूल्य १० रुपया।
की तालिका दी गयी है । ग्रंथ रचना मे ४६ जैन ग्रंथों एवं प्रस्तुत पुस्तक के लेखक डा० मोहनलाल जी मेहता
३४ जनेतर यंथों का आधार लिया गया है। है, जो अच्छे विद्वान, लेग्वक और सम्पादक है। और
तत्त्व शीर्षक अधिकार में अन्य दार्शनिको के तत्त्व पार्श्वनाथ विद्याथम के डायरेक्टर है। इनके तत्वावधान सम्बन्धी विचारा का विवेचन किया गया है, जो पठनीय मे वहां शोध सम्बन्धी विभिन्न प्रवत्तियां चल रही है,
है। अन्य अध्यायों मे जैन मन्तव्यों का विचार प्रस्तुत और अनेक ग्रंथो का प्रकाशन हो रहा है। यह पुस्तक ।
किया गया है। लेखक ने दिगम्बर-श्वेताम्बर मतभेदों को जैन दर्शन के सम्बन्ध मे अग्रेजी भाषा मे उपयोगी एवं भी सयत भाषा मे प्रस्तुत किया है । इसके लिए वे विशेष सार पूर्ण सामग्री प्रस्तुत करती है। यह ग्रंथ लेखक द्वारा रूप से
रूप से धन्यवाद के पात्र है । प्राशा है लेखक और प्रकाशक पहले लिखित 'ग्राउट लाइन्स प्रॉव जैन फिलासफो का दोनों ही नये-नये मौलिक एव महत्वपूर्ण प्रकाशन जनता परिवधित सस्करण है। समस्त सामग्री पाठ अध्ययों मे की भेंट करते रहेगे। विभक्त है-जो इस प्रकार है-१ जैन धर्म का इतिहास,
-परमानन्द जैन शास्त्री २ धार्मिक एव दार्शनिक साहित्य ३ तत्व, ४ प्रात्मा, नोट-शेष ग्रंथों की समीक्षा अगले अंक में दी जायेगी।
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जैन संस्कृति के विकास में राजस्थान का योगदान
ग्रन्थ प्रकाशन की योजना
उदयपुर, १५ सितम्बर, १९७१ । भगवान महावीर २५००वां निर्वाण कल्याणक महोत्सव जो अागामी १३ नवम्बर, १९७४ को मनाया जाने वाला है, उस अवसर पर प्रकाशनाधीन 'जन सस्कृति के विकास में राजस्थान का योगदान' नामक ग्रथ की रूप-रेखा को अन्तिम रूप देने के लिए राजस्थान के विद्वानों की एक मीटिंग श्री अगरचन्दजी नाहटा को अध्यक्षता में १३, १४, १५ सितम्बर, ७१ को उदयपुर में सम्पन्न हुई। जिसमे श्री अगरचन्द जी नाहटा (बीकानेर), डा. कैलाशचन्द जैन (विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन), डा० नरेन्द्र भानावत (राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर), डा० कमलचन्द सोगानी (उदयपुर विश्वविद्यालय, उदयपुर), श्री बलवन्त सिंह जी मेहता (उदयपुर), श्रीजोधसिंह मेहता (उदयपुर) एवं श्री देव कोठारी (उदयपुर) आदि विद्वान सम्मिलित हुए।
___ मीटिंग मे यह निर्णय लिया गया कि उक्त ग्रन्थके लेखन में जैन संस्कृतिके मूलाधार, राजस्थान का भौगोलिक व ऐतिहासिक परिवेश, जैन संस्कृति का विकास, पुरातत्त्व, कला साहित्य, ग्रन्थ भण्डार, जैन संघ के विशिष्ट व्यक्तित्व, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक क्षेत्रों में जैन संस्कृति का योगदान प्रादि विषयो का सम्यक मूल्यांकन प्रस्तुत किया जाय ।